जैव प्रौद्योगिकी (Bio Technology) के उपयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि के व्यापक प्रयासों में पराजीनी कृषि (Transgenic Agriculture) आधुनिकतम तकनीक है, इस प्रकार की कृषि में प्रगति की काफी संभावना है। विश्व में भूमि संसाधन, उर्वरक प्रयोग एवं विकसित कृषि प्रौद्योगिकी के उपयोग की एक सीमा है।
पराजीनी कृषि का अर्थ
पराजीनी पौधों की प्रजातियों के विकास में प्राकृतिक जीन में कृत्रिम उपायों द्वारा किसी दूसरे पौधे के जीन (Gene) का भाग जोड़ दिया जाता है अथवा इसकी मूल संरचना को परिवर्तित कर दिया जाता है।
साधारण शब्दों में, ट्रांसजेनिक फसल (Transgenic Crop) उन फसलों को कहा जाता है, जिनमें स्वयं के अनुवांशिक पदार्थों (DNA) के अतिरिक्त अन्य जीवों के अनुवांशिक पदार्थों को जोड़ दिया जाता है। ट्रांसजेनिक फसल मुख्य रूप से जीन रूपांतरित (Gene Transfer) फसल होती है। इनमें जीन का स्थानांतरण अनुवांशिक अभियांत्रिकी (Genes Engineering) तकनीक द्वारा किया जाता है। निर्देशित (Directed) किया जाने वाला जीन दूसरी प्रजाति का हो सकता है।
पराजीनी कृषि का मुख्य उद्देश्य
पराजीनी कृषि के निम्नलिखित उद्देश्य हैं, जैसे –
- जल की आवश्यकता को कम करना
- रोग तथा कीट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना
- पौधों में गुणवत्ता तथा उत्पादकता में वृद्धि करना
- प्रोटीन तथा खनिजों की मात्रा में वृद्धि करके अधिक पोष्टिक बनाना
- ट्रांसजेनिक फसलों के प्रयोग से केवल कीटों एवं खरपतवारों को हानि पहुंचती है, प्राकृतिक पर्यावरण पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
- ट्रांसजेनिक फसल पर्यावरण के अनुकूल होती हैं
- यें फसलें अत्यधिक उत्पादन के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी देती है।
पराजीनी कृषि की स्थिति
पराजीनी कृषि की सीमाएं अब जंतुओं के उपयोगी जीनों को पौधों में स्थानांतरित करने तक पहुंच गई हैं। उदाहरण के लिए मछली के जीन को टमाटर के पौधे में हस्तांतरित करके टमाटर की भंडारण क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ-साथ आधुनिक तकनीकों के विकास के बाद अब यह कई फसलों तथा फलों में रूपांतरित हो सकती है, जैसे चावल गेहूं मक्का तथा दलहन फसलें इत्यादि।