कोपेन का जलवायु वर्गीकरण | जलवायु वर्गीकरण

ऑस्ट्रेलिया के जलवायु वैज्ञानिक कोपेन महोदय ने 1931 एवं 1936 ई. में विश्व की जलवायु के लिए वर्गीकरण योजना बनाई थी। यद्यपि यह योजना विश्व के संदर्भ में दी गई थी, लेकिन भारत जैसे उप-महाद्वीपीय प्रदेश के लिए यह व्यापक महत्व रखती है। यह योजना 4 आधारभूत कारकों पर आधारित है। ये कारक हैं – वनस्पति, तापमान, वर्षा तथा उच्चावच।

प्रारंभ में कोपेन ने प्रथम तीन कारकों को ही महत्व दिया, लेकिन बाद में यूरेशिया के मध्यवर्ती पर्वतों के प्रभाव को ध्यान में रखकर उच्चावच (Relief) के प्रभाव को भी जलवायु कारकों में सम्मिलित कर लिया। कोपेन के वर्गीकरण योजना में सांकेतिक शब्दावली (Nominal terminology) का प्रयोग किया गया तथा इसी के साथ उन्होंने पदानुक्रमिक योजना (Hierarchical scheme) भी प्रस्तुत की, लेकिन भारत की जलवायु विशेषताओं के अध्ययन के क्रम में इन योजनाओं को महत्व नहीं दिया गया। कोपन महोदय ने स्वयं लिखा है कि बड़े प्रदेशों के लिए स्थानीय विशेषताओं के आधार पर पदानुक्रम निर्धारित किए जा सकते हैं।

कोपेन महोदय ने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न प्रदेशों से जलवायु संबंधी आंकड़ों को एकत्रित कर भारत को निम्नलिखित 9 जलवायु प्रदेशों में बांटा है।

  1. लघु कालीन शुष्क जल ऋतु की मानसूनी जलवायु  (Amw)
  2. उष्ण सवाना प्रकार की जलवायु  (Aw)
  3. पूर्णतः शुष्क ग्रीष्म ऋतु की मानसूनी जलवायु  (As)
  4. अर्ध मरुस्थलीय स्टेपी प्रकार की जलवायु  (Bshw)
  5. गरम मरुस्थलीय जलवायु  (Bwhw)
  6. शुष्क शीत ऋतु की मानसूनी जलवायु  (Cwg)
  7. आर्द्र जाड़े की ऋतु तथा लघुकालीन ग्रीष्म ऋतु की जलवायु  (Dfc)
  8. ठंडी जलवायु  (ET) (ट्रूण्ड्रा प्रदेश
  9. हिमाच्छादित जलवायु  (EF) (ध्रुवीय क्षेत्र)

लघु कालीन शुष्क जल ऋतु की मानसूनी जलवायु 

इस प्रकार की जलवायु की विशेषताएं विषुवतीय जलवायु से मिलती है। अधिक तापमान, अधिक वर्षा, अधिक सापेक्षिक आर्द्रता और चौड़ी पत्ती के सघन वनों का पाया जाना, इस जलवायु की विशेषताएं हैं। इस जलवायु में मौसम का अभाव होता है एवं सालों भर लगभग एक ही प्रकार की जलवायु पाई जाती है। वार्षिक वर्षा 350 सेंमी से अधिक होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। सर्वाधिक तापमान अप्रैल-मई में 29 डिग्री सेल्सियस औसत रूप में होता है। दिसंबर एवं जनवरी में सर्वाधिक ठंड पड़ती है। इस समय औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस होता है। वार्षिक तापांतर 10.8 डिग्री सेल्सियस होता है, जबकि विषुवतीय प्रदेश में वार्षिक तापांतर 5 डिग्री सेल्सियस होता है। यही कारण है कि यह पूर्णत: विश्व के विषुवतीय प्रदेश तो नहीं है, लेकिन उसी प्रकार की जलवायु की विशेषताएं रखते हैं।

यह जलवायु भारत के 3 प्रदेशों में पाई जाती है।

  1. मालाबार तटीय एवं पश्चिमी घाट पर्वतीय प्रदेश
  2. अंडमान एवं निकोबार दीप समूह
  3. उत्तर-पूर्वी भारत

मालाबार तट के प्रदेश एवं अंडमान निकोबार दीप समूह में तुलनात्मक दृष्टि से वार्षिक तापांतर कम होता है। यह 7 से 8 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, इसका प्रमुख कारण है।

  •  विषुवत रेखा (Equator) के नजदीक होना
  •  समुद्री प्रभाव

लेकिन उत्तरी पूर्वी भारत में स्थिति भिन्न है। यहां वार्षिक तापांतर 13 डिग्री सेल्सियस होता है, जो मौसम में परिवर्तन का द्योतक है। इसका प्रमुख कारण है।

  1. यह महासागरीय प्रभाव से दूर है।
  2. तुलनात्मक दृष्टि से अधिक अक्षांश पर है।
  3. हिमालय से उतरने वाली ठंडी हवा एवं मेघालय के पठार के कारण तापमान में अंतर।

इन परिस्थितियों का यह परिणाम होता है कि ग्रीष्म ऋतु का तापमान ऊंचा होता है, लेकिन जाड़े की ऋतु का तापमान 14-15 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। कभी-कभी उत्तरी शीत लहरों के कारण यह तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से भी कम हो जाता है। लेकिन ये परिस्थितियां कुछ ही दिन कार्य करती हैं। अतः मौसम विशेषताओं पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।

80% से अधिक वर्षा उत्तर-पश्चिमी मानसूनी वायु से होती है। जून के मध्य में वर्षा प्रारंभ हो जाती है, जो अक्टूबर के मध्य तक प्रभावित होती है। सामान्यतया जाड़े की ऋतु में वर्षा नहीं होती है। कभी-कभी भूमध्यसागरीय प्रदेश से चलने वाली पछुआ हवा के प्रभाव से इस प्रदेश में वर्षा होती है। इस प्रदेश में ‘मानसूनी पूर्व (Pre monsoon)’ की वर्षा होती है, जो चक्रवाती (Cyclone) होती है। यह ‘काल बैसाखी’ या ‘आम्र वर्षा’ के नाम से जाना जाता है।

उष्ण सवाना प्रदेश

इस प्रदेश की जलवायु मुख्यतः प्रायद्वीपीय भारत की विशेषता है। प्रायद्वीपीय भारत की 3 प्रदेशों को छोड़कर यह संपूर्ण प्रदेश में पाई जाती है। ये प्रदेश हैं – मालाबार तटीय प्रदेश, पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया प्रदेश तथा तटवर्ती तमिलनाडु प्रदेश। यहां वार्षिक वर्षा 75-150 सेंमी होती है। यह प्रदेश मौसमी विशेषताओं के लिए विख्यात हैं। अर्थात यह वह प्रदेश है, जहां ऋतु पहचान की जाती है। यहां समान्यत: 3 ऋतुएं पाई जाती हैं – जाड़ा, गर्मी और वर्षा।

जाड़े की ऋतु का औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से अक्टूबर 15 नवंबर से 15 फरवरी का समय है। यह सामान्यतय: शुष्क मौसम होता है एवं यहां से स्थलीय हवाएं (Terrestrial winds) चलती हैं, लेकिन तमिलनाडु तटीय प्रदेश इसका अपवाद है। यहां जाड़े की ऋतु में उत्तर-पूर्व मानसून से वर्षा होती है। यह वर्षा, ग्रीष्म ऋतु की वर्षा से अधिक होती है।

ग्रीष्म ऋतु के अंतर्गत अप्रैल और मई का महीना आता है। इन 2 महीनों का औसत तापमान 32 डिग्री सेल्सियस होता है। इसके बावजूद वार्षिक तापांतर 13.8 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। फरवरी से मार्च तक बसंत कालीन मौसम होता है। जब तापमान में लगातार वृद्धि होती रहती है। तापमान की इसी वृद्धि के कारण अप्रैल एवं मई महीने में चक्रवात भी आते हैं। चक्रवात का प्रभाव मुख्यतः उड़ीसा एवं उत्तरी आंध्र प्रदेश के तटवर्ती क्षेत्रों में पड़ता है। ऐसे चक्रवात का प्रभाव मैदानी भारत पर भी होता है।

जून से 15 नवंबर तक का काल वर्षा ऋतु का है। इसमें जून से सितंबर तक का काल दक्षिण-पश्चिम मानसून का है, और यही वर्षा करती है। अधिकतर वर्षा इसी मौसम में होती है। अक्टूबर से नवंबर तक उत्तरी पूर्वी मानसून या लौटती मानसून का काल है। यह शरद कालीन वर्षा चक्रवाती प्रकार की होती है। इसका प्रभाव आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तटवर्ती प्रदेशों में होता है।

शुष्क ग्रीष्म ऋतु की मानसूनी जलवायु

यह तमिलनाडु तटवर्ती प्रदेश की जलवायु है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 40-65 सेंमी के बीच होती है, लेकिन 80% से अधिक वर्षा उत्तर-पूर्वी मानसून तथा कुछ वर्षा शरद ऋतु के चक्रवर्ती वायु से होती है। इस चक्रवाती हवा की उत्पत्ति उत्तर-पूर्वी मानसून और पीछे हटते मानसून के बीच उत्पन्न निम्न वायुदाब का परिणाम है।

अर्ध मरुस्थलीय स्टेपी प्रकार की जलवायु

इस जलवायवीय प्रकार में मुख्यतः अर्ध मरुस्थलीय विशेषताएं पाई जाती हैं। यह जलवायु भारत के दो प्रदेशों में पाई जाती है।

  1. प्रायद्वीपीय भारत का वृष्टि छाया प्रदेश
  2. पश्चिम भारत में अर्धचंद्राकार प्रदेश  (Crescent region) जो कच्छ के रन से पंजाब राज्य तक फैला हुआ है।

वृष्टि छाया प्रदेश (Rain shadow region) में वार्षिक औसत वर्षा 35-75 सेंमी के बीच होती है, जबकि पश्चिमी अर्धचंद्राकार प्रदेश में 35-65 सेंमी के बीच होती है। ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है। मई एवं जून सर्वाधिक गर्म होते हैं, जब औसत तापमान 33-35 डिग्री सेल्सियस के मध्य होता है। वृष्टि छाया प्रदेश (Rain shadow region) में दिसंबर सबसे ठंडा होता है, जब मौसम तापमान 20-24 डिग्री सेल्सियस होता है। जबकि पश्चिमी अर्धचंद्राकार (Crescent) प्रदेश में जनवरी में सबसे कम तापमान 12 डिग्री सेल्सियस होता है। वृष्टि छाया प्रदेश में गर्मी में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है, जबकि पश्चिमी अर्धचंद्राकार प्रदेश में गर्मी में लू चलती है, जो मैदानी भारत के लोगों के लिए काफी कष्टकारक है। साथ ही यहां जाड़े में हिमालय से चलने वाली ठंडी हवा के कारण शीत लहरों का प्रकोप रहता है एवं तापमान हिमांक से भी नीचे चला जाता है। कुल मिलाकर यह सूखाग्रस्त क्षेत्र है।

गर्म मरुस्थलीय जलवायु

इसके अंतर्गत राजस्थान का मरुस्थल क्षेत्र आता है। जहां औसत वर्षा 35 सेंमी से कम होती है। जैसे-जैसे हम पश्चिम की ओर जाते हैं, वर्षा की मात्रा घटती जाती है और सबसे कम वर्षा भारत-पाकिस्तान सीमा पर अवस्थित रामगढ़ नामक जगह पर होती है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंमी होती है। जून सर्वाधिक गर्म महीना होता है, जब औसत तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है। जनवरी में न्यूनतम तापमान 11 डिग्री सेल्सियस होता है। वार्षिक तापांतर 24 डिग्री सेल्सियस होता है। शुष्क ग्रीष्म ऋतु की अवधि लंबी होती है, और वर्षा के करीब 6 महीने तक औसत तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। यहां बालू निर्मित मरुस्थलीय वातावरण देखने को मिलता है। जाड़े की ऋतु में यह क्षेत्र उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है, और यहां से सन्मार्गी वायु दक्षिण-पश्चिम दिशा में अपवाहित (Drain) होती है। ग्रीष्म काल में यहां लूं हवाएं चलती है, जो जानलेवा हो सकती है। यद्यपि वर्षा की मात्रा कम होती है लेकिन लगभग संपूर्ण वर्ष दक्षिण पश्चिम मानसून के द्वारा होती है।

शुष्क शीत ऋतु की मानसूनी जलवायु

इस जलवायु का भौगोलिक (Geographical) विस्तार ब्रह्मपुत्र, गंगा तथा सतलज घाटी प्रदेश में है। मालवा के पठार भी इसके अंतर्गत ही आते हैं। इस जलवायवीय प्रदेश का उतरी सीमांकन 1000-1370 मीटर की पर्वतीय ऊंचाई के क्षेत्र से होता है। यह प्रदेश मौसमी विशेषताओं का भी क्षेत्र है। प्रदेश की अधिकतम वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून द्वारा ही होती है। इस प्रदेश के अंतर्गत तापमान एवं वर्षा के वितरण में भारी विषमता पाई जाती है। पूर्वी सीमा पर 300 सेंमी वर्षा होती है। वहीं पश्चिमी सीमा पर 65 सेंमी ही वर्षा हो पाती है। तापमान के वितरण में भी भारी विषमता (Abnormality) पाई जाती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी बिहार के मैदान और पठार के सीमांत क्षेत्र में तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जबकि जाड़े की तुलना में पंजाब और हरियाणा का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है।

यद्यपि अधिकतर वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से ही होती है, लेकिन मानसूनी वर्षा वायु के आगमन के पूर्व चक्रवाती वर्षा (Cyclonic rain) का प्रभाव बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, पूर्व उत्तर प्रदेश एवं पूर्वी मध्य प्रदेश में देखने को मिलता है। इस मानसूनी वर्षा की मात्रा तो कम होती है, लेकिन यह आम एवं लीची जैसे फलों के लिए लाभदायक होती है। इस प्रकार भूमध्यसागरीय पछुआ वायु के प्रभाव से पश्चिमी हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाड़े में वर्षा होती है। यह वर्षा रबी फसलों के लिए बहुत ही लाभदायक है। जाड़े में संपूर्ण प्रदेश का वायुदाब उच्च होता है। अतः बंगाल की खाड़ी की हवा इस प्रदेश में नहीं आ पाती, बल्कि यहां से हवा बंगाल की खाड़ी की तरफ अपवाहित होती है।

आर्द्र जाड़े की ऋतु तथा लघु कालीन गर्मी ऋतु की जलवायु

इस प्रकार की जलवायु उत्तरी-पूर्वी भारत के उत्तरी पर्वतीय प्रदेश की विशेषता है। यह जलवायु मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है। यहां 8 महीने तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। और 4 महीने जाड़े की ऋतु होती है जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है एवं कड़ाके की सर्दी पड़ती है यहां वर्ष में करीब 7-8 महीने वर्षा होती है एवं औसत 200 सेंमी वर्षा होती है। ऐसा पर्वतीय स्थिति के कारण हैं। वह सब मुख्यता दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है, वर्षभर उच्च आर्द्रता (Humidity) रहती है और सघन वन (Dense forest) पाए जाते हैं। कम ऊंचाई पर चौड़ी पत्ती के तथा अधिक ऊंचाई पर नुकीली पत्ति (Pointed Leaf) के पेड़ पाए जाते हैं।

ठंडी जलवायु/Cold Climate/टुण्ड्रा प्रदेश (ET)

ठंडी जलवायु,  शिवालिक हिमालय एवं लघु हिमालय प्रदेश की विशेषता है। यहां ऊंचाई के प्रभाव के कारण ठंडी जलवायु पाई जाती है। ग्रीष्म ऋतु मात्र 3 महीने की होती है। ग्रीष्म ऋतु में भी औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं हो पाता, इसके विपरीत जाड़े की ऋतु लंबे समय तक होती है एवं जाड़े में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में भारी हिमपात होता है। शिवालिक एवं लघु हिमालय के अतिरिक्त अंतर्पर्वतीय घाटी क्षेत्र और लद्दाख के पठारी क्षेत्र में भी इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है। एक अपवाद यह है कि लद्दाख के पठारी क्षेत्र में वर्षा 50 सेंमी से कम वर्षा होती है, जिसके कारण यहां अर्द्ध मरुस्थलीय वातावरण पाया जाता है, लेकिन तापीय विशेषताओं के कारण यह ठंडी जलवायु प्रकार की जलवायु क्षेत्र है। < वैश्विक मिथेन प्रतिज्ञा | जलवायु परिवर्तन >

हिमाच्छादित जलवायु/Snowy climate/ध्रुवीय क्षेत्र (EF)

इस प्रकार की जलवायु महान हिमालय की विशेषता है। हिमालय प्रदेश में 6000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले प्रदेशों में ही इस जलवायु का विकास हुआ है। यहां ऊंचाई के प्रभाव के कारण तापमान सदैव हिमांक से नीचे रहता है। अतः यह हिमाच्छादित प्रदेश है। इस प्रदेश के निम्न भाग में ग्रीष्म ऋतु में अल्पाइन वनस्पति का विकास होता है। इसकी तुलना ध्रुवीय जलवायु से की जा सकती है।

वस्तुतः कोपेन महोदय द्वारा प्रस्तुत अंतिम दो प्रकार की जलवायु टैगा और टुंड्रा विशेषताओं का द्योतक है लेकिन यें विशेषताएं उच्च अक्षांश के कारण नहीं बल्कि स्थलीय ऊंचाई के कारण विकसित हुई हैं। भारत में हिमालय प्रदेश में ये दोनों प्रकार की जलवायु विकसित हुई है और उसका मूल कारण ऊंचाई के प्रभाव से तापमान में भारी गिरावट का होना है।

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