SLR का अर्थ
RBI अर्थव्यवस्था या बाजार में नकदी (पैसे) की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिन उपायों का सहारा लेती है, उनमें SLR एक प्रमुख उपाय हैं। Statutory Liquidity Ratio या वैधानिक तरलता अनुपात बैंकों के पास उपलब्ध जमा का वह हिस्सा होता है जो कि उन्हें अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है।
मतलब यह वह नकदी होती है, जो बैंक के पास हमेशा रहती है। SLR, नकदी, स्वर्ण भंडार तथा सरकारी बोण्ड या प्रतिभूतियां आदि किसी भी रूप में हो सकता है। SLR का यह अनुपात RBI द्वारा निर्धारित होता है।
जनमानस पर SLR का प्रभाव
SLR ही निर्धारित करती है कि बैंक कितना ऋण दे सकती है। अगर बैंक किसी मुश्किल में आ जाता है तो RBI, SLR के द्वारा ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर देती है।
SLR की अधिकतम सीमा
SLR, भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित की जाती है। भारत में SLR की अधिकतम सीमा 40 प्रतिशत तक हो सकती है। अर्थात रिजर्व बैंक को बैंकों के लिए SLR की सीमा 40 प्रतिशत तक रखने का अधिकार भी है। यह RBI के ऊपर निर्भर करता है कि वह बाजार व अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इसे 0-40 प्रतिशत के बीच रख सकता है। मगर अधिकतर वाणिज्यिक बैंकें अपना SLR रिजर्व बैंक की ओर तय किए गए अनुपात से अधिक ही रखती हैं। वर्तमान में यह अनुपात 18 प्रतिशत है।
SLR की एक अच्छी बात यह है कि SLR के रूप में RBI के पास रखी गई रकम पर ब्याज भी मिलता है। मगर CRR के साथ ऐसा नहीं होता अर्थात CRR के केस में बैंक को RBI की तरफ से किसी प्रकार का ब्याज (Interest) नहीं मिलता है।
SLR क्यों जरूरी है?
RBI एसएलआर के रूप में बैंकों का कुछ पैसा अपने पास रखती है, जिसके निम्नलिखित कारण है।
- अर्थव्यवस्था में तरलता की मात्रा घटाना-बढ़ाना।
- बाजार को नियंत्रित रखना।
- बैंकों द्वारा जारी किए गए लोन की मात्रा को नियंत्रित करना।
- आकस्मिक मांगों के लिए तैयार रहना।
- अधिकतम निवेश में सहायता करना।
- विकास को बढ़ावा देना।
- सरकारी Bonds में निवेश को बढ़ावा देना etc.
क्या SLR बनाए रखना जरूरी है?
अगर कोई भारतीय बैंक RBI की ओर से तय किए गए निश्चित अनुपात में SLR बनाने में सफल नहीं होती है तो उसे पेनल्टी के रूप में बैंक रेट से 3 प्रतिशत अधिक सलाना पेनल्टी के रूप में अदा करने होते हैं। यह पेनल्टी 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, अगर वह पुरानी पेनल्टी को अदा नहीं करता है।