भारतीय संविधान तत्व और मूल भावना के संबंध में अद्वितीय है। भारतीय संविधान के कई तत्व विश्व के विभिन्न संविधान से लिए गए हैं। भारत संविधान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं, जो इस प्रकार है।
सबसे लंबा एवं लिखित संविधान
किसी भी देश के संविधान को दो भागों में बांटा जाता है, लिखित संविधान या अलिखित संविधान। अलिखित संविधान जैसे ब्रिटेन का संविधान तथा लिखित संविधान जैसे अमेरिका का संविधान। भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा एवं लिखित संविधान है। इसके अंतर्गत मूल रूप से :
- 1 प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियां थी, लेकिन वर्तमान में 1 प्रस्तावना, 25 भाग (22), 12 अनुसूचियां तथा 470 (395) अनुच्छेद है।
- संविधान सभा एक विशेष संविधान सभा द्वारा निर्मित है। इसकी प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी, जिसकी अध्यक्षता सच्चिदानंद सिन्हा ने अस्थायी तौर पर की थी।
- भारतीय संविधान की दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 को स्थायी तौर पर डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई तथा अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई थी। इसी दिन राष्ट्रीयगान को स्वीकार किया गया था।
संप्रभुता संपन्न राज्य
भारत का संविधान अपने आंतरिक एवं बाहरी मामलों में स्वत् कानून बना सकता है। संसद की संप्रभुता का नियम ब्रिटिश संसद से जुड़ा है।
संसदीय सरकार
वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों (मंत्रिपरिषद) में निहित होती है, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है, परंतु संविधान के अनुसार समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है, मगर इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रीपरिषद यानी प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं।
मौलिक अधिकार
इसे अमेरिका के संविधान से लिया गया है। इसे अमेरिका में बिल ऑफ राइट कहा जाता है। इनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। प्रारंभ में मूल अधिकारों की संख्या 7 थी। मगर, भारतीय संविधान में 44 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1978 किया गया, जिसके अंतर्गत संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा इसे भाग 12 के अनुसार, अनुच्छेद-300 (क) में रख दिया गया। वर्तमान में संपत्ति का अधिकार, कानूनी अधिकार या विधिक अधिकार है। इस प्रकार वर्तमान समय में भारत संविधान में 6 मौलिक अधिकार हैं। यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 32 तथा उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत कार्यवाही कर सकता है।
राज्य के नीति निदेशक तत्व
इन्हें आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। यह भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 तक मौलिक अधिकार के बराबर रखे गए हैं, यह वाद योग्य नहीं है।
- अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायत से संबंधित है।
- इन्हें राज्य के कल्याणकारी तत्व कहा गया है।
- गांधीवादी विचारधारा हमें इनके अंदर मिलती है।
- के. टी शाह के द्वारा – राज्य के नीति निदेशक तत्व की तुलना ऐसे चेक से की है जिसे बैंक अपनी सुविधा अनुसार अदा करेगा।
- टी. टी कर्मचारी के द्वारा – इन्होंने नीति निदेशक तत्वों को भावनाओं का स्थायी कूड़ा घर कहा था।
एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका
भारतीय संविधान एक ऐसे न्यायपालिका की स्थापना करता है, जो अपने आप में स्वतंत्र या एकीकृत है। सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय अदालत है यह शीर्ष न्यायालय है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी लेता है और संविधान का संरक्षक भी है।
कठोर एवं लचीला संविधान
भारतीय संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर, बल्कि यह दोनों का मिलाजुला रूप है। अनुच्छेद-368 में दो तरह का प्रावधान है।
कुछ उपबंधों को संसद में विशेष बहुमत से संशोधित किया जाता है तथा कुछ प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत और कुल राज्यों के आधे से अधिक राज्यों के अनुमोदन से ही संशोधित किया जा सकता है।
एकल नागरिकता
हमारे संविधान में केवल एकल नागरिकता का प्रावधान है, भारतीय नागरिकता। भारत में एकल नागरिकता का सावधान ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है, जबकि अमेरिका के संविधान में दोहरी नागरिकता है। संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 तक नागरिकता को परिभाषित किया गया है। भारत में नागरिकता पांच प्रकार से प्राप्त की जा सकती है –
जन्म से,
- पंजीकरण से
- क्षेत्रीय से
- देशीयकरण से तथा
- वंशानुगत से
व्यस्क मताधिकार
संविधान लागू होने के समय सिर्फ उन व्यक्तियों को मत डालने का अधिकार था, जिनकी आयु 21 वर्ष थी, इसमें इसके लिए 61 वां संविधान संशोधन 1989 में आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
मौलिक कर्तव्य
मौलिक कर्तव्य को रूस के संविधान से लिया गया है। प्रारंभ में इनकी संख्या 10 थी। मगर वर्तमान में 11 है, क्योंकि सरदार स्वर्णसिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से आंतरिक आपातकाल के दौरान इन्हें शामिल किया गया तथा 2002 के 86 वें संविधान संशोधन में एक और मौलिक कर्तव्य जोड़कर इनकी संख्या 11 हो गई। संविधान के भाग 4 तथा अनुच्छेद 51 (क) में मौलिक कर्तव्यों की चर्चा की गई है।
मूल कर्तव्य की आलोचना – कर्तव्यों की सूची पूरी नहीं है, जैसे – कर अदायगी, परिवार नियोजन तथा मतदान। कर अदायगी को मौलिक कर्तव्य में रखना सरदार स्वर्ण सिंह समिति का विचार था।
कुछ कर्तव्य स्पष्ट बहुअर्थी है, जिसे आम जनता को समझने में कठिनाई होती है। जैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा उच्च आदर्श। वैज्ञानिक दृष्टिकोण जवाहरलाल नेहरू का प्रस्ताव था।
महत्वपूर्ण मौलिक कर्तव्य :
- संविधान का पालन, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखना।
- भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता की रक्षा करें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें।
- 86 वें संविधान संशोधन 2002 में 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को माता-पिता या संरक्षक, शिक्षा का अधिकार प्रदान करायेंगे।
धर्मनिरपेक्ष राज्य
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए इसमें किसी धर्म विशेष को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं मिली है। वर्ष 1976 के 42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया।
त्रिस्तरीय सरकार
मूल रूप से अन्य संविधानों की तरह भारतीय संविधान में भी दो स्तरीय राजव्यवस्था (केंद्र व राज्य) का प्रावधान था। मगर बाद में वर्ष 1993 में 73 एवं 74 वें संविधान संशोधन में तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान किया गया, जो विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है। संविधान में एक नए भाग-9 एवं नई अनुसूची-11 जोड़कर 1992 के 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
आपातकालीन प्रावधान
आपातकालीन की स्थिति में प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है, जो देश की संपदा एवं एकता को जोड़ती है।
- राष्ट्रीय आपातकाल अनुच्छेद 352 के तहत
- राज्यों में आपातकाल या राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 365 के तहत
- वित्तीय आपातकाल अनुच्छेद 360 के तहत
इस प्रकार भारतीय संविधान की बहुत-सी विशेषताएं जो भारत को एक सूत्र में बांधे रखती हैं।