पिछवाई चित्रकला भारत की एक पारंपरिक चित्रकला शैली है, जिसका उद्गम राजस्थान के नाथद्वारा से माना जाता है। यह चित्रकला विशेष रूप से श्रीनाथजी (भगवान कृष्ण के एक रूप) की भक्ति में बनाई जाती है और उनका अद्वितीय चित्रण करती है। “पिछवाई” शब्द का अर्थ “पीछे” होता है, और इस कला में भगवान के पीछे पर्दों (या पिछवाई) पर सुंदर चित्र बनाए जाते हैं, जो मंदिरों में सजावट के रूप में इस्तेमाल होते हैं।
पिछवाई चित्रकला की विशेषताएँ:
1. विषय: इस चित्रकला में मुख्यतः भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न दृश्य जैसे रासलीला, माखन चोरी, गोवर्धन पूजा, और विभिन्न ऋतुओं का चित्रण किया जाता है।
2. रंग और सामग्री: पिछवाई चित्रकला में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है, जो स्थानीय वनस्पतियों, खनिजों और मिट्टी से बनाए जाते हैं। सोने और चांदी का भी उपयोग सजावट के लिए किया जाता है।
3. कला शैली: चित्रों में गहरे रंगों का प्रयोग, फूलों की सजावट, विस्तृत आभूषण, और कपड़े के डिजाइन प्रमुख होते हैं। चेहरे और भावों को बहुत बारीकी से उकेरा जाता है।
4.कपड़े पर चित्रण: ये चित्र कपड़े (कैनवास) पर बनाए जाते हैं, और इन्हें विशेष अवसरों या त्योहारों पर भगवान के पीछे लटकाया जाता है।
पिछवाई चित्रकला का महत्व:
पिछवाई चित्रकला न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक कला है, बल्कि यह भारतीय पारंपरिक चित्रकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह कला राजस्थान की समृद्ध विरासत को दर्शाती है और आज भी कलाकार इसे जीवित रखने के लिए कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में पिछवाई कला को बढ़ावा देने के लिए कई कलाकार और संगठनों द्वारा कार्य किए जा रहे हैं ताकि यह कला आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके।