केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने केरल के अलुवा में स्थित एक बीज फार्म को देश का पहला कार्बन न्यूट्रल फार्म घोषित किया। कार्बन उत्सर्जन में कमी से कृषि विभाग के तहत बीज फार्म को कार्बन तटस्थ स्थिति प्राप्त करने में मदद मिली है।
कार्बन तटस्थ खेती का अर्थ
कार्बन तटस्थ तरीकों के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना, फसलों के रोटेशन (फसल बदलकर बोना), उर्वरता को अपनाना, सटीक तरीके से खेती करना, मिट्टी की सिंचाई के तरीके को अपनाना और उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग को सीमित करना, मिट्टी के क्षरण को रोकने और इस प्रकार कृषि में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम थे।
सरकार ने कृषि एवं मिट्टी की जांच के लिए केंद्रीय, राज्य, जिला एवं ब्लॉक स्तर पर विभिन्न कार्यालय स्थापित किए हुए हैं। जहां पर किसान अपनी मिट्टी का परिक्षण कर सकता है एवं यह सूचना प्राप्त कर सकता है कि उसकी मिट्टी में किस पोशक तत्व की कमी है।
कार्बन तटस्थ कृषि की आवश्यकता
उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां पर नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग औसत मात्रा से अधिक किया जाता है। जिसके कारण धीरे-धीरे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन भी एक कारण है। उदाहरण के तौर पर पंजाब व हरियाणा के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश का स्थान आता है। पंजाब तथा हरियाणा की जमीन वर्तमान में इस दशा पर आ चुकी है कि वहां पर बिना रासायनिक पदार्थों के खेती करना बहुत मुश्किल हो गया है। इसलिए सरकार ने इन रासायनिक उर्वरकों को कम करने के लिए कार्बन तटस्थ कृषि के तरोको को शामिल किया है।
केरल, भारत का कार्बन तटस्थ कृषि के तरीकों को पेश करने वाला पहला राज्य बन गया है। इसके लिए सरकार ने 2022-23 के बजट में 6 करोड़ रुपए का बजट तैयार किया है। इस तरीके के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन कम होगा तथा कार्बन को मिट्टी में जमा करने में मदद भी मिलेगी।