वह बीज जिसके प्राकृतिक जीन (Natural Gene) में कृत्रिम उपायों द्वारा किसी दूसरे पौधे या जंतु के जीन का भाग जोड़ दिया जाता है, उसे पराजीनी बीच कहते हैं। इसका उद्देश्य पौधों में किसी विशिष्ट गुण या क्षमता का विकास करना होता है। भारतीय बीज कार्यक्रम बीज उत्पादन की 3 किस्मों को मान्यता देता है। अर्थात प्रजनक, आधारी तथा प्रमाणित बीज।
पराजीनी बीज की आवश्यकता क्यों पड़ी?
पराजीनी बीज एक वैज्ञानिक विधि है, जिसे कृत्रिम रूप से विकसित किया गया है। इस विधि के द्वारा फसल या किसी जीव की संरचना में सुधार किया जाता है। इस विधि में उसके स्वरूप को परिवर्तित करने की कोशिश की गई है, जो एक सफल तकनीक है।
उदाहरण के तौर पर, खट्टे आम को मीठा एवं लंबा करने के लिए उसमें पराजीनी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। जिसके बाद उस आम का स्वरूप बदल जाता है और वह लंबा एवं मीठा हो जाता है। यही विधि पराजीनी कहलाती है। जानवरों के साथ भी इस तकनीक का उपयोग किया जाता है ताकि उनकी वंशावली को सुधारा जा सके।
इस प्रकार इस तकनीक का प्रयोग इसलिए किया जाता है, ताकि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से अधिक विकसित हो।