वायुदाब एवं पवन पेटी का अर्थ | वायुदाब एवं पवन पेटी के प्रकार

पृथ्वी का अपने अक्ष (Axis) पर झुके होने एवं घूर्णन के कारण तथा पृथ्वी एवं सूर्य की सापेक्षिक गतियां (Relative movements) एवं स्थिति में परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर विभिन्न वायुदाब एवं पवन की पेटियां पाई जाती हैं।


निम्न वायुदाब अर्थात क्षोभमंडल (Air force defense Troposphere) का संपर्क पृथ्वी की सतह से होता है। उस संपर्क के परिणामस्वरुप ठोस पृथ्वी की विशेषताओं का प्रभाव वायुमंडल के वायु वितरण तथा वायु प्रवाह पर पड़ता है। ठोस पृथ्वी का प्रभाव उसके झुकाव और घूर्णन से संबंधित है। चूंकि झुकाव और घुर्णन की क्रिया स्थायी है, इसलिए वायुदाब और वायु प्रवाह स्थायी पेटियां निर्धारित होती है। पृथ्वी का अक्ष पर 23.5° झुकाव के कारण सूर्य की किरणों का तापीय प्रभाव सभी अक्षांशो पर समान रूप से नहीं पड़ता है। अतः अधिक ताप के क्षेत्रों (विषुवतीय क्षेत्र-Equatorial region) में निम्न भार तथा कम ताप के क्षेत्रों में (ध्रुवीय क्षेत्र) में उच्च भार का निर्माण होता है।

घूर्णन क्रिया के कारण कोरियालिस प्रभाव (Coriellis effect) तथा वायु की दिशा का विरूपण होता है। कोरियालिस प्रभाव के कारण ही उपधुर्वीय निम्न भार का निर्माण होता है। यद्यपि ध्रुवीय  क्षेत्र में कोरियालिस प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन अति न्यून तापमान के कारण वायुमंडलीय पदार्थ फैल नहीं पाते और उच्च भार का निर्माण हो जाता है।

लेकिन उपध्रुवीय क्षेत्रों में तापीय प्रभाव में तुलनात्मक वृद्धि के कारण कोरियालिस प्रभाव अधिक सक्रिय होता है तथा हवाएं पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर उठ जाती है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण ही उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की तरफ चलने वाली वायु उत्तरी गोलार्ध में अपने वास्तविक मार्ग से दाहिनी तरफ और दक्षिणी गोलार्ध में बायीं तरफ मुड़ जाती है।

निम्न भार क्षेत्र से हवाएं लंबवत रूप से ऊपर उठती है। ऊपर उठती हुई हवाई तापीय ह्रास (decrement) से प्रभावित होकर क्षैतिज दिशा निर्धारित करती है और ऊपर उठने वाले क्षेत्र के दोनों तरफ नीचे बैठने की प्रवृत्ति विकसित करती है। इसी प्रवृत्ति के कारण सतह पर उच्च भार की पेटियों से वायु उन निम्न भार पेटियों की तरफ जाती है, जहां से लंबवत रूप से ऊपर उठती है। इस प्रकार क्षोभमंडल की वायु एक सतह-चक्र में प्रवाहित होती है। इसी चक्र को हेडली चक्र कहते हैं। हेडली चक्र को जेट-स्ट्रीम (Jet Stream) चक्र भी कहते हैं। इसके अनुसार हवाएं जहां से चलती है, वहीं वापस आती है।

इसी तरह सतही वायु एवं क्षोभमंडल की वायु अंतर्संबंधित हो जाती है। और विभिन्न वायुदाब पेटियों के मध्य वायु की चक्रीय व्यवस्था कायम होती है, जो वायु के कोश का निर्माण करती है। इस तरह के तीन कोशों का विकास प्रत्येक गोलार्द्ध में होता है, क्योंकि ये तीन कोश प्रत्येक देशांतर पर विकसित होते हैं। अतः इन्हें परिसंचरण व्यवस्था कहा जाता है। स्पष्टत: पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों की स्थिति तथा सतही पवन एवं क्षोभमंडल पवन के अंतर्संबंध के व्यापक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।


पृथ्वी पर वायुदाब की पेटियां


पृथ्वी की सतह पर चार उच्चभार वायुदाब पेटियां और तीन निम्नभार वायुदाब पेटियों का निर्माण होता है। यह पेटियां इस प्रकार है।

  1. विषुवतीय (Equatorial) निम्नभार की पेटी : विस्तार 5°N – 5°S अक्षांश तक,
  2. उपध्रुवीय (Dipole) निम्नभार की पेटी : दोनों गोलार्धो में 60°-65° अक्षांश के बीच,
  3. उपोष्ण (Subtropical) उच्चभार की पेटी : दोनों गोलार्धो में 25°-35°अक्षांश के बीच,
  4. ध्रुवीय (Polar) उच्चभार की पेटी : दोनों गोलार्धो में 80° अक्षांश से ध्रवों तक

वायुदाब की पेटियों का वर्गीकरण एक अन्य आधार पर भी किया जाता है।

(1) ताप जनित वायुदाब पेटियां/Heat pressurized belts :

  1. विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी/Equinoctial low pressure belt
  2. ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी/Polar high pressure belt

(2) गति जनित वायुदाब पेटियां/Speed pressurized belts :

  • उपोषण उच्च वायुदाब की पेटी/Grating high pressure belt
  • उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटी/Subipolar low pressure belt

वायुदाब को नियंत्रित करने वाले निम्न कारक हैं।

  1. तापमान
  2. समुद्र तट से ऊंचाई
  3. पृथ्वी का घूर्णन/Earth rotation
  4. जलवाष्प/water vapor

पृथ्वी पर प्रचलित स्थायी पवन :


पवन वायु का क्षैतिज प्रवाह है जो वायुदाब एवं तापीय विभिन्नता के कारण उत्पन्न होता है। पृथ्वी पर विभिन्न वायुदाब पीढ़ियों के मध्य उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की और पवन प्रवाहित होती है, जिसे स्थायी और प्रचलित पावन कहते हैं।

पवनों के चलने के अनुसार उन्हें 2 वर्गों में रखा जाता है।

  1. प्रचलित या स्थायी पवन : जो पवनें वर्ष भर निश्चित रूप से चलती हैं, जैसे डोलड्रम या शांत पवन की पेटी में विषुवतीय पछुआ पवन, व्यापारिक पवन, पछुआ पवन और ध्रुवीय पवन।
  2. अस्थायी या स्थानीय पवन : जिन पवनों के चलने का क्रम मौसमी या अनिश्चित होता है, जैसे मानसून पवन या स्थानीय रूप से चलने वाली स्थानीय पवने जैसे चिनूक और सिराको

उच्च वायुदाब पेटी में हवाएं निम्न वायुदाब पेटी की तरफ फेरल के नियम के अनुसार चलती है। इन हवाओं को स्थायी हवाएं कहते हैं। व्यापारिक हवाएं उपोषण उच्च वायुदाब से विषुवतीय निम्न वायुदाब की तरफ चलती हैं। पछुआ हवाएं या प्रतिवाणिज्य हवाएं उपोषण उच्च भार से उपध्रुवीय निम्न भार और प्रवाहित होती है। ध्रुवीय हवाएं ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। वायु प्रवाह की इस प्रवृत्ति को देखने से स्पष्ट होता है, कि दो पेंटियों में विभिन्न विशेषताओं वाले वायु का अभिसरण होता है। ये विषुवतीय और उपध्रुवीय वायुदाब की पेटियां है।

विषुवतीय क्षेत्र में दो गर्म व्यापारिक हवाओं के मिलने की प्रक्रिया को अंतरा उष्णकटिबंधीय अभिसरण (ITC – Inter Tropical Convergence) कहते हैं। यह मिश्रण समानता 5°-12° अक्षांश के बीच दोनों गोलार्धों में होता है। लेकिन यह मिश्रण जब अधिक क्षेत्र में होता है, तब इससे उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति व्यापारी हवाओं के अभिसरण से ही होती है। उपध्रुवीय क्षेत्र में ध्रुवीय ठण्डी और उपोषण पछुआ हवा गरम वायु के मिलने से ध्रुवीय सीमाग्र का निर्माण होता है जिससे शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
सामान्यता वायु पेटियां अक्षांशीय प्रारूप में पाई जाती है, लेकिन इसका यह अक्षांशीय प्रारूप सूर्य की किरणों के लंबवत परिवर्तन के साथ ही परिवर्तित होता है। जब सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंबवत होती है, तब सभी वायुदाब पेटियां उत्तर की ओर खिसक जाती है। इस खिसकाव का सर्वाधिक प्रभाव उत्तरी गोलार्ध में पड़ता है। उत्तरी गोलार्ध में स्थल खंड की प्रधानता है, जो शीघ्र ही ठंडा और गर्म हो जाता है। अतः सूर्य कर्क रेखा पर लंबा होता है। तब भारतीय उपमहाद्वीप, अरब सागर के पठार और सहारा क्षेत्र में एक वृहद निम्न भार का निर्माण होता है।
वस्तुतः उपोष्ण उच्चभार का यह क्षेत्र विषुवतीय निम्न भार का अंग हो जाता है। तापीय विषुवत रेखा का विस्तार भारत में शिवालिक पर्वत तक देखा जाता है। अतः कुछ समय तक दक्षिण-एशिया में उत्तर पूर्व व्यापारिक हवाएं समाप्त हो जाती है और अरब सागर में मानसून हवाएं चलने लगती है। इस प्रकार जब सूरत दक्षिणी गोलार्ध में होता है, तब उत्तरी ध्रूव के उच्चभार का विस्तार तिब्बत के पठार तक हो जाता है। साइबेरिया के ऊपर उपोषण निम्न वायुदाब का समापन हो जाता है। यूरेशिया से वायुराशियां विभिन्न दिशाओं में चलने लगती है।

लेकिन दक्षिणी गोलार्ध में इतना अधिक विरूपण नही होता है, इसका प्रमुख कारण इसके 82% भाग पर समुद्र का पाया जाना है। अतः वायुदाब पेटियां में खिसकाव के बावजूद अक्षांशीय वितरण का अनुसरण होता है। अतः वायु की दिशा और वायुदाब की पेटी भी अपना निश्चित आकार रखती है। निश्चित आकार के कारण ही दक्षिणी गोलार्ध में उपोषण उच्च भार पेटी को घोड़े का अक्षांश (Horse Latitudes) कहा जाता है। दक्षिणी गोलार्ध में पछुआ हवाएं समुद्र की सतह पर अत्यंत ही तीव्र गति से प्रवाहित होती हैं। क्योंकि इनके मार्ग में किसी प्रकार की बाधाएं नहीं होती। इन हवाओं को गरजती चालीसा, भयंकर पचासा एवं चीखती साठा कहा जाता है।

ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि निम्न वायुमंडल में वायुदाब और वायुदिशा के निश्चित प्रारूप है, लेकिन स्थलखंड और सागरों का असमान वितरण, पर्वतीय स्थिति एवं उच्चावच संबंधी विभिन्नता के कारण इनके स्थायी प्रारूप में विरूपण होता है, और उसी विरूपण से अनेक स्थानीय हवाएं उत्पन्न होती है, जो प्रचलित वायु का अंग नहीं है। मौसमी तथा स्थानीय जलवायु की उत्पत्ति का कारण भी यही है।

त्रिकोशिकीय रेखांशिक परिसंचरण :



पृथ्वी की सतह पर वायुदाब की भिन्नता सतही स्थायी पवनों की उत्पत्ति करता है। पुनः पृथ्वी का घूर्णन एवं कोरियालिबल का प्रभाव भी वायु की दिशा और आरोही वायुप्रवाह पर पड़ता है, क्षोभमंडल की विशेषताएं एवं परिस्थितियों के कारण क्षोभमंडल क्षैतिज वायुप्रवाह भी उत्पन्न होता है। जब वायुमंडल की निचली एवं ऊपरी वायु एक दूसरे से संबंध स्थापित करती है तो वायु का चक्रीय परिसंचरण या वायु के कोश का विकास होता है। प्रत्येक गोलार्ध में प्रत्येक देशांतर पर वायुमंडलीय वायु परिसंचरण के निम्नलिखित तीन कोश पाए जाते हैं।

  1. सन्मार्गी पेवन पेटी स्थित रेखांशिक परिसंचरण कोश
  2. पछुआ पवन पेटी स्थित मध्यवर्ती परिसंचरण कोश
  3. ध्रुवीय परिसंचरण कोश

इस परिसंचरण का व्यापक प्रभाव वायुमंडल के निचले और ऊपरी क्षोभमंडल पर पड़ता है।

महत्वपूर्ण तथ्य :


  1. धरातल पर वायुमंडलीय वायुदाब और तापमान के बीच परस्पर उल्टा संबंध होता है। अतः स्पष्ट है कि गर्मियों में तापमान सबसे अधिक होने के कारण वायुदाब सबसे कम होगा, परंतु ऊंचाई के साथ तापमान में गिरावट की तरह वायुदाब में भी गिरावट होती है।
  2. बैरोमीटर या वायुदाबमापी एक यंत्र होता है जिसके द्वारा वायुमण्डल के दबाव को मापा जाता है। वायुदाब को मापने के लिये बैरोमीटर में पानी, हवा अथवा पारा का प्रयोग किया जाता है। बैरोमीटर के आविष्कारक इव्हानगेलिस्टा टोरिसेली हैं।
  3. दाब का S.I. मात्रक N / m^2 होता है, जिसे पास्कल (Pa) भी कहते हैं
  4. वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारक – किसी क्षेत्र की हवा का तापमान कम होने से दबाव बढ़ जाता है जबकि दबाव में कमी आने पर उसी की वृद्धि होती है। ऊंचाई में वृद्धि के साथ, दबाव कम हो जाता है और इसके विपरीत। हवा में जल वाष्प में वृद्धि के कारण हवा का दबाव कम हो जाता है क्योंकि यह हवा को हल्का बनाता है। तो वाष्प कम होने से वायुदाब बढ़ जाता है।
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