जैव विविधता का होना मानव के अस्तित्व के लिए अति आवश्यक है। अतः प्राकृतिक जैव संपदा को संतुलित रूप में पृथ्वी पर बनाए रखना अति आवश्यक हैं। विभिन्न मानवीय कारको से जैव-विविधता में ह्रास एवं संकट की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसी कारण जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता महसूस की गई है, ताकि मानव की जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों की संतुलित प्राकृतिक स्थिति बनी रहे।
जैव विविधता संरक्षण वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करता है। साथ ही परिस्थितिक समस्याओं का भी नियंत्रण करता है। इसके लिए जैविक संपदा का उपयोग टिकाऊ विकास के आधार पर किया जाना आवश्यक है अर्थात जैव संपदा का संपोषित उपयोग ही जैव विविधता संरक्षण है।
जैव विविधता संरक्षण के लिए निम्न दो प्रकार के मौलिक दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं।
(1) वाह्य स्थिति संरक्षण :
इसके अंतर्गत वन्यजीवों एवं वनस्पतियों का संरक्षण प्राकृतिक आवास से अलग किया जाता हैं। इसमें मानव निर्मित कृत्रिम आवासों में जीवों का संरक्षण किया जाता है। इसके लिए जीवो के नमूनों को जीन संसाधन केंद्रों में एकत्र कर जीन बैंकों, बॉटेनिकल तथा जूलॉजिकल गार्डन में, उत्तक संवर्धन केंद्रों में सुरक्षित रूप से रखा जाता है, तथा पोषित किया जाता है। इससे जीवो के विकास के लिए उचित कृत्रिम स्थिति बनाई जाती है।
(2) यथास्थिति संरक्षण :
यथास्थिति संरक्षण में जीवों एवं वनस्पतियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक आवासों में ही किया जाता है। इसमें विभिन्न जैविक प्रजातियों के प्राकृतिक विकास की स्थिति बनी रहती है। इसके लिए जैविक विविधता वाले क्षेत्रों को सुरक्षित क्षेत्र के रूप में मान्यता दी जाती है तथा किसी भी प्रकार के मानवीय हस्तक्षेप को प्रतिबंधित किया जाता है, ताकि जीवो के विकास के लिए प्राकृतिक स्थितियों की अनुकूलता बनी रहे। यथास्थितिक संरक्षण के अंतर्गत निम्न कार्य किए जाते हैं।
- बायोस्फीयर रिजर्व/जैवमंडल रिजर्व स्थापना,
- राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र (नेशनल पार्क),
- पशु विहार या अभ्यारण
(1) बायोस्फीयर रिजर्व/जैवमंडल रिजर्व स्थापना :
यह स्थलीय, तटवर्ती, समुद्री पारिस्थितिक प्रणाली के ऐसे बहुउद्देशीय आरक्षित क्षेत्र है, जिनके माध्यम से पारिस्थितिक में अनुवांशिक विविधता बनाए रखी जाती है। यह जीव-जंतु एवं वनस्पतियों की प्राकृतिक स्थितियों को बनाए रखने में बहुत ही उपयोगी है। इसके अंतर्गत शिक्षण, प्रशिक्षण, जागरूकता, अनुसंधान के कार्य तथा ऐसी प्रबंधन प्रक्रिया अपनायी जाती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संयोजित उपयोग हो सके।
जैवमंडल रिजर्व के उद्देश्य :
- पारिस्थितिक प्रणालियों तथा भू-दृश्यों का संरक्षण,
- पौधों, जीव जंतुओं तथा सूक्ष्म जीवों की संपूर्णता तथा विविधता को बनाए रखना,
- पर्यावरणीय विज्ञान, सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने वाली आर्थिक तथा मानव विकास से संबंधित गतिविधियों को प्रोत्साहन देना,
- शिक्षा, जागरूकता, अनुसंधान, प्रशिक्षण के लिए प्रयास करना।
(2) राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र (नेशनल पार्क) :
इसकी स्थापना प्राकृतिक क्षेत्रों में ही वन्य जीवों को सुरक्षित आवास उपलब्ध कराने के उद्देश्य की जाती है। यह आरक्षित क्षेत्र होता है, जिसमें वनों की कटाई, पशुचरण, कृषि प्रतिबंधित होती है। अधिकतर स्थानों में दुर्लभ तथा विलुप्त प्राय प्रजातियों को विशेष संरक्षण दिया जाता है।
(3) पशु विहार या अभ्यारण :
यहां भी वंयजीव को सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान किया जाता है। परंतु यह एक लचीली अवधारणा है, जिसमें स्थानीय निवासियों को कुछ आर्थिक गतिविधियों की छूट होती है, लेकिन वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने की छूट नहीं होती है।
उपरोक्त मौलिक संरक्षण कार्यो के अतिरिक्त निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं।
- आवास स्थल में सुधार,
- आखेट का प्रतिबंध,
- भूम कृषि पर प्रतिबंध,
- वनीकरण,
- बड़े बांधों की जगह छोटा बांध या जलाशय बनाना,
- पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान,
- पर्यावरण संरक्षण के कानून
1992 के पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता संधि पर हस्ताक्षर गए थे। तथा इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी गई है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा इसे मान्यता दी गई।
उपरोक्त संरक्षण के उपाय द्वारा जैव विविधता में ह्रास को कम किया जा सकता है तथा प्राकृतिक जैव विविधता को बनाए रखा जा सकता है। विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का मात्र है कि समस्त राष्ट्रों में पर्यावरण कानून बनाए जाएं।
भारत में कानून :
- भारतीय वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम – 1972 (1991 में संशोधित),
- पर्यावरणीय सुरक्षा अधिनियम – 1986,
- जल प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम – 1974,
- वन संरक्षण अधिनियम – 1980,
- वन नीति -1988
भारतीय वन्य जीवन एवं वनों के सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए बनाए गए हैं।
Note : भारत में अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों के अंतर्गत देश का 4.66% भाग है, जबकि संतुलन के लिए सुरक्षित क्षेत्र न्यूनतम 5.6% होना चाहिए।
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