कटक की उत्पत्ति | अटलांटिक महासागर की तलीय स्थलाकृति | महासागर की तलीय स्थलाकृति

मध्यवर्ती कटक की उत्पत्ति एवं विस्तार

अटलांटिक महासागर में स्थलाकृतियों का विवरण :

  1. महासागरीय मग्न तट
  2. महासागरीय मग्न ढाल
  3. महासागरीय मध्यवर्ती कटक
  4. महासागरीय मैदान
  5. महासागरीय गर्त

अटलांटिक महासागर विश्व का दूसरा बड़ा महासागर है। इसका विस्तार 8.2 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्र पर लगभग ‘S’ आकार का है। इसकी आकृति एवं नितल उच्चावच विशेषताओं का निर्धारण विवर्तनिक क्रियाएं, अपक्षय, अपरदन, निक्षेपन, हिमानीकरण जैसे विविध कारणों से हुआ है। अटलांटिक महासागर अत्यंत विषम संरचना एवं उच्चावच का क्षेत्र है। जिसका ज्ञान मर्रे के चैलेंजर अभियान के बाद हो सका। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ध्वनि तरंगों द्वारा गहराई मापने की विधि का विकास और 1975 के बाद उपग्रहों के द्वारा सागर नितल की जटिलताओं का ज्ञान होने के बाद सागर नितल की कई प्रमुख और कई अन्य जटिल स्थलाकृतियां व ज्ञान प्राप्त हुआ।

विभिन्न समुद्री अनुसंधानों के बाद ज्ञात महासागरीय नितल की प्रमुख कृतियां निम्न हैं।

  1.  महाद्वीपीय मग्न तट
  2.  महाद्वीपीय मग्न ढाल
  3.  महासागरीय मध्यवर्ती कटक
  4.  गहन सागरीय मैदान
  5.  गहन सागरीय गर्त

अन्य स्थलाकृतियों जैसे समुद्री पहाड़ी, समुद्री पठार, ज्वालामुखी पठार, गियोट, कंदरा, प्रवाल संरचना, लैगून, ज्वालामुखी द्वीप इत्यादि इन स्थलाकृतियों को निम्न डायग्राम से समझा जा सकता है।

महाद्वीपीय मग्न तट : महाद्वीपों से संलग्न मग्नढाल का क्षेत्र है। इसका विस्तार 200 मीटर की गहराई तक 13.8 प्रतिशत भाग पर है, जबकि सभी महासागरों का 7.6 प्रतिशत भाग मग्न तट के अंतर्गत आता है। अटलांटिक में मग्न तट की चौड़ाई अन्य महासागर की तुलना में अधिक है। इसका कारण यहां प्लास्टीसीन हिमानीकरण के समय बड़े पैमाने पर निक्षेपण की क्रिया है। पुनः यहां कई क्षेत्रों में उत्थान भी हुए हैं। ग्रांड बैंक एवं जाजैस बैंक के मग्न तट अधिक जोड़े हैं। जिसका कारण यहां उत्थान का होना है।

महाद्वीपीय मग्नढाल : मग्नतट के आगे अपेक्षाकृत तीव्र ढाल वाले क्षेत्र मग्नढाल कहलाता है। मग्न तट का ढाल 1 प्रतिशत से 3 प्रतिशत और मग्नढाल 2 प्रतिशत से 5 प्रतिशत होता है। अटलांटिक के 7 प्रतिशत भाग पर मग्न ढाल का विस्तार है जबकि कुल महासागरों के 4.3 प्रतिशत भाग पर मग्नढाल विस्तृत है। इसकी सामान्य गहराई 200 से 1000 मीटर मानी जाती है। इसके कम विस्तार का कारण इसके तीव्र ढाल का होना है। इसकी उत्पत्ति का सामान्य कारण मग्नतट में उत्थान की क्रिया है।
महाद्वीपीय मग्नतट एवं मग्नढाल महाद्वीपों का ही समुद्री क्षेत्र में विस्तार है। इसी कारण यह ग्रेनाइट संरचना का क्षेत्र है। महाद्वीपीय मग्नतट एवं मग्नढाल के क्षेत्र प्लीस्टोसीन हिमानीकरण की समाप्ति के बाद समुद्र तल के ऊपर आने से समुद्र के अंग बन गए अर्थात महाद्वीपीय क्षेत्र के समुद्र में डूबने से मग्नतट एवं मग्नढाल का विकास हुआ।
मध्य महासागरीय कटक मध्यवर्ती कटक महासागरों के लगभग मध्य में स्थित अपेक्षाकृत ऊंचा क्षेत्र है। अटलांटिक महासागर मध्यवर्ती कटक पूर्णतः आदर्श रूप में पाई जाती है। इसकी सामान्य ऊंचाई 3000 से 4000 मीटर है। यह बेसाल्टिक संरचना का चित्र है। मध्यवर्ती कटक का विस्तार उत्तर में आईसलैंड से दक्षिण में बोवाट द्वीप तक करीब 14000 किमी की लंबाई में लगभग S आकार में है। इसके S आकार के निर्धारण में अपसारी प्लेट प्रक्रिया का योगदान है। यह विश्व का मुख्य विवर्तनिक क्षेत्र है और यहां कई ज्वालामुखी पर्वत एवं ज्वालामुखी द्वीप पाए जाते हैं। अपसारी प्लेट सीमांत पर स्थित होने के कारण यह विश्व की प्रमुख भूकंप पेटी भी है। स्पष्ट मध्यवर्ती अटलांटिक कटक महासागर के सर्वाधिक ऊंचे स्थलाकृतिक के साथ ही सर्वाधिक सक्रिय क्षेत्र हैं।
उत्पत्ति : मध्यवर्ती अटलांटिक कटक की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप भूगर्भ के मैग्मा, लावा पदार्थ के समुद्री सतह पर आकर क्रमशः एकत्रित होने से हुई है। मध्यवर्ती कटक की स्थिति प्लेटों के अपसारी सीमांत के सहारे हैं। महासागरों के मध्यवर्ती क्षेत्र में जहां दो महासागरीय प्लेटें एक दूसरे के विपरीत दिशा में विस्थापित होती हैं। वहां इसी तरंगों के माध्यम से भूगर्भ का पिघला हुआ बैसाल्ट सतह की ओर आता है, और कर्म से एकत्रित हो जाता हो जाता है जिससे बेसाल्ट युक्त मध्यवर्ती कटक की उत्पत्ति होती है।
मध्यवर्ती कटक के दोनों ओर महासागरीय प्लेट में अपसरण की क्रिया वर्तमान मेंं भी जारी है। इस प्रक्रिया से मध्यवर्ती कटक के क्षेत्र में नवीन बेसाल्ट का आगमन होता रहता है। यही कारण है कि यहां कई सक्रिय ज्वालामुखी भी पाए जाते हैं। मध्यवर्ती कटक के दोनों ओर प्लेटो के विस्थापन के कारण सागर नितल में प्रसारण की क्रिया भी हो रही है। क्योंकि मध्यवर्ती कटक के क्षेत्र में अपसारी ऊर्जा तरंगे उत्पन्न हो रही है। इस प्रक्रिया से कटक में विखंडन एवं भ्रंशन की क्रिया भी जारी है। अर्थात कटक के क्षेत्र में विवर्तनिक क्रियायें निरंतर हो रही है।
कटक का विस्तार – मध्यवर्ती कटक उत्तर में आइसलैंड से दक्षिण में बोवोट द्वीप तक लगभग 14000 किमी की लंबाई में विस्तृत है। 30°N से उत्तर की ओर इसे डॉल्फिन कटक और 30°C अक्षांश के दक्षिण में इसे चैलेंजर कटक कहते हैं। 30°C से 30°C के मध्य संकरा है, जबकि उत्तर से दक्षिण की ओर चौड़ाई में वृद्धि होती जाती है। 40°S अक्षांश के पास यह सर्वाधिक चौड़ा है।
मध्यवर्ती कटक अटलांटिक महासागर को पूर्वी और पश्चिमी सागर में विभाजित करती है। कटक की स्थिति गहन सागरीय मैदान को दो वृहद मैदानों में विभाजित करती है। पुनः कटक की कई शाखाएं, उपशाखाए, गहन सागरीय मैदान को कई छोटे मैदानों में बांटती है।
मध्यवर्ती कटक के उत्तरी भाग में टेलीग्राफिक पठार स्थित है जो चौड़ा क्षेत्र है। इसमें आइसलैंड से ग्रेट ब्रिटेन की ओर विविल थॉमसन कटक स्थित है। 50°N अक्षांश के पास डांगर बैंक कटक के क्षेत्र में ही है। 50°N अक्षांश के पास पश्चिम की ओर न्यूफाउंडलैंड कटक स्थित है। यहां ग्रैंड बैंक स्थित है। इन क्षेत्रों में कटक महाद्वीपीय मग्न तट से मिल जाता है।
विषुवत रेखा के उत्तर में पूर्व की ओर गिनी कटक और पश्चिम की ओर गुयाना कटक स्थित है। गिनी कटक के उत्तर में पूर्व की ओर से सिरएलियोन कटक स्थित है। जिस पर केपवर्ड द्वीप है। दक्षिणी अटलांटिक महासागर में 40°S अक्षांश के पास से पूर्व की ओर वाल्बिस कटक स्थित है। जबकि इन्हीं क्षेत्रों में पश्चिम की ओर रियोग्रांडे कटक स्थित है। दक्षिण की ओर मध्यवर्ती कटक अटलांटिक के मग्नढाल के क्षेत्र से मिल जाता है। स्पष्टत: कटक की कई शाखाएं महासागर को कई लघु महासागरीय बेसिन में विभक्त करते हैं, जहां कहीं मध्यवर्ती कटक समुद्र तल से ऊपर आ गए हैं। वहां कई द्वीप पाए जाते हैं –  आइसलैंड, अजोर्स,  असेन्शन, केपवर्ड, ट्रिस्टनडी-कुन्हा तथा बोसोट द्वीप कटक पर ही स्थित है।
गहन सागरीय मैदान : यह महासागरों के लगभग 3000 से 6000 मीटर की गहराई पर स्थित अपेक्षाकृत समतल प्राय क्षेत्र है, लेकिन मध्यवर्ती कटक, समुद्री पहाड़ी, ज्वालामुखी पर्वत, गियोट इत्यादि गहन सागरीय मैदान में उच्चावच विषमताएं उत्पन्न करती हैं। अटलांटिक महासागर के 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में गहन सागरीय मैदान के अंतर्गत आते हैं। इनमें 4000 से 6000 मीटर के मध्य 46.4 प्रतिशत क्षेत्र है, जबकि कुल महासागरों का 56.3 प्रतिशत क्षेत्र 4000 से 6000 मीटर की गहराई पर स्थित है। अन्य महासागरों की तुलना में अटलांटिक महासागर में गहन सागरीय मैदान का विस्तार कम क्षेत्र में है। इसका एक प्रमुख कारण यहां मग्नतट तथा मग्नढाल का अधिक विस्तृत होना है। मध्यवर्ती कटक गहन सागरीय मैदान को पश्चिमी और पूर्वी मैदान में विभाजित करता है। पश्चिमी और पूर्वी मैदान को कटक की उपशाखाएं कई महासागरीय बेसिन एवं मैदान में विभाजित करती हैं।
पश्चिम सागरीय मैदान :
उपमैदान एवं बेसिन
  •  लैब्राडोर का मैदान
  •  उत्तरी अमेरिकी बेसिन
  •  ब्राजील का मैदान या बेसिन
  •  अर्जेंटीना बेसिन
पूर्वी सागरीय मैदान :
उपमैदान एवं बेसिन
  •  स्पेनिश मैदान या बेसिन
  •  कनारी बेसिन
  •  केपवर्ड बेसिन
  •  गोल्डकोस्ट बेसिन
  •  अंगोला बेसिन
  •  केप बेसिन
गहन सागरीय मैदान की उत्पत्ति का कारण सागरीय नितल में प्रसारण हैं। इस संदर्भ में हैरिहेस ने सागर नितल प्रसरण का सिद्धांत दिया था। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत भी महाद्वीपीय नितल मैदान के उत्पत्ति का कारण सागर नितल में प्रसारण और सागरीय प्लेटों के अपसरण को मानता है।  
मध्यवर्ती कटक के दोनों ओर सागरीय प्लेटों में खिसकाव/विस्थापन की क्रिया वर्तमान में भी जारी है। इसी कारण अटलांटिक महासागर के नितल में निरंतर फैलाव हो रहा है।
महासागरीय नितल बेसाल्ट संरचना का क्षेत्र है और इसकी उत्पत्ति भी भूगर्भिक पिघले बेसाल्ट के कटक के दोनों ओर क्रमशः विस्थापित होने से हुई है। स्पष्ट है कि महासागरीय नितल मैदान भी महासागरों के सक्रिय और अस्थिर क्षेत्र हैं।
महासागरीय गर्त : यह महासागरों के सर्वाधिक गहरे भाग है। जिसकी सामान्य गहराई 6000 मीटर से अधिक होती है। अटलांटिक महासागर का 0.6 प्रतिशत भाग इसके अंतर्गत आता है, जबकि कुल महासागरों के 1.2 प्रतिशत भाग 6000 मीटर से अधिक गहरे हैं। महासागरीय गर्तों की ज्ञात संख्या 57 है, इनमें 19 गर्ते अटलांटिक महासागर में है। इनमें सर्वाधिक गहरा गर्त प्यूर्टोरिको है। अधिक गहरे क्षेत्र प्रशांत महासागर की तुलना में यहां कम पाए जाते हैं। महासागरीय गर्त, महासागरों के किनारे महाद्वीप या द्वीप से संलग्न क्षेत्र में मिलते हैं। इसकी उत्पत्ति का कारण महासागरीय प्लेटो का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपित होना है, क्योंकि महासागरीय प्लेट बेसाल्ट से निर्मित अधिक घनत्व के होते हैं। अतः किनारों पर जहां यह महाद्वीपीय प्लेट से टकराते हैं, वहां महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाते हैं। जबकि महाद्वीपीय प्लेट दबाव से ऊपर उठ जाते हैं। ऐसे में दोनों प्लेटो के सीमांत क्षेत्र में गहरे गर्त की उत्पत्ति होती है। जिसकी आकृति गहरे V आकार की हो जाती है।
उपरोक्त स्थलाकृति विशेषताओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि अटलांटिक महासागर का नितल विषम संरचना एवं विषम उच्च का क्षेत्र है। जिसका निर्धारण प्लेटों की गतिशीलता, ज्वालामुखी क्रिया, भ्रंशन, निक्षेपन जैसी क्रियाओं से हुआ है।
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