Geography of India in Hindi | भारत का भौतिक स्वरूप | भारत का भूगोल

देश का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है, जिसमें पर्वतीय भाग 29.3 प्रतिशत (10.7 प्रतिशत पर्वत, 18.6% पहाड़ियां), पठारी भाग 27.7 प्रतिशत तथा मैदानी भाग 43 प्रतिशत है
स्थलाकृतिक विशेषताओं की दृष्टि से भारत को 4 प्रमुख वर्गों में बांटा गया है।

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश
  3. मध्यवर्ती मैदानी प्रदेश
  4. तटवर्ती मैदान एवं द्वीप समूह

उत्तरी पर्वतीय मैदान :

यह अल्पाइन भू-संचलन का परिणाम है। भारत के उत्तरी भाग में लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। सिंधु नदी के मोड़ से ब्रह्मापुत्र नदी के मोड़ तक 2400 किमी में विस्तृत है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। इसमें अनेक प्रकार के मोड़, प्रतिवलन, नापे तथा उल्टी भ्रंश मिलते हैं। विश्व की सबसे ऊंची चोटी यही है। इसका ढाल तिब्बत की और अवतल तथा दक्षिण की ओर उत्तल है। उत्तरी पर्वतीय प्रदेश में कई समानांतर श्रृंखलाएं हैं।

  • कराकोरम : स्वेन हेडन ने इसे उच्च एशिया की रीड कहा है। इसका भौगोलिक विस्तार जम्मू एवं कश्मीर राज्य में है। औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। यहां भारत की सीमा चीन एवं अफगानिस्तान से मिलती है। भारत की सर्वोच्च चोटी माउंट K-2 गॉडविन ऑस्टिन 8611 मीटर ऊंची है यह विश्व की दूसरी सर्वोच्च चोटी है वर्तमान में यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है अन्य चोटियों में गसेरब्रूम (8068 M), साल्तेरो (7792 M), माशेरब्रूम (7821 M), हिड़न (8068 M), ब्रोडपीक (8047 M), हरमोश (7397 M) प्रमुख है।यहां हुंजा घाटी, शिगार घाटी, नूब्रा घाटी स्थित है।

प्रमुख हिमनदी :

  1. हुंजा घाटी में – हिसपार, बटूरा हिमनद
  2. शिगार घाटी में – विचाफो, वालटेरो हिमनद
  3. नूब्रा घाटी में – सियाचीन ग्लेशियर
  4. यहां गिलगिट दर्रा स्थित है।

कराकोरम के दक्षिण स्थित पर्वत श्रेणियों में :

  1. हरमोश श्रेणी – श्रेणी को जोड़ती है।
  2. सासिर श्रेणी – कैलाश श्रेणी को जोड़ती है।
  3. माशरब्रुम श्रेणी – बालतोरो ग्लेशियर की घाटी द्वारा कराकोरम श्रेणी से अलग होती है। कराकोरम मध्य एशिया एवं दक्षिण एशिया के बीच जल विभाजक है। यहां 4720 मीटर पर हुंजा नदी पार करती है।
  • ट्रांस और तिब्बत हिमालय प्रदेश : कराकोरम श्रंखला के समानांतर है, इसे लद्दाख श्रृंखला कहते हैं। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। सिंधु नदी द्वारा विश्व का सर्वाधिक गहरा गार्ज (5200 मीटर) का निर्माण। यह सिंधु नदी का उद्गम है।
कराकोरम एवं लद्दाख श्रंखला के मध्य लद्दाख पठार (4000 मीटर) अवस्थित है, जो जम्मू कश्मीर के उत्तरी पूर्वी भाग तक विस्तृत है। इसका अधिकांश भाग चीन के अधिकार में है। सर्वोच्च शिखर गुरला मान्धाता है इसे चीन में कुआलामान ताता शान कहते हैं।
स्वेन हेडन ने 1906 में इसकी खोज की थी। यहां डिगला दर्रा स्थित है। उपरोक्त दोनों ही श्रृंखलाएं लद्दाख तथा कराकोरम हिमालय, जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित है। कराकोरम एवं लद्दाख के हिमालय के उत्तरी-पूर्वी भाग में लद्दाख का पठार है। यहां उत्तर में सोडा मैदान, मध्य में अक्साई चीन तथा दक्षिण में लाशिगजीतांग मैदान है। यें तीनों चीन के कब्जे में है।
  • हिमालय श्रंखला प्रदेश : भारत की उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है। सिंधु नदी के गार्ज से ब्रह्मपुत्र नदी के गार्ज तक 2400 किमी में (पूर्व से पश्चिम) में विस्तृत है। तिब्बत की ओर ढाल अवतल एवं दक्षिण में उत्तल है। पश्चिम में नंगा पर्वत से पूर्व में नामचा बरवा तक विस्तार है, इसमें 3 समानांतर श्रृंखलाएं हैं।

(A) महान या हिमाद्रि हिमालय :

सिंधु नदी के मोड़ से ब्रह्मा नदी के मोड़ तक 2400 किमी में विस्तृत है। औसत ऊंचाई 6100 मीटर है। 40 ज्ञात चोटियां 7000 मीटर से भी अधिक ऊंची है। भारत की दूसरी सर्वोच्च चोटी कंचनजंगा (8598 मी) यही है।

प्रमुख चोटियां – माउंट एवरेस्ट, नंगा पर्वत, नंदा देवी, गोसाई थान, कंचनजंगा, मकालु, अन्नपूर्णा व धौलागिरी है।

भारत में नंगा पर्वत, नंदा देवी, कामेत, नंदाकोर्ट एवं कंचनजंगा, त्रिशूल, बद्रीनाथ, केदारनाथ व नीलकंठ स्थित है।

मैदान उत्तर पश्चिम की ओर अवस्थिति जांसकर श्रेणी के उत्तर में देवसाई एवं दक्षिण में रुपशु के मैदान है।

हिमनद – कुमायूं हिमालय में मिलान हिमनद, गंगोत्री, यमुनोत्री हिमनद तथा सिक्किम में जेमू हिमनद है। सभी 20 किमी से लंबे हैं।

(B) लघु हिमालय या हिमाचल श्रेणी :

यह महान हिमालय के दक्षिण समानांतर विस्तृत है। औसत ऊंचाई 1800 से 3000 मीटर, अधिकतम ऊंचाई 4500 मीटर है। पीरपंजाल इसका पश्चिमी विस्तार है, जो जम्मू कश्मीर में विस्तृत है। इसकी ऊंचाई 4000 मीटर है। यहां पीरपंजाल एवं बनिहाल दर्रा है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी है।
  • श्रेणियां – मुख्यतः छोटी-छोटी श्रेणियां हैं, जैसे धौलाधर, नागटीबा, पीर पंजाल, महाभारत, मसूरी। धौलाधार पर शिमला स्थित है।
  • इन श्रेणियों के निचले भाग में देश के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य वर्धक स्थान है, जैसे – शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत और दार्जिलिंग।
  • ढालों पर कोणधारी वन एवं घास के मैदान मिलते हैं। इन घास के मैदान को कश्मीर में मर्ग, सोनमर्ग, गुलमर्ग, टनमर्ग तथा उत्तराखंड में बुग्याल और पयार कहते हैं। लघु हिमालय में चूना पत्थर स्थलाकृति का विकास हुआ है। दून घाटी का सहस्त्रधारा क्षेत्र मुख्य है।
  • महान सीमांत दरार – मध्य और महान हिमालय के बीच दरार को कहते हैं। यह पंजाब से असम तक विस्तृत है। लघु एवं वृहद हिमालय के मध्य कश्मीर की घाटी, लाहुल स्पीति की घाटी, पुष्प घाटी (उत्तराखंड) स्थित है। काठमांडू की घाटी एवं कांगड़ा कुल्लू की घाटी भी यहीं है। कांगड़ा घाटी एक नमन घाटी है तथा कुल्लू की घाटी अनुप्रस्थ घाटी है।

(C) शिवालिक श्रेणी या उप हिमालय :

दोनों श्रेणियों के दक्षिण स्थित है। इसे बाह्य हिमालय कहते हैं। पंजाब के पोटावार बेसिन के दक्षिण में पूर्व में कोसी नदी तक विस्तार है। औसत ऊंचाई 600 से 1500 मीटर है। अरुणाचल में सबसे कम चौड़ाई है 10 से 15 किमी है। हिमालय एवं पंजाब में 50 किमी चौड़ा है। पोटवार बेसिन (पाकिस्तान) से पूर्व में कोसी नदी तक यह संबद्ध है। पूर्व की ओर असंबद्ध रूप में है।

विभिन्न भागों में नाम :

  • गोरखपुर में डुंडवा
  • पूर्व की ओर  –  चूरियां तथा मूरिया
  • जम्मू में  –  जम्मू की पहाड़ी
  • अरुणाचल प्रदेश में  –  डाफला, मिरी, अबोर, मिशमी
  • दून – शिवालिक से लघु हिमालय को अलग करने वाली घाटी को पश्चिम की ओर दून कहते हैं। जैसे देहरादून, कोटली दून, पटलीदून, कोठीरी दून, चुम्बी दून, किर्या दून आदि
  • दुआर – पूर्व में स्थित घाटी को अलीपुर दुआर कहते हैं। यह असम एवं पश्चिम बंगाल में स्थित है।
  • शिवालिक कभी नदी घाटी प्रदेश रहा होगा जो पूर्व से पश्चिम अपवाहित होता होगा, जहां हिमालय की नदियों से अवसाद का जमाव किया गया एवं वलन क्रिया के फलस्वरुप शिवालिक की उत्पत्ति हुई। इस नदी को इग्ड़ो ब्रह्मा नदी या शिवालिक नदी कहा गया।

हिमालय का प्रादेशिक विभाजन (सिडनी बुरार्ड) – पश्चिम से पूर्व की ओर हिमालय को चार मुख्य उध्वोघर भागों में विभाजित किया जाता है।

  1. पंजाब हिमालय – सिंधु से सतलज के बीच – 560 किमी की लंबाई में कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश में विस्तार, जास्कर पीरपंजाल, धौलाधर श्रेणियां स्थित है। उत्तर में ट्रांस हिमालय एवं कराकोरम हिमालय है।
  2. कुमायूं हिमालय – सतलज से काली नदी के बीच 320 किमी की लंबाई में उत्तराखंड में विस्तार, इसका पश्चिमी भाग, गढ़वाल हिमालय, तथा पूर्वी भाग कुमायूं कहलाता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, गंगोत्री, नंदा देवी, कामेत आदि प्रमुख चोटियां है।
  3. नेपाल हिमालय – काली से तिस्ता तक के बीच 800 किमी की लंबाई में विस्तृत। नेपाल में मुख्यतः विस्तार है। कंचनजंगा, एवरेस्ट, मकालू, चोटियां स्थित है। हिमालय की सर्वाधिक ऊंचाई यहीं पर है।
  4. असम हिमालय – तीस्ता से ब्रह्मपुत्र के मध्य 720 किमी की लंबाई विस्तृत है। यह नेपाल हिमालय से कम ऊंची है। सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश तथा भूटान में विस्तार है। प्रमुख चोटियां – कुलाकांगड़ी, जांगसंगला, पौहुनी, काबस, चुमलहारी, नामचाबरवा प्रमुख हैं।
  5. पूर्वांचल हिमालय प्रदेश – कोस्ट के अनुसार यह भी टेथिस सागर का एक अंग है। यहां प्रमुख पहाड़ियों में पूर्वी अरुणाचल की मिशमी, आबोर एवं नागा हिल, मणिपुर हिल, मिजो हिल, त्रिपुरी हिल एवं मेघालय की गारो, खासी, जयंतिया तथा असम में कछार तथा पतकोई हिल है। पर्वतीय श्रृंखलाओं के मध्य उबड़-खाबड़ निम्न भूमि पाई जाती है।
  6. जास्कर पर्वत श्रेणी – उत्तर में लद्दाख एवं दक्षिण में महान हिमालय के बीच स्थित है। औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। डास एवं जान्सर दो नदियां हैं। ऊंची चोटी कामेत है।

नोट – हिमालय की चोटियां भारत एवं तिब्बत के बीच जलविभाजक का काम करती हैं। औसत ऊंचाई 5000 मीटर से अधिक है। भारत एवं तिब्बत के मध्य लेह से लद्दाख की ओर मार्ग 4880 मीटर की ऊंचाई पर है।

हिमालय की शाखाएं :

  1. पीरपंजाल श्रेणी – महान हिमालय के दक्षिण स्थित, यहां सतलज नदी महान हिमालय को काटती है, उससे दक्षिण में पश्चिम की ओर निकलती है।
  2. धौलाधार श्रेणी – यहां अलकनंदा महान हिमालय को काटती है। (बद्रीनाथ) वहां पश्चिम की ओर निकली है।
  3. नागटीबा श्रेणी – जहां काली गंडक महान हिमालय काटती है, वहां से निकलकर पश्चिम धौलाधर से मिली हुई श्रेणी है। कुमाऊं से अलकनंदा एवं पिण्डार नदियां 180 किमी तक इसके समानांतर बहती है।

हिमालय के दीर्घ मोड़ :

हिमालय पर्वतमाला क्रम की क्रम चापाकार पहाड़ियां पश्चिम एवं पूर्वी किनारों पर दक्षिण दिशा में मुड़ जाती हैं। जिसे समकोला मोड़ भी कहते हैं। इसे अक्षसंधि मोड़ भी कहा जाता है। दोनों ही सिरों पर यह पर्वतमाला एक धुरी पर मुड़ गई है। इसका पश्चिम सिरा पामीर के दक्षिण जहां काराकोरम एवं हिंदूकुश मिलते हैं, वहां स्थित है। पूर्वी सिरा पूर्वांचल एवं वर्मा चापों से एक अक्षसंधि मोड़ पर मिल जाती है।

  1. उत्तरी पश्चिमी मोड – दक्षिण पश्चिम, दक्षिण में हिंदुकुश, सुलेमान एवं किरथर श्रेणियों के रूप में मिलते हैं।
  2. उत्तरी पूर्वी मोड़ – उत्तर पूर्व में नागा, पटकोई, मणिपुर, लुसाई एवं मुख्यतः अराकानयोमा श्रेणी के रूप में है। भारत एवं म्यांमार के बीच नागा पहाड़ियां जल विभाजक के रूप में फैली है।

हिमालय के तीन प्रमुख चोटियां :

  1. एवरेस्ट : 8848 मीटर, नेपाल हिमालय में स्थित है। सर जॉर्ज एवरेस्ट (भारत के मुख्य सर्वेक्षणकर्ता) के नाम पर सर एंड्रयू वाग ने 1856 में इसका नामकरण किया था। सागरमाथा एवं चोमोलंगमा (तिब्बत में) आदि नामों से जाना जाता है।
  2. K-2 गॉडविन ऑस्टिन : 8611 मीटर काराकोरम में स्थित है। भारत की पहली एवं विश्व की दूसरी सबसे चोटी है। 1906 एबुजी के ड्यूक ने इसे विजय किया था। वर्तमान में यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हैं।
  3. कंचनजंगा : 8585 मीटर ऊंची विश्व की तीसरी, भारत में दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। नेपाल एवं सिक्किम की सीमा पर स्थित है। इससे निकलने वाली समस्त नदियां उत्तरी ढाल सहित भारत के मैदान में बहती हैं।

विश्व की अन्य प्रमुख चोटियां :

  • एकनकागुआ    –  एंडीज पर्वत (दक्षिण अमेरिका)
  • माउंट मेकिनली   –  अलास्का (USA)
  • माउंट लोगन    -. रॉकी (USA)
  • किलिमंजारो    –  अफ्रीका (केन्या)
  • एल्बुर्ज     –  काकेशस (यूरोप)
  • माउंट ब्लैक     –  अल्पस (यूरोप)
  • माउंट कुक    –  न्यूजीलैंड
  • माउंट कोसुयस्कु     –  ऑस्ट्रेलिया
  • विंसन मैसिफ    –  अंटार्कटिका
  • फोटो टेक्सी     –  एंडीज पर्वत
  • एम्पोलू      –  एंडीज पर्वत
  • चिंबोराजो     –  एंडीज पर्वत

पूर्वी हिमालय में हिमरेखा अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर पाई जाती है, क्योंकि वहां अधिक नमी पाई जाती है। उत्तर पश्चिमी हिमालय में आद्रता में कमी के कारण हिमरेखा अधिक ऊंचाई पर पाई जाती है।

हिमनद :

हिमालय क्षेत्र में लगभग 15000 हिमनद है, जो हिंदूकुश – कराकोरम पर्वतमाला (पामीर) से तथा पूर्वी हिमालय में पतकोई बूम पर्वतमालाओं के दो अक्षसंधि मोड़ के मध्य स्थित है। यहां 3 से 5 किमी से लेकर 75 किमी तक लंबे हिमनद है। ध्रुवीय एवं उपध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर सबसे बड़े हिमनद हिमालय में है। हिमालय का लगभग 33000 वर्ग किमी क्षेत्र हिमाच्छादित है। कराकोरम क्षेत्र में ही 16000 वर्ग किमी क्षेत्र बर्फ से ढका है। हिमालय के सभी क्षेत्रों में हिमनदी का व्यापक अध्ययन नहीं किया जा सकता।

हिमालय के हिमनद क्षेत्र एवं विशेषताएं

पूर्वी हिमालय यहां हिमनद का अभाव है। पूर्व में नामचा बरवा शिखर से पश्चिम में अरुणाचल प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित कांग्ता शिखर के मध्य हिमनद नहीं पाए जाते। नामचाबरवा एवं कांग्ता शिखर पर कुछ छोटे हिमनद मिलते हैं। भूटान के कुर्ला कांगड़ी से पश्चिम की ओर हिमनद प्रमुखता से मिलते हैं। इनकी विशेष जानकारी नहीं है।

कंचनजंगा ऐवरेस्ट क्षेत्र – सिक्किम एवं नेपाल सीमा पर कई विशाल हिमनद मिलते हैं। यहां कंचनजंगा के पूर्व में जेमू हिमनद, पश्चिमोत्तर में कंचनजंगा हिमनद, दक्षिण में तालुग एवं पालूंदा हिमनद मुख्य है। अलुकथांग हिमनद साफ मौसम में कंचनजंगा के पाद प्रदेश में स्थित दार्जिलिंग से स्पष्ट दिखाई देने के कारण प्रसिद्ध है। 

  • एवरेस्ट में दक्षिण से खुम्बू हिमनद, तिब्बत की ओर रागबक हिमनद, हिमालय में कराकोरम के हिमनद के बाहर सबसे लंबा हिमनद है। खुम्बू हिमनद के किनारे से ही एवरेस्ट पर्वत शिखर का मार्ग जाता है। एवरेस्ट के अन्य हिमनदों में – कागरांग, बारूनत्से, क्रायबंक तथा नगाजुंबा, तोलंबाऊ हिमनद है।

मध्य हिमालय क्षेत्र एवं धौलागिरी के मध्य हिमनद के कई समूह है। यहां गोसाईथान पर्वत पर येपोकांगडा हिमनद, मंसालू क्षेत्र में लिडण्डा एवं छुलिंग हिमनद, अन्नपूर्णा क्षेत्र में दक्षिण अन्नापूर्णा हिमनद, धौलागिरी में मयोन्दी हिमनद प्रमुख हैं।
कुमाऊ – गढ़वाल क्षेत्र पश्चिमी नेपाल के करनौली घाटी में उत्तराखंड तक विस्तृत है। मिलान हिमनद, कामेत का बद्रीनाथ में गंगोत्री हिमनद, माना हिमनद, रिलम घाटी में सन्कल्प हिमनद, नंदाकोट पर्वत क्षेत्र में पेटिंग हिमनद, उत्तरी पूर्वी कुमायूं में त्रिशूल-नंदादेवी क्षेत्र में पिण्डार हिमनद, तिब्बत हिमालय में गुरला मान्धाता हिमनद प्रमुख हैं। बद्रीनाथ क्षेत्र में भागीरथी खंडक तथा संतोपंच हिमनद भी है। कामेत में रैकाने हिमनद है।

  • यह हिमालय पीरपंजाल पर्वत श्रंखला प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर में विस्तृत है। यहां हिमालय के लाहुल स्पीति क्षेत्र में गढ़वाल कुमायूं की तुलना में हिमनद कम है। यहां चंद्रा घाटी में सोनापानी हिमनद, चंद्रा नदी में मिलने वाली बारा सिगड़ी हिमनद तथा गंगरसुंग हिमनद, गुंडला शिखर से उत्पन्न हिमनद प्रमुख हैं। दक्षिण कश्मीर में गंगरी हिमनद, नंगापर्वत के पास बुझी एवं ताशान हिमनद है।

कराकोरम हिमालय क्षेत्र – ध्रुवीय एवं उपध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर के कुछ बड़े हिमनद कराकोरम हिमालय में ही पाए जाते हैं हिमालय के सबसे बड़े हिमनद यही मिलते हैं यहां हिमनद दो समूह में है।

  1. पूर्वी या बाल्टिस्तान पूर्वी लमूट में लद्दाख समूह
  2. पश्चिमी हुंजा नागर समूह

वियाफो, बाल्टोरो, सियाचिन, रियो हिमनद प्रमुख है जो वार्लदोह, नुव्रा, सक्सगाम, श्योक, चार्काड तथा लुंग्मा 6 नदियों की घाटियों में ही सीमित है। पश्चिमी समूह में हिसपार, बहुरा, कुदोर्पिन, विर्जेराब हिमनद प्रमुख है, जो मुख्यतः हुंजा एवं शिंगशाल एवं इसकी सहायक नदी घाटियों में पाए जाते हैं।

हिमालय के हिमनद
  1. सियाचिन हिमनद – यह नुब्रा घाटी में विस्तृत अनुदैर्ध्य प्रकृति का है। यह द्रव्य एवं उप ध्रुवीय क्षेत्रों के अलावा विश्व का सबसे बड़ा एवं लंबा हिमनद है।
  2. हिसपार हिमनद – ध्रुवीय उपध्रुवीय क्षेत्र से बाहर तीसरा सबसे लंबा हिमनद है।
  3. वियाफो हिमनद – बाल्दोह घाटी स्थित अनुदैर्ध्य प्रकार का हिमनद है। यह मुज्ताघ पर्वत में स्थित है।
  4. वाल्टेरो हिमनद – वाल्दोह घाटी में स्थित है।
  5. बतूरा हिमनद – कराकोरम क्षेत्र के पश्चिमी समूह का हिमनद जो हुंजा नदी में गिरता है।
  6. छोगो लुंगमा हिमनद – पश्चिमी कराकोरम के दक्षिण तथा सिंधु नदी के उत्तर के मध्य राकापोशी-हारामोश क्षेत्र में स्थित है। हरीमरेयर पर्वत में कुत्तिया हिमनद स्थित है।
 
हिमालय की नदियां – हिमालय कई नदियों का उद्गम क्षेत्र है, जहां से हिमालय के उत्थान के पूर्व की तथा उत्थान के बाद उत्पन्न कई नदियां पाई जाती हैं। टैथिस के दक्षिण बहने वाली नदी को जो प्रवाऊ होती थी, उसे पेस्को ने – इण्डोब्रह कहा तथा पिलग्रीम ने – शिवालिक कहा है।
  1. महान हिमालय की नदियां – यमुना, गंगा, शारदा/काली, राप्ती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक तथा कोसी।
  2. लघु हिमालय की नदियां – व्यास, रावी, चेनाव तथा झेलम।
  3. शिवालिक की नदियां – हिण्डन एवं सैलानी
सिंधु नदी गिलगित के पास 5430 मीटर गहरा गार्ज बनाती है। सिंधु, सतलज, अरुण, ब्रह्मपुत्र, तीस्ता, पूर्ववर्ती नदियां है, इसका अर्थ है कि यह नदियां हिमालय बनने से पहले की है।
 
हिमालय की झीलें
  • टिसी सिकरु (तिब्बत) – यह विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित झील है।
  • गौरी कुण्ड – भारत की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित झील है। विश्व की दूसरी सबसे ऊंची झील है। यह डीलमा दर्रे के पास मानसरोवर एवं कैलाश के बीच स्थित है। मानसरोवर, रासकताल, भीमताल, खूरपाताल, नैनीताल आदि महत्वपूर्ण झीलें हैं। लद्दाख के पठार को चांगचैमो श्रेणी दो भागों में बांटती है। हिमालय की चाप का ज्यमीतिय केंद्र लोपनार झील (चीन) में है।

दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार

यह 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। राजस्थान से कन्याकुमारी तक 1700 किमी की लंबाई में विस्तृत है। औसत ऊंचाई 500 से 700 मीटर है। यह लगभग त्रिभुजाकार आकृति में है। आधार पाकिस्तान की किराना की पहाड़ियों से अरावली एवं पूर्व में शिलांग का पठार तक है। इसका ढाल उत्तर – पश्चिम से दक्षिण – पूर्व की ओर है। पैंजिया का अंग, जो गोंडवाना भूमि के रूप में था, और एक बार सागरतल से ऊपर आने के बाद कभी भी सागरतल से नीचे नहीं गया। यह पठारों का पठार है। मेघालय का पठार मुख्य पठार से राजमहल गैप द्वारा अलग हो जाता है।

पर्वत एवं पहाड़ी स्थल आकृतियां

अरावली – सर्वाधिक प्राचीन मोड़दार पर्वतों में से एक है। यह भारत का सर्वाधिक प्राचीन मोड़दार पर्वत है। यह राजस्थान मरुस्थल की पूर्वी सीमा पर मालवा पठार के उत्तर पश्चिम में अहमदाबाद से दिल्ली तक 800 किमी की लंबाई में विस्तृत है। सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर माउंटआबू पर है। जिसकी औसत ऊंचाई 300 से 900 मीटर है। इसे विभिन्न भागो में कई नाम से जानते हैं।

  1. जरगा पहाड़ियां – उदयपुर में
  2. हर्षनाद की पहाड़ी – अलवर में
  3. दिल्ली रिज – दिल्ली में

इसमें पीपली घाट प्रमुख दर्रा है। यह प्रमुख जलविभाजक है। पश्चिम की नदियों में माही, लूनी, जोजरी, सुकरी, बांडी प्रमुख है। पूर्व में बनास नदी है, जो चंबल की सहायक है। लूनी, जोजरी, सुकरी, बांडी मरुस्थल में बहकर कच्छ के रन में गिरती है। माही अरब सागर में गिरती है। बनास चंबल नदी के द्वारा गंगा के मैदान में पहुंचती है। बूंदी की पहाड़ियां अरावली के पूर्वी भाग में आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी तक फैली है। इसकी उत्पत्ति धारवाड़ युग में हुई थी।

विंध्याचल पर्वतमाला – गुजरात से सासाराम तक की प्रीकैंब्रियन युगीन पर्वत है। नर्मदा नदी के उत्तर में सामानांतर पूर्व की ओर उत्तर-पूर्व दिशा में मुड़ जाता है। विंध्यांचल के मध्य भाग पर तीन पठार है

  1. भांडेर का पठार
  2. रीवा का पठार
  3. विंध्यांचल का पठार

पूर्वी भाग में क्रमशः भारनेर, कैमूर, बराकर और पारसनाथ की पहाड़ियां है। विंध्याचल पर्वत की ऊंचाई 900 मीटर है। यह जल में निक्षेपित अवसादी चट्टानों का आरंभिक उदाहरण है। दक्षिण में यह नर्मदा की दरार घाटी की ओर खड़ा ढाल का Scarpment के रूप में है। कैमूर सोन नदी की घाटी का खड़ा ढाल है।

सतपुड़ा की पहाड़ियां – इसका निर्माण क्रिटेशिस युग में भ्रंशन से हुआ है। विंध्याचल के दक्षिण समानांतर 1120 किमी की लंबाई में विस्तृत है। नर्मदा द्रोणी विंध्ययन एवं सतपुड़ा दोनों को अलग करती है। यह एक भ्रंशोत्त पर्वत है।

  • यह नर्मदा एवं ताप्ती नदी के मध्य पश्चिम में राजपीपला की पहाड़ियों से प्रारंभ होता है तथा पूर्व में महादेव, मैकाल पहाड़ियों के रूप में छोटानागपुर पठार तक फैला है। पूर्वी सीमा राजमहल की पहाड़ी द्वारा बनती है।
  • इसकी सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ महादेव पहाड़ी पर स्थित है। स्वास्थ्यवर्धक स्थान पंचमढ़ी यही स्थित है। यहां दूसरी सर्वोच्च चोटी अमरकंटक है। राजमहल की सर्वोच्च शिखर सोड़ियां पहाड़िया है।
  • राजमहल गैप के बाद मेघालय में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियां।

पश्चिमी घाट पर्वतीय क्षेत्र – ताप्ती घाटी से कुमारी अंतरीप तक 16 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है। इसकी औसत ऊंचाई 920 मीटर है। इसे सह्याद्रि भी कहते हैं। इसे तीन भागों में बांटते हैं –

  1. उत्तरी सह्याद्रि
  2. मध्य सह्याद्रि
  3. दक्षिणी सह्याद्रि
  4. उतरी सह्याद्रि की सर्वोच्च चोटी कालसुबाई महाराष्ट्र राज्य में है। यह ताप्ती नदी से गोवा के उत्तर पूर्व में मालप्रभा नदी के उद्गम स्थान तक 650 किमी में है। साल्हेर तथा महाबलेश्वर अन्य चोटियां है। थालघाट एवं भोरघाट दर्रे यहां स्थित है।
  5. मध्य सह्याद्रि का सर्वोच्च शिखर केंद्रोमुख एवं पुष्पगिरी है। मालप्रभा नदी के उद्गम से पालघाट दर्रे तक का करीब 650 किमी में विस्तृत है। यह तट से अत्यंत संलग्न है। यहां आर-पार जाने के लिए कोई दर्रा नहीं है। यहां से पूर्व की ओर तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी प्रवाहित होती है।
  6. दक्षिणी सह्याद्रि नीलगिरी पहाड़ियों से लेकर कन्याकुमारी तक 290 किमी क्षेत्र में विस्तृत है। नीलगिरी के दक्षिण में अन्नामलाई की श्रेणी है।
  7. नीलगिरी पहाड़ियों के द्वारा पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट जुड़ा है एवं पालघाट दर्रे से अलग होता है।
  8. दोदाबेट्टा (2633 मीटर) नीलगिरी का सर्वोच्च एवं दक्षिण भारत का दूसरी सर्वोच्च शिखर है।
  9. नीलगिरी के दक्षिण अनामलाई की पहाड़ियां है। यहां दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी अनाईमुड़ी है।
  10. अन्नामलाई के दक्षिण से उत्तर-पूर्व की ओर पालनी की पहाड़ियां हैं, जिस पर बाम्बाडी शोला एवं कोडैकनाल स्थित है।
  11. उटकमंड (ऊटी) दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में समुद्र तल से लगभग 7230 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह कालीकट से 55 मील की दूरी पर स्थित एक स्वास्थ्यवर्धक पर्वतीय नगर तथा तमिलनाडु की ग्रीष्म कालीन राजधानी है। यह नगर चारों ओर से 7000 फुट तक की ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है। उटकमंड की कृत्रिम झील देखने योग्य है।
     

पश्चिमी घाट के चार प्रमुख दर्रे हैं।

  1. पालघाट
  2. भोरघाट
  3. थालघाट
  4. सेनकोटा
    महाबलेश्वर महाराष्ट्र का स्वास्थ्यवर्धक स्थान कृष्णा नदी के उद्गम पर है।
    कार्डेमम या इलायची की पहाड़ियां केरल के दक्षिण में है यह अन्नामलाई कि दक्षिणी शाखा है।

दक्षिण भारत के जलप्रपात

  1. मन्धार, पुनासा एवं धुआंधार प्रपात – नर्मदा नदी पर (जबलपुर)
  2. पापनामस प्रपात – ताम्रपर्णी नदी पर
  3. येना प्रपात – कृष्णा नदी पर (महाबलेश्वर)
  4. गरसोप्पा या जोग या महात्मा गांधी प्रपात – शरावती नदी पर (महाराष्ट्र में कर्नाटक की सीमा पर)
  5. गोगक प्रपात – गोगक नदी पर (बेलगांव)
  6. शिवसमुद्रम प्रपात – कावेरी नदी पर (मैसूर)
  7. पायकारा प्रपात – पायकारा नदी पर (नीलगिरी)
  8. बिहार प्रपात – दक्षिण टोंस नदी (विंध्याचल पर्वत मध्य प्रदेश)
  9. चुलिया प्रपात – चंबल नदी पर (मध्य प्रदेश)

पूर्वी घाट पर्वत – महानदी के दक्षिण नीलगिरी की पहाड़ी तक 1300 किमी में असम्बद्ध रूप से फैली है। इसकी औसत ऊंचाई 615 मीटर है। इसका ढाल पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व की ओर है। इसके तीन भाग हैं।

  1. उत्तरी श्रंखला – महानदी से गोदावरी तक विस्तृत है। यह सर्वाधिक विस्तृत पर्वतीय भाग है। यहीं पूर्वी घाट की सर्वोच्च चोटी दयोड़ी मुंडा या विशाखापट्टनम शिखर स्थित है। महेंद्रगिरी दूसरी सर्वोच्च चोटी है, जो उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश की सीमा पर उड़ीसा के जंगम जिले में स्थित है।
  2. मध्यवर्ती श्रृंखला – गोदावरी से आंध्र प्रदेश के दक्षिण सीमा के मध्य स्थित है। यहां आंध्र प्रदेश के कुडप्पा एवं करनूल जिलों में लगातार श्रेणी के रूप में मिलते हैं। इसके उत्तरी भाग को नल्लामलाई पहाड़ी तरफ दक्षिण भाग को पालकोंडा श्रेणी कहते हैं।
  3. दक्षिणी श्रंखला – तमिलनाडु में नीलगिरी तक पांच समानांतर श्रृंखलाएं हैं।

उत्तर से दक्षिण समानांतर श्रृंखलाएं

  1. जवाडी पहाड़ियां
  2. गिन्जी पहाड़ियां
  3. कोलामलाई एवं पंचमलाई पहाड़िया
  4. सेवराय एवं गोडूमलाई पहाड़ियां
  5. नीलगिरी

कावेरी एवं पैनार नदियों के मध्य मेलागिरी श्रेणी है, जो चंदन के वनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां कावेरी नदी पूर्वी घाट को काटकर ‘होजेकल प्रपात‘ बनाती है।

पठारी स्थलाकृतियां :

(1) दक्कन का पठार – इसका निर्माण क्रिटेशिस युग में हुआ था।

  • महाराष्ट्र का पठार – यह दक्कन लावा पठार का अंग है।
  • आंध्र प्रदेश का पठार – तेलंगाना का पठार लावा निर्मित है। रायलसीमा के पठार में आर्कियन चट्टानों की प्रधानता है।
  • कर्नाटक का पठार – धारवाड़ समूह की चट्टानों की प्रधानता है। बेंगलोर एवं मैसूर के मध्य लावा संरचना पाई जाती है। कर्नाटक के पठार के पहाड़ी भाग को मालनद एवं मैदानी भाग को मैदान कहते हैं।

(2) मध्यवर्ती पठार यह सतपुड़ा, महादेव, मैकाल श्रृंखला के उत्तर तथा दक्षिण पूर्व में है। इसे चार भागों में बांटा गया है।

  • मेवाड़ उच्च भूमि – अरावली पर्वत के दक्षिण पूर्व एवं विध्ययन के उत्तर में स्थित है। मुख्यत: आर्कियन शैलों से निर्मित है।
  • बुंदेलखंड का पठार – ग्वालियर, झांसी और ललितपुर में अवस्थित है।
  • लवा का पठार – अरावली के पूर्व में विंध्यान के उत्तरी भागों में अवस्थित है। लावा द्वारा निर्मित है। इस पर बेतवा, पार्वती, काली, सिंध, चंबल आदि नदियां प्रवाहित होती हैं।
  • मध्य भारत का पठार (उत्खात भूमि) – उबर-खाबर पठार है। इसे बैडलैंड टोपोग्राफी कहते हैं। चंबल, बेतवा, केन नदियों द्वारा निर्मित।

(3) काठियावाड़ पठार – गुजरात राज्य के काठियावाड़ प्रायद्वीप पर स्थित है। लावा निर्मित चट्टानों की प्रधानता है लेकिन अधिकतर क्षेत्रों में यह जलोढ़ संरचना में प्रवृत्त हो चुका है। मध्यवर्ती भाग में गिरनार पर्वत है जो विध्ययन संरचना का अंग है। कच्छ के रन में चांदुवा, ढोला पर्वत श्रेणियां पाई जाती है, जिनमें बलुआ पत्थर मिलता है।

(4) पूर्वी पठार मैकाल एवं कैमूर श्रंखला के पूर्व में अवस्थित है, इसे पांच भागों में बांटते हैं।

  • बघेलखंड का पठार – मैकाल एवं कैमूर के मध्य एवं पूर्व में अवस्थित है। छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला यही है।
  • छत्तीसगढ़ का पठार – यह बघेलखंड पठार के दक्षिण में स्थित है। चट्टाने क्षैतिजावस्था में होने के कारण यह बेसिन जैसा लगता है।
  • डण्डकारण्य क्षेत्र – यह उड़ीसा छत्तीसगढ़ एवं आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवस्थित प्राचीन उबड़-खाबड़ पठार है। यह अत्यंत उबड़-खाबड़ पर पठार है और आर्कियन चट्टानों से निर्मित है।

(IV) छोटानागपुर का पठार – यह झारखंड, उत्तर में बिहार के सीमित क्षेत्र एवं पश्चिम बंगाल के पठारी क्षेत्र में अवस्थित है। यह बहु चक्रिय स्थलाकृति का क्षेत्र (रांची का पाठ प्रदेश)। यहां वर्तमान अपरदन का चौथी अवस्था है। यहां हिमालय की तीनों पर्वतीयकरण सक्षम मिलता है।

  • हजारीबाग, कोडरमा, रांची का पठार यहां के मुख्य पठार है।
  • पार्श्वनाथ, डालमा एवं पौराहट यहां की मुख्य पहाड़ियां है।
  • चितुपाल घाट एवं टैटार घाट यहीं पर स्थित है।

(V) मेघालय का पठार – यह मुख्य पठार से संबंध है एवं राजमहल गैप द्वारा अलग होता है। यहां तीन पर्वतीय श्रृंखलाओं गारो, खासी, जयंतिया पाई जाती हैं। राजमहल गैप से ही गंगा ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।

  1. नर्मदा नदी – यह विन्ध्याचल के दक्षिण एवं सतपुड़ा के उत्तर एक भ्रंश घाटी है। नर्मदा नदी भ्रंश घाटी से प्रवाहित होते हुए एस्चुयरी बनाती है।
  2. ताप्ती नदी – सतपुड़ा के दक्षिण स्थित भ्रंश घाटी से होकर प्रवाहित होती है। यह भी एस्चुयरी बनाती है।
  3. थार मरुस्थल – यह 2 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित है। अरावली के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसकी लंबाई 600 किमी तथा चौड़ाई 250 से 350 किमी है।
  4. लूनी नदी या लूणी नदी – अरावली पर्वत के निकट अजमेर जिले के नाग पहाड़ से उत्पन्न होकर दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर राजस्थान में 330 किलोमीटर प्रवाहित होते हुए, गुजरात, कच्छ के रन में जाकर मिलती है। यह नदी जैतारण के लोटोती से भी निकलती है व रास से भी निकलती है।
  5. खारे जल की झीलें – सांभर, लुनकरनसर, फलोदी, डीडवाना, पंचभद्रा आदि।
  6. पैंजिया – आदि काल में एक ही द्वीप पैंजिया था। यह चारों ओर से सागर से गिरा था, जिसे वैगनर ने पैंथलसा कहा है। प्रायद्वीपीय पठार पैंजिया के दक्षिणी भाग गोंडवाना का ही अंग है।
  7. लैमूरिया – भारत एवं मेडागास्कर के बीच का स्थल पूल लैमूरिया कहलाता था। भारत का मध्यवर्ती मैदान हिमालय एवं दक्षिण पठार के मध्य 7.7 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत सतलज, रावी किनारे से गंगा डेल्टा के मुहाने तक करीब 2400 किमी की लंबाई में विस्तृत है। गंगा एवं सिंधु के मुहाने के मध्य 3200 किमी लंबाई है।

मिट्टी की विशेषता, संरचना एवं ढाल के आधार पर :

  • भांवर प्रदेश – शिवालिक के बाह्य ढालो पर नदियों द्वारा लाई गयी कंकरीली बलुई मिट्टी के निक्षेप है। यहां नदिया धरातल में विलीन हो जाती है।
  • तराई प्रदेश – भांवर प्रदेश के आगे बारीक, कंकड़, रेत, क्ले से निर्मित दलदली क्षेत्र है। यहां नदिया मुख्यतः प्रकट होती हैं। तराई क्षेत्र भारत, नेपाल एवं भूटान में स्थित हिमालय के आधार के दक्षिण में स्थित क्षेत्रों को कहते हैं। यह क्षेत्र पश्चिम में यमुना नदी से लेकर पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में भूमि नम है तथा इस क्षेत्र में घास के मैदान एवं वन हैं। तराई क्षेत्र के उत्तरी भाग भांवर क्षेत्र कहलाता है।
  • बांगर प्रदेश – पुरानी कांप से निर्मित बाढ़ का अपेक्षाकृत ऊंचा मैदान है। यहां बाढ़ का जल नहीं आता है। यह नदियों के मध्य स्थित लहरदार मैदान होते हैं। सतलज का मैदान एवं गंगा के ऊपरी मैदान में यह अधिकता से पाए जाते हैं।
  • खादर – नवीन बाढ़ का मैदान, नवीन कांप से निर्मित निचली मैदानी भाग, जहां वर्षा काल में बाढ़ ग्रस्त हो जाता हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में इसकी अधिकता है।
  • रेह या कल्लर – बांगर मिट्टी में जहां सिंचाई की अधिकता है। वहां भूमि पर नमकीन सफेद परत बिछ जाती है, जिसे रेह कहते हैं। यह पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के शुष्क भागों में पाई जाती है।
  • भूड़ – बांगर मिट्टी के क्षेत्र में बालू के ढेर पाए जाते हैं।श अपक्षय प्रक्रिया से मुलायम मिट्टी नष्ट हो जाती है और कंकरीली बालू शेष रह जाते हैं। गंगा, रामगंगा क्षेत्र के प्रवाह मार्ग में भूड़ पाए जाते हैं।
  • डेल्टाई मिट्टी क्षेत्र – गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं सिंधु के मुहाने पर सूक्ष्म कांप के गहरे जमाव या खादर मिट्टी का क्षेत्र जो पंखाकार या चापाकार होती है।
  1. बील (Bils) – डेल्टा का निम्न दलदली भाग यहां जूट की कृषि की जाती है।
  2. चार ( Char) – डेल्टा के ऊंचे भाग, यहां मानव अधिवास होता है।
  3. गंगा-ब्रह्मापुत्र का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है।
  • उत्खात भूमि (Badland) – सोन एवं चंबल नदी घाटी क्षेत्र में रील एवं अवनालिका अपरदन से निर्मित उबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि बीहड़ या उत्खात कहलाती है।
  • चोस (Choss) – शिवालिक के दक्षिणी ढालो पर प्रवाहित होने वाली ‘चो’ नदियों द्वारा अपरदन से पाद प्रदेश की उबड़-खाबड़ भूमि है। यह पंजाब में सर्वाधिक विस्तृत है।
  • बारिन्द – यह बंगाल के डेल्टाई भाग में स्थित बांगर पर लैटेराइट संरचना है।
  • घोरोस – ये सिंधु नदी के पूर्व स्थित डेल्टाई मैदान में लंबे एवं संकरे गर्त के रूप में पुराने नदी मार्गों के अवशेष हैं।
  • घांड या ढांढ रन – यह सिंधु नदी डेल्टा में स्थित क्षारीय झील है, जो तली में जल भर जाने से निर्मित होती है।
  • मृतका या पैट मरुस्थल – सिंधु नदी के पूर्वी भाग में बांगर क्षेत्र के उत्तरी भाग को पैट मरुस्थल कहते हैं। यह क्ले से बना है।
  • बैट भूमि, ब्लफ या छाया – यह नदियों के किनारे का बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र है, जो पंजाब के मैदान में नदियों के तटबंध के अपरदन से निर्मित भूमि है।
  • खोल (Khol) – गंगा-यमुना मैदान में खादर एवं बांगर को अलग करने वाली 15 से 30 मीटर का मध्यवर्ती ढाल है।
  • पैराडेल्टा – गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टाई भाग एवं दोआब क्षेत्र को अलग करने वाला अपघर्षण का क्षेत्र है।

भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण 

(1) सिंधु का मैदान – इसका ढाल पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम की ओर है इसे दो मैदान में बांटा जाता है।

  • पंजाब-हरियाणा का मैदान – यहां सतलज, व्यास, रावी नदियां बहती हैं। यह क्षेत्र कई दोआब लिए प्रसिद्ध है।
  1. सतलज एवं व्यास के बीच       – विस्त दोआब
  2. व्यास एवं रावी के मध्य           – वारी दोआब
  3. रावी एवं चेनाव के मध्य          – रचना दोआब
  4. चेनाब एवं झेलम के मध्य        – चाज दोआब
  5. झेलम, सिंधु व चेनाव के मध्य  – सिंध सागर दोआब

    सतलज के दक्षिण के भू-भाग को मालवा मैदान कहते हैं।

  • पश्चिम राजस्थान का मैदान – अरावली के पश्चिम में है। राजस्थान में मरुस्थल है लेकिन मैदान का अधिकतर भाग जलोढ़ निर्मित है।

(2) गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान :

  • गंगा का मैदान उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में विस्तृत है। इसका ढाल उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम से दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व की ओर है। यहां उत्तर एवं दक्षिण से आने वाली सभी नदियां गंगा में मिलती है। दामोदर नदी अपवाद है, जो हुगली में मिलती है।

ऊपरी गंगा के मैदान में दिल्ली से इलाहाबाद तक विस्तृत पश्चिम में यमुना नदी एवं पूर्व में 100 मीटर की समोच्च रेखा सीमा बनाती है। मध्य गंगा का मैदान इलाहाबाद से फरक्का के बीच स्थित है।

  • ब्रह्मापुत्र का मैदान, हिमालय एवं गारो के मध्य असम राज्य में है। यह एक उपजाऊ मैदान है। असम का मैदान एक रैंपघाटी (Ramp valley) है। जहां नदी निक्षेप के कारण अति समतल स्थलाकृतियों का विकास हुआ है।

ब्रह्मपुत्र नदी में गाद के जमाव से बड़े-बड़े द्वीप का निर्माण हुआ है। माजुली द्वीप विश्व की सबसे बड़ी नदी द्वीप है।

  • रूहेलखंड का मैदान – गंगा-यमुना दोआब तथा उत्तर प्रदेश के उत्तरी मध्य भाग पर रूहेलखंड का मैदान है।
  • अवध का मैदान – उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी भाग पर अवस्थित है। मैदान के विभिन्न भागों को पुरबिया, सरयूपार व गोमती के मैदान कहते हैं। समुद्र तटीय मैदान समुद्री अपरदन एवं नदियों द्वारा मुहाने पर जलोढ़ में निक्षेप क्रिया के परिणामस्वरूप समुद्रतटीय मैदान की रचना हुई है। 
  • पश्चिम समुद्र तटीय मैदान – यह खंभात की खाड़ी (सौराष्ट्र) से कुमारी अंतरीप तक 1500 किमी की लंबाई में विस्तृत है। इसकी औसत चौड़ाई 30-40 किमी जो पूर्वी तटीय मैदान की औसत चौड़ाई 80-100 किमी से कम चौड़ी है। सबसे कम चौड़ाई कर्नाटक एवं गोवा के पास है, लगभग 10-12 किमी।
  • काठियावाड़ तटीय मैदान – यह सौराष्ट्र (कच्छ) से सूरत (दमण) तक उन्मजन क्रिया का प्रतीक है। सरक्रीक, कोरी, क्रीक, कच्छ की खाड़ी, खंभात की खाड़ी यहीं पर हैं। कच्छ की खाड़ी के उत्तर में कच्छ प्रायद्वीप स्थित है, जिसमें प्रसिद्ध कच्छ का रन स्थित है।
  • कोंकण तट – यह दमन से गोवा तक 500 किमी की लंबाई में स्थित है। यह लावा निर्मित है। यहां सालसेट एवं एलिफेंटा द्वीप (मुंबई के पास) स्थित है। यहां उल्लास एवं मैत्रिणी नदियां हैं। मुंबई एक प्राकृतिक बंदरगाह है।
  • कनारा तट – यह गोवा से मंगलोर तक 225 किमी में विस्तृत है। कर्नाटक में शरावती नदी पर जोंग जलप्रपात स्थित है। यहां मर्मागोवा, मतकल, उड्ढपी तथा मंगलौर बंदरगाह स्थित है।
  • मालाबार या केरल तटीय मैदान – मंगलोर से कुमारी अंतरीप तक यह 500 किमी की लंबाई में विस्तृत है। यहां चौड़े मैदान, पतले लैगून या कयाल मिलते हैं।
  • पूर्वी समुद्र तटीय मैदान – पूर्वी तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है। स्वर्णरेखा नदी से कुमारी अंतरीप तक तट के समानांतर मैदान है। यहां पहाड़ी टीले मैदान के मध्य पाए जाते हैं, जिसे नोल (Knol) कहते हैं। 
  1. कोकोनाडा तट – यह गंगा के डेल्टा से कृष्णा नदी के डेल्टा तक है। यहां हुगली, कोलकाता, हल्दिया, पारादीप, पूरी, कॉलिंगपटनम, वाल्टेयर, विशाखापत्तनम, काकीनाडा व मछलीपट्टनम बंदरगाह स्थित है। पांडिचेरी की स्थिति 3 राज्यों में केरल, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में स्थित है। यानम यहीं स्थित है। पूर्वी तट का उत्तरी भाग उत्तरी सरकार या गोलकुंडा तट भी कहलाता है। 
  2. कोरोमंडल तट – कृष्णा से कुमारी अंतरीप तक विस्तृत है। यह कांप मिट्टी का मैदान है। यहां पुलिकट वलयाकार लैगून झील है, जिसको श्रीहरिकोटा द्वीपसमुद्र से अलग किया हुआ है। यहां बान टिबू, पाम्बन एवं श्रीहरिकोटा प्रमुख द्वीप हैं। तमिलनाडु एवं श्रीलंका के मध्य मन्नार की खाड़ी में अनेक छोटे-छोटे प्रवाल द्वीप है। मन्नार की खाड़ी (दक्षिण), पाक जलसंधि (उत्तर), पाक की खाड़ी (मध्य) एवं आदम सेतू है। यहां मद्रास, पुडुचेरी, कडलूर, पोर्टोनोवा, नागापट्टनम, कराईकल, रामेश्वरम तथा कन्याकुमारी आदि बंदरगाह हैं।
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