पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल पृथ्वी तंत्र का अभिन्न अंग है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायुमंडल पृथ्वी से अलग नहीं हो सकता और पृथ्वी के चारों और यह बना रहता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गैसों के अलावा धूलकण एवं जलवाष्प भी रहते हैं। स्ट्रॉलर के अनुसार, वायुमंडल का विस्तार 80,000 किमी तक है। इस ऊंचाई तक वायुमंडलीय कण उपस्थित रहते हैं, लेकिन संपूर्ण वायुमंडलीय भार का 97% भाग मात्र 29 किमी की ऊंचाई तक ही है। NASA ने भी इसकी पुष्टि की है। 29 किमी की ऊंचाई के बाद, वायुमंडलीय कण विरल अवस्था में हैं। 10,000 किमी के बाद ये परमाणु और आणविक अवस्था में है। 80,000 किमी के बाद पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के वायुमंडल में विलीन हो जाता है।
वायुमंडलीय संरचना की कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
- वायुमंडल एक भौतिक संरचना है। इसका निर्माण गैस, धूलकण तथा जलवाष्प से हुआ है। वायुमंडल का संगठक तत्व गैस, धूलकण तथा जलवाष्प है।
- भारी गैस वायुमंडल के निचले भाग में पाई जाती है एवं हल्की गैस ऊपरी भाग में चली जाती है। CO2 की उपस्थिति 80 किमी तक है, जबकि O2 एवं N2 की उपस्थिति 150 किमी तक है। इसके ऊपर हीलियम एवं हाइड्रोजन गैस पाई जाती है।
- वायुमंडलीय धूलकण एवं जलवाष्प की उपस्थिति मुख्यतः निम्न वायुमंडल में है लेकिन मध्यवर्ती भाग में भी धूलकण पाए जाते हैं। आकाशीय पिंडों के विखंडन से भी धूलकण पाए जाते हैं।
- वायुमंडल में संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर कई संकेन्द्रीय पेटियां पायी जाती हैं, जो तापीय परिवर्तन पर आधारित हैं। सामान्यतः वायुमंडल के निम्न भाग में तापमान का ह्यस होता है। पुनः ओजोन के क्षेत्र में तापमान में वृद्धि होती है, इसके ऊपर पुनः कमी होती है, अंततः ताप मण्डल में और ऊपर तापमान में वृद्धि होती है, इसके ऊपर पुनः कमी होती है।
- वायुमंडलीय संरचना के अंतर्गत अनेक प्रकार की गैसें पाई जाती हैं, लेकिन नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। 25 किमी की ऊंचाई तक शुष्क वायु के आयतन का नाइट्रोजन 78% तथा ऑक्सीजन लगभग 21% होता है।
सतह से 25 किमी की ऊंचाई के अंतर्गत कुल गैसीय भार का 99.02% इन्हीं दो गैसों का होता है। अन्य महत्वपूर्ण गैसों में ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियोन, ओजोन, हिलियम एवं हाइड्रोजन का स्थान है। समान्यत: 80 किमी की ऊंचाई तक यह अनुपात कायम रहता है। इसके बाद अनुपात में परिवर्तन होता है और हाइड्रोजन एवं हीलियम की मात्रा में वृद्धि होती है। 80 किमी से अधिक ऊंचाई पर विभिन्न गैसों के अलग-अलग स्तर होते हैं।
- अणु नाइट्रोजन स्तर – 90-120 KM
- परमाणु ऑक्सीजन स्तर – 200-400 KM
- हीलियम स्तर – 1100-3500 KM
- परमाणु हाइड्रोजन स्तर – 3500-10,000 KM
वायुमंडल के गैसीय वितरण में ओजोन का विशेष महत्व है। ओजोन की उपस्थिति 50 किमी की ऊंचाई तक है, लेकिन 15 से 35 किमी के बीच अधिक सघनता के कारण इसे ‘ओजोन परत’ कहा जाता है। यह गैस सूर्य की पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेती है तथा इसके कारण समताप मंडल में ताप वृद्धि पायी जाती है।
(6) धूलकण एवं जलवाष्प मुख्यतः निम्न वायुमंडल में मौजूद रहते हैं। वायुमंडलीय धूल कणों को दो भागों में बांटा जा सकता है।
- पार्थिव धूलकण,
- ब्रह्मण्डीय धूलकण
पार्थिव धूलकण की उपस्थिति मुख्यत: 5 किमी एवं अधिकतर 12 किमी तक ही है। यह धूलकण ही बादलों के निर्माण का आधार होता है। ब्रह्मण्डीय धूलकणों की उपस्थिति 50 किमी से अधिक ऊंचाई पर ब्रह्मण्डीय कणों के विखंडन के कारण होती है। निशादिप्त बादल का निर्माण इन्हीं धूलकणों के चारों ओर होता है। जलवाष्प की उपलब्धि समान्यत: 12 किमी की ऊंचाई तक ही होती है। लेकिन कुछ कण 50 किमी से अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं। समताप मंडल में तापीय वृद्धि के प्रभाव से जब ये जलवाष्प ओजोन स्तर को पार कर जाता है तो घनीभूत होने लगता है और निशादिप्त बादल के रूप में मौजूद रहता है।
वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति के तीन महत्वपूर्ण कारक है।
- वाष्पीकरण
- वाष्पोत्सर्जन
- उर्ध्वपातन
वायुमंडल की लंबवत संरचना का अध्ययन सकेंद्रीय पेटियों में किया जाता है। वायुमंडल में सामान्यतः निम्नलिखित 6 सकेंद्रीय पेटियां पायी जाती हैं।
(1) क्षोभमंडल :
- ऊंचाई 8-18 किमी तक
- तापमान में क्रमिक ह्यस 6.5°C/Km की दर से
- ऊपरी परत का ताप -60°C से -65°C
(2) समताप मंडल :
- ऊंचाई 50 किमी तक
- तापीय वृद्धि, ऊपरी परत का तापमान 0°C
(3) मध्य मंडल :
- ऊंचाई 80 किमी तक
- ताप का घटना, ऊपरी परत का तापमान 85°C से 100°C तक
(4) तापमंडल :
- ऊंचाई 500 किमी तक
- तापीय वृद्धि, ऊपरी तापमान 25°C तक
(5) वर्हिमंडल :
- ऊंचाई 2000 किमी तक
- तापीय वृद्धि जारी, ऊपरी परत का तापमान 1000°C तक
(6) चुंबकीय मंडल :
- ऊंचाई 80,000 किमी
- ऊपरी परत का तापमान 17°C तक
उपरोक्त के अलावा तीन सकेंद्रीय पेटियां भी हैं, जिसकी विशेषता है तापीय स्थिरता। ये हैं –
- क्षोभ मंडल एवं समताप मंडल के मध्य क्षोभसीमा
- समताप मंडल एवं मध्य मंडल के बीच समताप सीमा
- मध्य मंडल एवं ताप मंडल के बीच मध्यसीमा है।
इन तीनों की मोटाई क्रमशः 1.5 किमी, 5 किमी तथा 10 किमी है। वाह्य मंडल में भी सक्रमण पेटियों की उपस्थिति हो सकती है।
- क्षोभमंडल की अधिकतम ऊंचाई विषुवतरेखा पर एवं न्यूनतम ऊंचाई ध्रुवों पर होती है। विषुवत रेखीय ऊंचाई का प्रमुख कारण संवहन एवं वायु का लंबवत रूप से ऊपर उठना है। यहां पर वायुमंडलीय परिवर्तन, ताप विकिरण, ताप संचालन व ताप वहन की क्रिया होती है। अधिकतर जलवाष्प एवं धूलकण इसी परत में पाए जाते हैं। बादलों का निर्माण, बिजली का चमकना तथा गर्जना इसी पेटी में होता है। मौसम परिवर्तन घटनाएं होती हैं।
ऊपरी सीमा पर जेट हवाएं चलती हैं। यहां ऊंचाई के साथ तापीय ह्रास होता है। समताप मंडल में ऊंचाई के साथ तापीय वृद्धि होती है। इसका प्रमुख कारण ओजोन की उपस्थिति है। चूंकि ओजोन सूर्य की पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेती है। इसके निचले भाग में भी जेट हवाओं का प्रभाव देखने को मिलता है। मध्य मंडल में ओजोन की कमी के कारण तापीय ह्रास होता है एवं Noctilucent का निर्माण होता है।
- तापमंडल में आयनीकृत पदार्थों की उपस्थिति के कारण तापीय वृद्धि होती है। यहीं पर दक्षिण ध्रवीय प्रकाश एवं उत्तरी ध्रवीय प्रकाश की उत्पत्ति होती है। रेडियो तरंगे यहीं से परावर्तित होती है। तापमंडल में ही अधिक ऊंचाई पर 80 से 640 किमी के मध्य आयन मंडल स्थित है। 100 से 300 किमी के मध्य स्वतंत्र आयनों की संख्या सर्वाधिक होती है। यहां विद्युत तथा चुंबकीय घटनाएं घटित होती है, तथा ब्रम्हांड किरणों (Cosmic rays) का परीलक्षण होता है। रेडियो तरंगे यहीं से परावर्तित होती है। यहां तीन परत पायी जाती है।
- D परत (60-100 Km) यहां से मध्यम तरंगों का परावर्तन होता है।
- E परत (90-130 Km) यहां से मध्यम तरंगों का परावर्तन होता है।
- F परत (130-300 Km) यहां से रेडियो की लघु तरंगों का परिवर्तन होता है।
- आयन मंडल में ही उत्तरी ध्रुवीय तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश की उत्पत्ति होती है।
वर्हि मण्डल – यहां तापमान में लगातार वृद्धि होती है। यहां आयनीकृत पदार्थों की उपलब्धता भी अधिक होती है तथा हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम के अणु या परमाणु पाए जाते हैं।
- चुंबकीय मंडल में तापमान में लगातार वृद्धि होती है तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में कमी आती है। इस क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन जैसे आवेशित कणों की प्रधानता होती है तथा ये क्रमशः ऋणात्मक एवं धनात्मक विद्युत आवेश में आवेशित रहते हैं। यहां पर चुंबकीय शक्ति का गुरुत्वाकर्षण से अधिक प्रभाव होता है। इस मंडल में सौर, आंधी, कॉस्मिक किरणों और सौर लपटों का प्रभाव रहता है। हाल के अध्ययन से पता चला है कि सूर्य की सतह पर उठने वाली लपट एवं तूफान से चुंबकीय मंडल का तापमान प्रभावित होता है और इसका प्रभाव अंततः क्षोभमंडल के मौसमी परिवर्तन पर पड़ता है।
अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि वायुमंडल की संरचना में अनेक प्रकार की जटिलताएं एवं विभिनताएं पाई जाती है। इन वायुमंडलीय जटिलताओं और विशेषताओं का प्रत्यक्ष प्रभाव पृथ्वी की जलवायु, मौसम परिस्थितियों तथा विभिन्न क्रियाकलापों पर भी होता है। मानसून की उत्पत्ति, प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा, तूफान आदि इन वायुमंडलीय विषमताओं से ही संबंधित है।
अतः ऊपरी वायुमंडल की विशेषताओं एवं जटिलताओं का और भी अध्ययन एवं अनुसंधान की आवश्यकता है।
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