वैगनर मूलतः एक जलवायु भूगोलवेत्ता था एवं उसका उद्देश्य भूतकाल की जलवायु परिवर्तन की व्याख्या करना था। उसने इसके लिए सिद्धांतत: जलवायु कटिबंधों की स्थिरता एवं महाद्वीपों के विस्थापन या हस्तांतरण को स्वीकार किया।
वेगनर का सिद्धांत कार्बोनिफरस काल से प्रारंभ होता है। तब एक वृहद महाद्वीप था, जिसे पैंजिया कहा, जो चारों ओर महासागरों से घिरा था, जो पैंथालसा कहलाया। पैंजिया के मध्य एक छिछला सागर या भूसन्नति था, जो टैथिस सागर था। टैथिस के एक और उत्तर की ओर अंगारालैंड एवं दक्षिण की ओर गोंडवाना भूमि था।
वृहत् महाद्वीप में गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता की स्थिति में आंतरिक तनाव के कारण विभाजन हुआ एवं वृहत् महाद्वीप कई खंडों में विभक्त हो गया। तनाव की क्रिया क्रमश: जारी रही एवं प्रत्येक खंड भी कई खंडों में विभक्त हो गया एवं वर्तमान महाद्वीपों की रचना इन खंडों के प्रवाहित होने से हुई है।
पैंजिया का विभाजन मुख्यत: गुरुवाकर्षण शक्ति में असमानता के कारण हुआ। प्रवाह दो दिशाओं में हुआ –
- उत्तर की ओर विषुवत रेखा की ओर जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति एवं प्लवनशीलता के बल के परिणामत: था।
- पश्चिम की ओर स्थानांतरण जो चंद्रमा एवं सूर्य के ज्वारीय बल के कारण हुआ।
गोंडवाना लैंड के विभाजन के फलस्वरुप भारतीय उपमहाद्वीप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील का पठार, अंटार्कटिका आदि बने। जबकि अंगारालैंड के विभाजन के फलस्वरुप रूसी प्लेटफार्म, उत्तर अमेरिकन कैनेडियन शिल्ड, चीन का पठार, साइबेरियन शील्ड बने।
स्पष्टत: पुरा महाद्वीपीय खंड उत्तर एवं पश्चिम की ओर प्रवाहित होने की प्रवृत्ति रखते थे जिससे वर्तमान महाद्वीपों की रचना हुई।
वैगनर ने कहा, उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका अभी भी गतिशील है, जबकि उत्तर की ओर गतिशीलता समाप्त हो चुकी है, चूंकि विषुवतरेखा का स्थानांतरण हो चुका है।
वेगनर ने महाद्वीप का विस्थापन के लिए जिन शक्तियों का उल्लेख किया वह अपर्याप्त एवं कमजोर हैं। यह वैगनर के सिद्धांत की आलोचना का कारण बना। लेकिन वैगनर ने अपने सिद्धांत की प्रमाणिकता के लिए जो प्रमाण जुटाए वो उसके सिद्धांतों की पुष्टि करते हैं।
वैगनर के सिद्धांत की प्रमाणिकता :
(1) पृथ्वी की आंतरिक संरचना का ज्ञान :
वैगनर के सिद्धांत के प्रस्तुतीकरण के समय यह साबित हो चुका था कि महाद्वीप की सतह सियाल की बनी है, जो कम घनत्व का है, एवं महासागरीय सतह सीमा की बनी है, जो अधिक घनत्व की है। सीमा की सतह चिपचिपी है और सियाल द्वारा निर्मित महाद्वीप सीमा में तैराव की स्थिति में है। तैराव के लिए शक्ति की आवश्यकता है, जो चंद्रमा के आकर्षण एवं गुरुत्वाकर्षण की शक्ति ही है। हालांकि तैराव का सिद्धांत लागू नहीं होता।
(2) महाद्वीपों की तटीय विशेषताओं के संदर्भ में प्रमाण :
- महाद्वीपों की तटीय स्थिति लगभग सीधी है, जो भ्रंश की संभावना को बतलाता है। भ्रंश कगार के बाद ही प्रवाह संभव है।
- महाद्वीपों की तटीय स्थलाकृति एक दूसरे से मेल खाती है। यह साम्यावस्था या Jig saw fit की स्थिति में है। दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका Jig saw fit की स्थिति में है। इसी तरह अन्य महाद्वीप भी Jig saw fit बनाते हैं, अर्थात महाद्वीपों के दोनों किनारे मिलाने पर मिल जाते हैं।
वैगनर का Jig saw fit कहीं-कहीं महाद्वीपीय किनारों पर नहीं मिलता, इसके लिए वैगनर ने अपरदन को कारण माना है। आधुनिक कंप्यूटर फिट से यह प्रमाणित होता है।
(3) मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति के संदर्भ में प्रमाण :
कैलिडोनियन एवं अल्पाइन पर्वतों को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने दो कैलिडोनियन पर्वतों की चर्चा की।
- एक कैलिडोनियन पर्वत अंगोला एवं नामीबिया के पठार के रूप में है, अपरदन के कारण एवं दूसरा ब्राजील की अपशिष्ट पहाड़ी डिलामर हिल के रूप में है, जो एक ही सीध में है, अतः यह स्पष्ट होता है कि ये दोनों कभी एक ही साथ जुड़े थे।
- कैलिडोनियन पर्वत जो स्कॉटलैंड, न्यूफाउंडलैंड की पहाड़ी एवं लारेशियन शील्ड के रूप में स्थित है और तीनों एक ही सीध में है। अतः ये सभी स्थल कभी एक होंगे।
अल्पाइन कालिन नवीन वलित पर्वतों के निर्माण की भी व्याख्या की। उत्तर की ओर प्रवाहित महाद्वीपों के कारण अफ्रीका एवं यूरेशिया के खंड निकट आए, टेथिस में निक्षेप होने से विभिन्न अल्पाइन पर्वतों का निर्माण हुआ।
पश्चिम की ओर प्रवाह के कारण उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी किनारों के समुद्रतलीय चट्टानों के रुकावट के कारण मोड़दार पर्वतों एण्डिज एवं रॉकी की रचना हुई।
चूंकि एण्डीज एवं रॉकी का भौगोलिक वितरण देशांतरीय है और चंद्रमा का प्रभाव भी देशांतरीय है अतः ज्वारीय बल को प्रवाह का एक महत्वपूर्ण कारण माना।
(4) सभी प्राचीन पठारो पर एक ही प्रकार की चट्टानें पायी जाती हैं। ये सभी एक ही युग के एवं एक समय के बने हैं तथा सभी में ग्रेनाइट की प्रधानता है अर्थात प्राचीन पठारो की संरचनात्मक समानता को आधार बनाया।
(5) महाद्वीपों के निकट स्थित द्वीप महाद्वीपों के संरचना से मेल खाते हैं। कैरीबियन द्वीपों का उदाहरण दिया जो पश्चिम की ओर गतिशील है।
(6) कार्बोनिफेरस हिमानीकरण का प्रमाण सभी द्वीपों पर मिलता है अतः कभी वे एक थे।
(7) अटलांटिक के दोनों और पाए जाने मेसोसौरम, ग्लोप्सप्टोरिस वनस्पति एवं सरीसृप भी महाद्वीपों के एक होने की पुष्टि करते हैं।
(8) स्कैण्डेनेविया में पाए जाने वाला लेमिंग जंतु पश्चिम की ओर स्थानांतरण करते अटलांटिक महासागर में डूब जाते हैं। अतः महाद्वीपों के एक होने की अवस्था में यह कभी पश्चिम की ओर जाते होंगे।
(9) ग्रीनलैंड पश्चिम की ओर गतिशील है।
अतः उपर्युक्त आधार वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन की पुष्टि करते हैं।
यहां पर प्रमाणों के साथ-साथ आलोचना भी की गई है, जैसे – वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की कई आधार पर आलोचना की गई फिर भी उसके महाद्वीपीय गतिशीलता के आधार पर कई भूगोलवेत्ताओं ने आगे का कार्य किया एवं महाद्वीपीय विस्थापन से संबंधित महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए।
वेगनर के सिद्धांत की आलोचना का प्रमुख आधार विस्थापन या प्रवाह के लिए उत्तरदायी शाक्तियां ही थी।
- वेगनर ने पश्चिम की ओर प्रवाह के लिए चंद्रमा के ज्वारीय बल को उत्तरदायी माना लेकिन इतने बड़े पैमाने पर प्रवाह के लिए वर्तमान ज्वारीय बल की अपेक्षा 1000 करोड़ गुना अधिक शक्ति की आवश्यकता है, अगर इतनी शक्ति है तो व पृथ्वी के परिभ्रमण को रोक देगा। पृथ्वी के घूर्णन के रुकने का कोई प्रमाण नहीं है।
- ‘Jig saw fit’ की भी आलोचना की गई है। कहीं-कहीं दो तटों के बीच 200 किमी तक का अंतर है। ऐसा ब्राजील एवं गिनी तट के बीच है।
- यह विचार के महाद्वीप उत्तर एवं पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रहे हैं, एक भ्रामक है।
- महासागरीय मध्यवर्ती कटक की स्थिति की व्याख्या नहीं कर पाए।
- यदि सियाल सीमा के ऊपर तैराव की स्थिति में है, तब रॉकी एवं एण्डीज की उत्पत्ति महासागरीय तल के रुकावट से कैसे हो सकती है। इसकी व्याख्या नहीं कर पाए। साथ ही यह वैगनर की मान्यताओं को ही काटता है।
परंतु वैगनर के सिद्धांत की आलोचना के बावजूद उनके प्रमाणों को अस्वीकृत करना आसान नहीं था। अतः होम्स, हेरीहेस, नासा, प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत, पूरा चुंबकत्व एवं चुंबकीय विसंगति के सिद्धांत द्वारा इसे अपने-अपने ढंग द्वारा विश्लेषण करने का प्रयास किया गया लेकिन किसी भी सिद्धांत द्वारा इस रिपोर्ट को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया गया। फिर भी आधुनिक सिद्धांतों में भी इसकी उपयोगिता बनी रहे।
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