सूर्यातप का अर्थ | सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक

सूर्यातप क्या है ?

पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है। जहां से लघु तरंगों के रूप में सौर्यिक विकिरण लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड की दर से पृथ्वी की ओर आता है।

सौर्यिक विकिरण (Solar Radiation) का जो भाग पृथ्वी को प्राप्त होता है, उसे सूर्यतप कहते हैं। सूर्यतप पृथ्वी पर तापीय स्थिति एवं उष्मा के लिए अनिवार्य है। पृथ्वी पर मानव एवं जीव-जंतुओं के जीवन तथा वनस्पतियों के लिए आवश्यक तथा ऊष्मा का मुख्य स्रोत है। सामान्यतः सौर्यिक विकिरण की दर स्थिर होती है और यह 1.94 ग्राम कैलोरी प्रति वर्ग सेंमी प्रति मिनट है। इसे सौर स्थिरांक (Solar Constant) कहा जाता है।

स्पष्टत: पृथ्वी को सूर्यतप की लगभग मात्रा स्थिर होती है। लेकिन विभिन्न अक्षाशों में सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है। पुनः स्थलाकृतिक विशेषताओं के कारण, समान अक्षांश के विभिन्न क्षेत्रों में भी सूर्यतप की मात्रा में अंतर पाया जाता है। इस तरह सूर्यतप विभिन्न खगोलीय एवं स्थलाकृतिक कारकों पर निर्भर करता है।

सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक

  1. सूर्य का आपतन कोण या सूर्य की किरणों का तिरछापन
  2. सूर्य के प्रकाश की अवधि या दिन की अवधि
  3. सूर्य की पृथ्वी से दूरी
  4. वायुमंडल की पारदर्शिता – पृथ्वी के वायुमंडल में बादल, जलवाष्प, गैस, धूलकण उपस्थित होने से सूर्यातप का अवशोषण, परावर्तन, प्रकीर्णन से सूर्यातप पृथ्वी पर कम आता है।
  5. सौर्यिक विकिरण के उत्सर्जन की दर – सूर्य के धब्बे, यदि अधिक है, सौर्यिक विकिरण की मात्रा अधिक होती है। सूर्य के धब्बों का 11 वर्षीय, 17 वर्षीय तथा 23 वर्षीय चक्रीय क्रम है।
  6. स्थलाकृतिक विशेषताएं – जल, स्थल, महाद्वीप, हिमानी, मृदा एवं वनस्पति भिन्न-भिन्न दरों से ऊष्मा का विकिरण व अवशोषण करते हैं।

ऊष्मा का वितरण

  1. संचालन क्रिया :  इसमें संपर्क से ऊष्मा का स्थानांतरण होता है।
  2. संवहन क्रिया :  जल, तरल और गैसों के अणुओं के स्थानांतरण से ऊष्मा का स्थानांतरण होता है।
  3. विकिरण क्रिया :  यह पृथ्वी पर ऊष्मा के स्थानांतरण की प्रक्रिया है। इसमें पार्थिव विकिरण से पृथ्वी का निम्न वायुदाब गर्म हो जाता है।

ऊष्मा बजट

पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूरज है, और सूरत से लघु तरंग के रूप में सूर्य की किरणें पृथ्वी तल तक लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड की दर से आती है। सौर्यिक विकिरण का वायुमंडल एवं पृथ्वी द्वारा अवशोषण होता है। जिससे पृथ्वी एवं वायु मंडल में ताप संतुलन बना रहता है। पृथ्वी और वायुमंडल सौर्यिक ऊर्जा का जिस मात्रा में अवशोषण करता है, उसके बराबर मात्रा ही अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। इस तरह पृथ्वी और वायुमंडल को प्राप्त सौर्य ऊर्जा की मात्रा एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है। अर्थात प्राप्त सौर्य ऊर्जा और उत्सर्जित ऊर्जा में संतुलन बना रहता है। इसे उसमें बजट कहते हैं।

वायुमंडल एवं पृथ्वी पर तापीय स्थिति, तापीय संतुलन एवं अनुकूल अधिवासीय वातावरण के लिए ऊष्मा का संतुलित रूप से प्राप्त होना आवश्यक है। इसी संदर्भ में विभिन्न जलवायुवेत्ताओं द्वारा ऊष्मा बजट के मध्य अवशोषित एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं से निर्धारित होती है, अतः उष्मा बजट का निर्धारण पूर्णतया अनुमान पर आधारित है। इसी कारण विभिन्न जलवायु वेत्ताओ के ऊष्मा बजट में भिन्नता पाई जाती है।

हालांकि समान रूप से स्वीकार किया गया है कि पृथ्वी पर सूर्य से प्राप्त उर्जा व उत्सर्जित ऊर्जा में पूर्णता संतुलन पाया जाता है। पृथ्वी सूर्य ऊर्जा का 51 प्रतिशत प्राप्त करता है और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 48 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है एवं 48 प्रतिशत ही उत्सर्जित भी करता है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं वायुमंडल को ऊष्मा की प्राप्ति होती रहती है और ताप संतुलन बना रहता है।

सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा का 35 प्रतिशत भाग शून्य में वापस लौटा दिया जाता है। शेष 65 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत वायुमंडल का जलवाष्प, बादल, धूलकण तथा कुछ स्थायी गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तरह केवल 51 प्रतिशत ऊर्जा ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाती है। इस 51 प्रतिशत ऊर्जा का 34 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है तथा शेष 17 प्रतिशत विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51 प्रतिशत उष्मा ही पृथ्वी को सही रूप में प्राप्त होती है। पृथ्वी से ऊष्मा की यही मात्रा उत्सर्जित होना आवश्यक होता है। यदि पृथ्वी को प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा से अधिक उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में कमी आने लगेगी। ठीक इसी तरह यदि प्राप्त ऊर्जा की संतुलन में तुलना में कम उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। अतः पृथ्वी को प्राप्त एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। यह स्थिति उष्मा बजट कहलाती है।

पृथ्वी का उष्मा बजट

प्रवेशी सौर्यिक विकिरण की मात्रा  = 100 प्रतिशत

  •  प्रकीर्णन एवं परावर्तन द्वारा क्षय ऊर्जा    =   35 प्रतिशत
  1.  बादलों से परावर्तित   –  27 प्रतिशत
  2.  धरातल से परावर्तन     –   2 प्रतिशत
  3.  शून्य में वायुमंडल द्वारा प्रकीर्णन   –  6 प्रतिशत
  • वायुमंडल द्वारा अवशोषण   =   14 प्रतिशत
  • पृथ्वी को प्राप्त ऊर्जा की मात्रा  =   51 प्रतिशत
  1. सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त –  34 प्रतिशत
  2. विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त –  17 प्रतिशत

वायुमंडल की ऊष्मा बजट सारणी : < Google Update >

  1. प्रवेशी सौर्यिक विकिरण का प्रत्यक्ष अवशोषण – 14 प्रतिशत
  2. बर्हिगामी पार्थिव विकिरण द्वारा प्राप्त  – 34 प्रतिशत

कुल प्राप्त ऊर्जा   =   48 प्रतिशत

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