पृथ्वी की आंतरिक संरचना | पृथ्वी की भूगर्भिक संरचना का सामान्य वर्गीकरण

भूकंपीय तरंगों एवं सिस्मोग्राफ के गहन अध्ययन द्वारा भूगर्भिक संरचना को समझने में सहायता प्राप्त हुई है। विभिन्न भूकंपीय तरंगों की गति एवं पृथ्वी की भूगर्भ में उपस्थिति के आधार पर पृथ्वी को 3 मुख्य संकेंद्रीय परतों में विभाजित किया जा सकता है –

  •  भूपटल या क्रस्ट
  •  मेंटल या प्रवार
  •  क्रोड या आंतरिक भाग

पृथ्वी की आंतरिक संरचना 

पुनः भूकंप की तरंगों के सूक्ष्म विश्लेषण पर 5 असंगत परतों की स्थिति भी ज्ञात हुई है, जहां तरंगों की गति में अचानक परिवर्तन होता है:

  1. मोहो असम्बद्धता :  भूपटल एवं मेंटल के संपर्क क्षेत्र में 30 से 35 किमी की गहराई पर स्थित।
  2. गुटेनवर्ग असम्बद्धता :  मेंटल एवं क्रोड के मध्य संक्रमण क्षेत्र में 2900 किमी की गहराई पर स्थित।
  3. कोनार्ड असम्बद्धता :  ऊपरी भूपटल एवं निचली भूपटल के मध्य स्थित संक्रमण परत।
  4. रेपती असम्बद्धता :  ऊपरी मेंटल एवं निकली मेंटल के मध्य संक्रमण क्षेत्र में 700 किमी की गहराई पर स्थित है।
  5. लेहमेन असम्बद्धता :  बाहरी एवं आंतरिक क्रोड के मध्य 5150 किमी की गहराई पर स्थित।

स्पष्टत: पृथ्वी के भूगर्भ की संरचना में एकरूपता नहीं पायी जाती, बल्कि जटिल संरचना पायी जाती है। इसे निम्न वर्गीकरण के अंतर्गत समझा जा सकता है।

भूपटल या क्रस्ट :

यह पृथ्वी की बाहरी एवं सर्वाधिक पतली परत है, जिसकी औसत मोटाई 33 किमी है। महाद्वीपीय भाग में लगभग 50 किमी एवं महासागरीय भागों में 5 किमी की परत है। कहीं-कहीं इसकी मोटाई 100 किमी तक पायी जाती है। यह परत विभिन्न प्रकार की शैलों से निर्मित है। इसके ऊपरी भाग में अवसादी चट्टानों की परत है, जो विछिन्न रूप में पाए जाते हैं, अर्थात धरातल के ऊपरी परत में इसका वितरण एक समान नहीं है। अवसादी परत की मोटाई सामान्यतः 4 किमी से कम है, लेकिन मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र में 32 किमी या अधिक तक भी गहरी है। अवसादी चट्टानी परतों के नीचे ग्रेनाइट एवं नीस जैसी रवेदार चट्टानों वाली परत पायी जाती है। भूपटल के निचले भागों में बेसाल्ट चट्टाने पाई जाती है। महासागरीय नितल में बेसाल्ट चट्टाने पायी जाती हैं। भूपटल का औसत घनत्व 2.8 है।

स्पष्टत: भूपटल को दो भागों में बांटा जा सकता है।

  1. ऊपरी परत :  यह ग्रेनाइट से निर्मित परत है, जो महाद्वीपीय भागों में असम्बद्ध रूप से पायी जाती है। इसमें सिलिका एवं एलुमिनियम की प्रधानता है। इसे सियाल (SIAL) परत भी कहा जाता है। इसका औसत घनत्व 2.65 है।
  2. निचली परत : भूपटल के निम्न परत में वेसाल्ट चट्टानों की संबंद्ध/अविच्छिन्न पायी जाती है। इससे ही महासागरीय सतह का निर्माण हुआ है। यह परत महाद्वीपों के निचले भागों में भी पायी जाती है। इस निम्न परत का औसत घनत्व 3.0 है। यह प्रथम मुख्य मुख्यत: सिलिका एवं मैग्नीशियम से मिलकर बनी है। इस परत को सीमा भी कहा जाता है।

जबकि स्वेश ने सीमा को पृथ्वी के भूगर्भ की मध्यवर्ती परत कहा था, जो मेंटल के रूप में वर्तमान में मान्य है।

प्रवार या मेण्टल :

यह भूपटल एवं केंद्रीय परत के मध्य स्थित मोटी परत है। यह मोहो असम्बद्धता से लगभग 2900 किमी की गहराई तक विस्तृत है एवं गुटेनबर्ग असम्बद्धता द्वारा क्रोड (Core) से अलग होती है। यह ठोस अवस्था में है, जिसके कारण P एवं S दोनों तरंगे यहां तीव्रता से गमन करती हैं। यहां ऊपरी भाग का घनत्व 3 से 3.5 तथा निचले भाग का घनत्व 4.5 से 5.5 है। मेण्टल सघन एवं कठोर शैलों से निर्मित है। इसमें मैग्नीशियम एवं लोहा जैसे भारी खनिजों की प्रधानता है। ये शैले डयूनाइट एवं पेरिडोटाइट के समान है। 

मैण्टल को विभिन्न खनिजों का स्थिति के आधार पर कई पतली परतों में विभाजित किया जा सकता है, लेकिन मुख्य दो भागों में बांटा जाता है :

  •  ऊपरी मेण्टल या दुर्बल मंडल
  •  निचली मेण्टल या मध्य मंडल

दुर्बल मण्डल की ऊपरी परत लगभग तरल अवस्था में चिपचिपे रूप में है। इसे प्लास्टिक परत कहा जाता है। यहां भूकंपीय तरंगों की गति कम हो जाती है, इसी कारण इसे निम्न गति का मण्डल कहा जाता है। प्लास्टिक दुर्बल मण्डल के नीचे का दुर्बल मंडल, मध्य मण्डल या निचली मैण्टल की तरह ही ठोस अवस्था में है। मोहो असम्बद्धता से 200 किमी गहराई तक 100 से 200 किमी के मध्य प्लास्टिक दुर्बल मण्डल की स्थिति, 200 किमी से 700 किमी के मध्य ठोस दुर्बल मण्डल की स्थिति तथा 700 किमी से 2900 किमी तक मध्य मेण्टल या निचले मैण्टल की स्थिति है।

भूपटल एवं मैण्टल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमण्डल का निर्माण करता है, यह मुख्यतः बेलोचदार चट्टानों से निर्मित हैं। स्थलमंडल की औसत मोटाई 70 से 100 किमी तक है। इसके नीचे ही 200 किमी की गहराई तक दुर्बल मंडल का प्लास्टिक अथवा अपेक्षाकृत पिघला हुआ भाग स्थित है। प्लास्टिक दुर्बल मण्डल की औसत मोटाई 130 से 160 किमी है। प्लास्टिक दुर्बल मण्डल के ऊपर अपेक्षाकृत पतला स्थलमंडल स्थित है, जो अस्थिर अवस्था में है और दुर्बल मंडल से उत्पन्न होने वाले संवाहनिक तरंगों के द्वारा निरूपित हो जाती है। प्लेट की स्थिति स्थलमंडल में ही है। सागर नितल प्रसरण, प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत तथा पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी क्रिया, भूकंप इत्यादि भूगर्भिक क्रियाओं को अस्थिर स्थलमण्डल एवं प्लास्टिक दुर्बल मण्डल की स्थिति विशेषण से ही समझा जा सकता है।

क्रोड या अन्तरम/कोर:

क्रोड की स्थिति केंद्रीय है। 2900 किमी के बाद पृथ्वी के केन्द्र (6371 km) तक स्थित है। निकेल एवं लोहा, निफे (Nikil & Ferus) के द्वारा इसका निर्माण हुआ है। क्रोड के दो भाग हैं –

  •  बाह्य कोर
  •  आंतरिक कोर

वाह्य कोर का विस्तार 2900 किमी से 5150 किमी तक है और यह तरल अवस्था में है। यहां प्रवेश करते ही S तरंगे विलुप्त हो जाती हैं और P तरंगों की गति यहां कम हो जाती है।

आंतरिक कोर ठोस अवस्था में है। यहां P तरंगों की गति (13.5 km/s) सर्वाधिक होती है। अधिक दबाव के कारण ही यहां लोहा ठोस अवस्था में पाया जाता है और आंतरिक कोर ठोस है। आंतरिक कोर की त्रिज्या लगभग 1250 किमी है, जबकि बाह्य कोर की मोटाई 2250 किमी है। कोर की त्रिज्या 3500 किमी है, जो पृथ्वी की त्रिज्या का लगभग आधा है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित अन्य मुख्य तथ्य :

  • भौतिक गुणों के आधार पर सतह से केंद्र की ओर क्रमशः स्थलमंडल, दुर्बल मंडल, मध्य मंडल एवं केंद्र मंडल स्थित है।
  • मेंटल की मोटाई पृथ्वी की त्रिज्या के आधे से कम है, परंतु पृथ्वी के समस्त आयतन का 83% तथा द्रव्यमान का 68% भाग मेंटल में पाया जाता है।
  • क्रोड की मोटाई पृथ्वी की त्रिज्या के आधे से अधिक है, क्रोड का घनत्व मेंटल के घनत्व के 2 गुना से अधिक है, परंतु आयतन समस्त पृथ्वी का मात्र 16% तथा पृथ्वी के संपूर्ण द्रव्यमान का मात्र 32% ही है।
  • पृथ्वी को सतह से केन्द्र तक क्रमशः तीन मण्डलों में बांटा जाता है।
  1.  स्थलमंडल (Lithosphere) 100 km तक,
  2.  पायरोस्फीयर (Pyrosphere) 100 km से 2880 km तक,
  3.  बैरीस्फीयर (Barysphere) 2880 km से केंद्र तक।
  • स्वेश ने पृथ्वी को सतह से केंद्र तक क्रमशः  सियाल, सीमा तथा नीफे में विभाजित किया था।
  • सियाल :  इसका निर्माण सिलिकॉन एवं एलुमिनियम से हुआ है। इसमें तेजाबी पदार्थों की अधिकता है। इसमें ग्रेनाइट चट्टानों की अधिकता है। महाद्वीपों की रचना सियाल से ही हुई है। सियाल की औसत गहराई स्वेश ने 50 से 300 किमी माना था, घनत्व 2.75 से 2.90 माना था।
  • सीमा :  इसका निर्माण सिलिकॉन एवं मैग्नीशियम से हुआ है। इसमें क्षारीय पदार्थों की अधिकता है। यहां मुख्यतः बेसाल्टिक चट्टाने पाई जाती हैं। महासागरीय नितल का निर्माण सीमा से ही हुआ है। स्वेश के अनुसार ज्वालामुखी उद्गार के समय यहां से गर्म एवं तरल लावा बाहर आता है। इसका औसत घनत्व 2.9 से 4.7 है। गहराई 1000 से 2000 किमी तक है।
  • निफे :  इसका निर्माण निकिल एवं फेरस (Nife) से हुआ है। इसका घनत्व 11 है।
  • होम्स ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को भूपटल व अध: स्तर में बांटा है। भूपटल में सियाल एवं ऊपरी सीमा सम्मिलित है, जबकि अध: स्तर में निचली सीमा एवं निफे सम्मिलित है। अध: स्तर में अधिक तापमान के कारण ऊर्जा तरंगे उत्पन्न होती हैं।

पृथ्वी की सतह से गहराई में तापमान का आकलन

  1. पृथ्वी की सतह से 100 किमी गहराई पर तापमान 1100 से 1200 डिग्री सेंटीग्रेड के करीब है। यहां प्लास्टिक दुर्बल मंडल की स्थिति है।
  2. 2900 किमी की गहराई पर 3700 डिग्री सेल्सियस तापमान का आंकलन है।
  3. कोर का अधिकतम तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस है।
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