‘जीरो बजट खेती’ क्या है?

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि, खेती का वह तरीका है, जिसमें प्राकृतिक वातावरण के अंतर्गत खेती की जाती है। साधारण अर्थ में, इसे जैविक कृषि भी कह सकते हैं। क्योंकि इस प्रकार की खेती में किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक, हाइब्रिड (उच्च उत्पादक) बीज, कीटनाशक दवा तथा कृषि यंत्र (ट्रैक्टर, मशीन तथा रोटावेटर आदि) का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अंतर्गत गोबर, गन्ने की मैली, केंचुए, मिट्टी में स्थित सूक्ष्मजीव तथा परागण कर्ता आदि की सहायता से कृषि की जाती है। जिससे कृषि बजट शून्य हो जाता है। इस प्रकार की कृषि से जीव-जंतुओं के जीवन पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इसे इको-फ्रेंडली कृषि के नाम से भी जाना जाता है।

हाल ही में, सरकार ने इस प्रकार के कृषि पद्धति को बढ़ावा दिया है, ताकि रासायनिक पदार्थों पर निर्भरता को कम किया जा सके तथा कृषि में आए व्यय (खर्चों) को भी कम किया जा सके। जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो सके। दक्षिण भारत, उत्तर पूर्वी भारत तथा पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों में (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, राजस्थान का गंगानगर, ) इस पद्धति को अपनाया जा रहा है। आंध्र प्रदेश भारत का पहला ऐसा राज्य है, जिसने वर्ष 2015 में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि की शुरुआत की थी। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश ने भी 2022 तक पूरे राज्य को प्राकृतिक खेती में बदलने का लक्ष्य रखा है।

प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ सुभाष पालेकर शून्य बजट प्राकृतिक फार्मिंग मॉडल के जन्मदाता है। सुभाष पालेकर तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों का कहना है कि प्राकृतिक या जैविक खेती से किसानों की लागत को कम करके आय को दोगुना किया जा सकता है।

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के फायदे/लाभ

वर्तमान समय में जिस प्रकार देश की आबादी बढ़ रही है, इस आबादी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए फसलों में रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किया जाना लाजमी है। क्योंकि वर्तमान में बिगड़ते पर्यावरण के कारण कृषि में विभिन्न प्रकार की कीटनाशक जीव, कृषि को हानि पहुंचा रहे हैं, इन्हीं कीटनाशकों से बचने के लिए कीटनाशक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है, जोकि मानव जीवन के लिए बहुत ही हानिकारक है। इसीलिए सरकार जैविक तथा प्राकृतिक कृषि पर जोर दे रही है। क्योंकि प्राकृतिक कृषि मानव जीवन तथा पर्यावरण दोनों के लिए ही अनुकूल है। प्राकृतिक कृषि से प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न लाभ है।

  • किसानों का कृषि खर्च कम हो जाता है।
  • मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
  • पानी की कम आवश्यकता पड़ती है।
  • रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों पर निर्भरता खत्म हो जाती है।
  • आए दिन जीवो की हो रही मृत्यु को कम किया जा सकता है, उदाहरण के लिए गिद्ध
  •  मृदा प्रदूषण कम किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक कृषि से छोटे या सीमांत किसानों को अधिक लाभ होगा।
  • शून्य बजट कृषि प्रणाली में किसानों की आय दुगनी हो जाएगी।

शून्य बजट प्राकृतिक खेती निम्नलिखित 4 स्तंभों पर निर्भर करती है।

  1. जीवामृत : इसकी सहायता से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती तथा यह एक उत्प्रेरक एजेंट की तरह कार्य करते हैं। जिसके कारण फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
  2. बीजामृत : इसका इस्तेमाल पौधे के बीजारोपण के दौरान करते हैं, ताकि नए पौधों की जड़ों को कवक, मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी तथा बीजों को बीमारियों से बचाया जा सके।
  3. अनाच्छादन/Mulching : मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए मल्चिंग का प्रयोग किया जाता है।
  4. वाष्प/Moisture : कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर के अनुसार, पौधों को बढ़ने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि पौधों को भांप/वाष्प की सहायता से भी बढ़ाया जा सकता है।
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