सामान्यतः गेहूं एवं चावल का बफर स्टॉक (Buffer stock) बनाने का मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा प्रदान करना होता है। यह एक प्रारक्षित स्टॉक है, जिससे फसल खराब होने की स्थिति में अनाज निकाला जा सकता है।
बफर स्टॉक का अर्थ
बफर स्टॉक एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें अच्छी फसल होने के दौरान उसका भंडारण कर लिया जाता है, ताकि फसलों का मूल्य निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम न हो और इसे उस समय उपलब्ध कराया जाता है। जब फसल अच्छी नहीं होती तथा मूल्यों में वृद्धि होने की संभावना बनी रहती है। इस प्रकार बफर स्टॉक मूल्य को नियंत्रित रखता है। बफर स्टॉक को केंद्रीय पूल भी कहा जाता हैं।
बफर स्टॉक का मापदंड वर्ष के प्रत्येक तिमाही के लिए अलग-अलग रूप में 1994 के बाद से निर्धारित किया जा रहा है। यदि स्टॉक वर्ष की प्रत्येक तिमाही के लिए निर्धारित बफर स्टॉक मानदंड से कम रह जाता है, तो आयात के माध्यम से अथवा खरीद के लिए उच्चतम मूल्य प्रोत्साहनों के माध्यम से स्टॉक की कमी को पूरा करने के लिए कदम उठाए जाते हैं। इस प्रकार बफर स्टॉक बनाए जाने के उद्देश्य से ही भारत में संयुक्त राज्य अमेरिका से PL-480 समझौता किया था। Mountain Ratna
Public Law (PL) 480
अप्रैल 1956 में प्रतिरोधक भंडार की व्यवस्था के उद्देश्य से भारत सरकार ने पहला PL-480 समझौता किया था जिसके अंतर्गत 31 लाख टन गेहूं और 1.90 लाख टन चावल के आयात का सौदा हुआ था। यहां से भारत का अमेरिका से PL-480 के समझौते के तहत खाद्यान्नों के आयात का युग प्रारंभ हुआ था।