Internal Structure of the Earth in Hindi | पृथ्वी की आंतरिक संरचना | पृथ्वी की संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना में पर्याप्त विविधता पाई जाती है। यह विभिन्नता पदार्थों की संरचना, पदार्थों की अवस्था, घनत्व तथा पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों एवं खनिजों के रूप में पाई जाती है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना की विशेषताओं से संबंधित कई कार्य किए गए। जैसे स्वेश का कार्य, आर्थर होम्स का कार्य महत्वपूर्ण है, लेकिन भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर सर्वाधिक वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त हुई है।
हालांकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना का ज्ञान परोक्ष प्रमाणों पर ही आधारित है, जिनमें अनेक जटिल विभिन्न विधियों तथा सूक्ष्म वैज्ञानिक यंत्र की सहायता ली जाती है। भू-भौतिकी एवं भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जटिलताओं को समझने में आसानी हुई है।

पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है, जबकि भूपटल का 2.8 तथा पृथ्वी के केंद्रीय भाग का 13 है। जैसे-जैसे सतह/धरातल से केंद्र की ओर जाते हैं पदार्थ का भार बढ़ता जाता है। पृथ्वी के केंद्र में Fe एवं Ni पाये जाते हैं, पृथ्वी के चुंबकत्व का कारण भी यही है।

पृथ्वी के सतह से केंद्र की ओर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। तापमान बढ़ने की दर 1 डिग्री सेल्सियस प्रति 32 मीटर है। इस दर से तापमान बढ़ने पर 96 किमी (लगभग 100 किमी) की गहराई पर तापमान में इतनी अधिक वृद्धि हो जाएगी कि वहां खनिज ठोस अवस्था में नहीं रह सकता। पृथ्वी के भूगर्भ में दुर्बल मंडल के चिपचिपे होने का यही कारण है।

हालांकि ताप बढ़ने की दर बनी रहने से पृथ्वी के केंद्रीय भाग को द्रव अवस्था में होना चाहिए लेकिन केंद्रीय भाग ठोस अवस्था में है।

केंद्रीय भाग के ठोस अवस्था में होने के कुछ प्रमाण है।

  1. ज्वार के समय समस्त पृथ्वी पिण्ड एक ठोस गोले की तरह व्यवहार करता है।
  2. भूकंप तरंगे पृथ्वी में बहुत अधिक गहराई तक उसी प्रकार चली जाती है, जिस प्रकार कि वे एक ठोस पिंड से होकर गमन करती हैं। स्पष्टत: तापमान में क्रमशः वृद्धि होने के बावजूद केंद्रीय परत द्रव अवस्था में नहीं है। इसका कारण भूगर्भ पर पड़ने वाले भारी दबाव की प्रकृति है। दबाव बढ़ने से पदार्थ का द्रवणांक बढ़ जाता है, और अधिक ताप पर भी वह ठोस अवस्था में बना रहता है।
  3. भू-भौतिक अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि ताप वृद्धि दर गहराई में जाने पर कम हो जाती है।
  4. चूंकि पृथ्वी की ऊपरी परतों में रेडियो सक्रिय तत्व की उपलब्धता अधिक रहती है, जबकि अधिक गहराई में यह काफी कम मात्रा में पाए जाते हैं, फलस्वरुप अधिक गहराई की परतों में ठोस पदार्थ पाए जाते हैं।

उपरोक्त आधारों पर ही पृथ्वी को ठोस माना गया।

भूकंपीय तरंगों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन :

भूकंपीय तरंगों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने में आसानी हुई है। भूकंप के दौरान मुख्यत: तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगों की उत्पत्ति होती है –

  •  प्राथमिक या प्रधान तरंगे (P. Waves)
  •  द्वितीय या गौण तरंगे (S. Waves)
  •  धरातलीय तरंगे (L. Waves)

इनमें प्रधान तरंगे सभी घनत्व की चट्टानों – ठोस द्रव तथा गैस पदार्थों से गुजरती हैं। गौंण तरंगे केवल ठोस पदार्थ से गुजरती हैं। धरातलीय तरंगे धरातल पर गुजरती हैं। ये तरंगे माध्यम के घनत्व से प्रभावित होती हैं और माध्यम के घनत्व में वृद्धि के साथ ही इनका वेग बढ़ता जाता है।

भूकंप तरंगों की मुख्य विशेषता दो भिन्न घनत्व एवं गुणों वाले क्षेत्रों में दिखती है। जब भी भूकंपीय तरंगे दो विभिन्न पदार्थों वाले सीमा पर मिलती हैं तो वे मुड़ जाती हैं, तरंगों का मुड़ना इनकी गति पर निर्भर करता है।

जब भूकंपीय तरंग एक गुणों वाली सतह से दूसरी गुणों वाली सतह में प्रवेश करती है तो वेग कम होने पर तरंगों का अपवर्तन एवं दिशा में बदलाव होता है।

सामान्यतः भूकंपीय तरंगे भूकंप केंद्र से प्रारंभ होकर सभी दिशाओं में धरातल की ओर चलती है। यदि पृथ्वी की भूगर्भिक संरचना में समानता पाई जाती तो ये लहरें सीधी रेखा में ही आगे बढ़ती, लेकिन पृथ्वी की भूगर्भिक संरचना में पर्याप्त भिन्नता है। अतः इन तरंगों की दिशा और गति एक समान नहीं रहती। भूगर्भ में जहां भी घनत्व में भिन्नता पाई जाती है, अर्थात दो भिन्न घनत्व के स्तर मिलते हैं, वही इन तरंगों में अपवर्तन और परावर्तन हो जाता है।

भूगर्भ में दो भिन्न घनत्व के स्तरों को अलग करने वाले तल को असंगति तल कहते हैं। भूगर्भ में लहरों के मुड़ जाने से कुछ प्रदेश इनसे प्रभावी नहीं होते हैं, ऐसे प्रदेशों को छाया प्रदेश कहा जाता है।

भूकंपीय लहरों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी के भूगर्भ में जाने वाली लहरों की गति भूतल में गहराई के अनुसार बढ़ती जाती है, लेकिन उसके बाद लहरों की गति में परिवर्तन क्रमिक न होकर अचानक होने लगता है।

  • S लहरें 2900 किमी (2895 किमी) तक पहुंचकर समाप्त हो जाती है। चूंकि S तरंग तरल माध्यम से नहीं गुजरती इसलिए यह अनुमान लगाया गया कि क्रोड का वह भाग जहां ये लहरें नहीं गुजर नहीं पहुंच पाती, वह तरल अवस्था में होगा।
  • P लहरें पृथ्वी के केंद्रीय भाग तक सरलता से पहुंचती है, लेकिन 2900 किमी की गहराई के बाद इनकी गति कम हो जाती है, पुनः 5150 किमी के बाद P तरंग की गति बढ़ जाती है, जिससे यह साबित होता है कि क्रोड का आंतरिक भाग ठोस एवं अधिक घनत्व का है।
  • L तरंगे उत्पत्ति स्थान से सर्वप्रथम कंपन केंद्र (भूकंप केंद्र) तक पहुंचती है, फिर धरातल की परिक्रमा करती है। L लहरें महाद्वीपों की अपेक्षा सागर तल में अधिक तेजी से चलती हैं, इससे यह स्पष्ट होता है कि महाद्वीपों की अपेक्षा महासागरीय तली भारी पदार्थों से बनी है। इन लहरों का वेग अटलांटिक महासागर की तुलना में प्रशांत महासागर में अधिक पाया जाता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अटलांटिक महासागर की तली में हल्के ग्रेनाइट पदार्थ की अधिकता है। नवीनतम अध्ययनों में P एवं S तरंगों में कुछ नवीन प्रकारों का भी पता चला जो Pg एवं Sg तथा P*-S* है। इन तरंगों के अध्ययन के आधार पर भी भूगर्भिक संरचना के जटिल विशेषताओं की जानकारी प्राप्त होती है।

Pg – Sg तरंगे :

1909 में युगोस्लाविया की कल्पा घाटी में आए भूकंप में से Pg एवं Sg तरंगों का पता चला। इनकी विशेषताएं P एवं S तरंगों के समान है, परंतु इसकी गति P एवं S से कम होती है।

0 से 200 किमी तक Pg की गति 5.6 किमी प्रति सेकंड तथा Sg की गति 3.4 किमी प्रति सेकंड होती है। Pg-Sg तरंगे पृथ्वी की ऊपरी परत से होकर भ्रमण करती हैं। Pg-Sg तरंगे इस गति से केवल पृथ्वी की ऊपरी परत में ही भ्रमण करती हैं।

भू-वैज्ञानिक अध्ययनों से के आधार पर यह पाया गया है कि Pg-Sg तरंगे इस गति से केवल ग्रेनाइट चट्टानों में ही भ्रमण करती हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अवसादी चट्टानों की ऊपरी परत के नीचे स्थित भू-पटल की ऊपरी परत ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित है। 

P* – S* तरंगे :

1923 में ऑस्ट्रेलिया में आए भूकंप के अध्ययन के आधार पर कोनार्ड ने P* तरंग का पता लगाया। इसकी गति P एवं Pg के मध्य होती है। जेफ्रीज ने 1926 में S* तरंग का पता लगाया, जिसकी गति S एवं Sg के मध्य होती है। P*-S* तरंगों के द्वारा भूपटल के नीचे के बेसाल्ट युक्त मध्यवर्ती परत के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। P* की गति 6 से 7.2 किमी प्रति सेकंड तथा S* गति 3.5 से 4 किमी प्रति सेकंड होती है।

उपरोक्त तरंगों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में निम्नलिखित जानकारियां प्राप्त हुई है।

(1) पृथ्वी को सतह से केंद्र तक कई संकेंद्रीय परतों में विभाजित किया जा सकता है। सामान्यतः तीन मुख्य विभाजन किया गया है :

  •  भूपटल या क्रस्ट
  •  प्रवार या मेंटल
  •  अंतरम या क्रोड

भूपटल की औसत गहराई 33 किमी, प्रवार की 2900 किमी, केंद्र (6371 किमी) तक क्रोड की स्थिति है।

(2) भूपटल एवं मेंटल के संपर्क क्षेत्र को मोहोरोवीसिक असम्बद्धता कहा जाता है। यहां की चट्टाने ऊपरी एवं निचली परत की चट्टानों की तुलना में भिन्न रासायनिक संरचना की है। यहां P तरंगों की गति अचानक तीव्र हो जाती है। ऊपरी परत की 6-7 किमी प्रति सेकंड की तुलना में यहां 8.2 किमी प्रति सेकंड की गति पायी जाती है। महाद्वपीय धरातल के सामान्य 30 से 35 किमी की गहराई पर मोहोअसम्बद्धता पायी जाती है।

(3) मेंटल में 100 से 200 किमी की गहराई पर भूकंपीय तरंगों की गति मंद हो जाती है। यहां सामान्यतः 7 से 8 किमी प्रति सेकंड की गति पायी जाती है। इस भाग को निम्न गति का मण्डल भी कहा जाता है, (Low Velocity Zone-LVZ)। इसकी स्थिति दुर्बल मण्डल के ऊपरी भाग में है। इसे प्लास्टिक दुर्बल मंडल भी कहा जाता है। यह परत अपेक्षाकृत पिघली हुई अवस्था या प्लास्टिक अवस्था के रूप में पाई जाती है।

(4) मेंटल या क्रोड की सीमा पर घनत्व में अचानक परिवर्तन होता है। यहां पर मेंटल का घनत्व 5.5 है, जबकि नीचे के कोर का घनत्व 10 है। घनत्व में परिवर्तन होने के कारण P तरंगों के वेग में तीव्र एवं अचानक वृद्धि होती है जो 13.6 किमी प्रति सेकंड है। इस सीमा को गुटेनबर्ग या विचर्ट असम्बद्धता कहा जाता है। यह 2900 किमी की गहराई पर पायी जाती है।

(5) क्रोड को बाहरी क्रोड एवं आंतरिक क्रोड में बांटा जाता है, जिसका कारण अवस्था में अंतर होना है। बाहरी क्रोड तरल अवस्था में है, जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। चूंकि S तरंगे बाहरी क्रोड में प्रवेश करते ही विलुप्त हो जाती हैं और S तरंगे केवल ठोस माध्यम में ही गमन करती हैं, पुनः P तरंगों का वेग 13.6 किमी प्रति सेकंड से घटकर 8 किमी प्रति सेकंड हो जाता है। इस तरह बाहरी कोर की स्थिति तरल स्वीकारी गई है।

5150 किमी गहराई के बाद P तरंगों की गति पुनः तीव्र हो जाती है, जिससे निष्कर्ष निकलता है, कि आंतरिक क्रोड की स्थिति ठोस है। चूंकि उच्च दबाव के कारण लोहा ठोस में परिवर्तित हो जाएगा।

बाहरी और आंतरिक क्रोड के बीच 5150 किमी की गहराई पर लेहमेन असम्बद्धता पायी जाती है।

(6) मेंटल को भी दुर्बल मण्डल तथा मध्य मण्डल में बांटा जाता है। दोनों के मध्य अर्थात बाहरी एवं आंतरिक मण्डल के मध्य रेपती असम्बद्धता की स्थिति है। दुर्बल मण्डल की ऊपरी परत में प्लास्टिक दुर्बल मण्डल (100 से 200 किमी गहराई तक) तथा 700 किमी की गहराई तक ठोस दुर्बल मण्डल की स्थिति है। इसके नीचे 2900 किमी तक मध्य मण्डल की स्थिति है।

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