राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति, योग्यता रखने वाले किसी व्यक्ति को अनुच्छेद-76 के तहत अटॉर्नी जनरल अर्थात महान्यायवादी के रूप में नियुक्त कर सकता है। राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह महान्यायवादी को उसके पद से हटा सकता है। अटॉर्नी जनरल या महान्यायवादी किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पद मुक्त हो सकते हैं।
महान्यायवादी की शक्तियां, कार्य एवं अधिकार
महान्यायवादी सर्वप्रथम भारत सरकार का विधि अधिकारी (Law Officer) होता है। इसे भारत के किसी भी क्षेत्र में तथा किसी भी अदालत में सुनवाई का अधिकार होता है। इसके अलावा संसद के दोनों सदनों में बोलने अथवा कार्यवाही में भाग लेने या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में मताधिकार के बिना भाग लेने का भी अधिकार होता है।
भारत का महान्यायवादी न तो संसद का सदस्य होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है। लेकिन वह किसी भी सदन में अथवा उनकी समितियों में बोल सकता है, किंतु उसे मत देने का अधिकार नहीं है। यह अनुच्छेद-88 के अनुसार कहा गया है।
भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता है। अर्थात भारत सरकार द्वारा दिए गए कानूनी कार्यों को ही महान्यायवादी कर सकता है। भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद भी ग्रहण नहीं कर सकता। जब राष्ट्रपति महान्यायवादी से कोई सलाह लेता है तो राष्ट्रपति बाध्य नहीं है कि महान्यायवादी की बात को माना जाए।
जिन मामलों में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। इसके लिए उसे भारत सरकार से अनुमति लेनी होगी।