अक्षांश एवं देशांतर | मकर सक्रांति | विषुवत रेखा

विषुवत रेखा

पृथ्वी के दोनों ध्रुवों से समान दूरी पर पृथ्वी के बीचो-बीच (मध्य में) पूर्व से पश्चिम की ओर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखा (Imaginary Line) विषुवत रेखा (Equator) कहलाती है। इसे 0 डिग्री अक्षांश माना जाता है। यह एक विभाजक रेखा (Dividing line) है जो पृथ्वी को उत्तर एवं दक्षिण में दो बराबर भागों में विभाजित करती है। विषुवत रेखा के उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध कहते हैं।
विषुवत रेखा इन देशों से गुजरती है :  इक्वेडोर, कोलंबिया, ब्राजील, गैबोन, कांगों गणराज्य, लोकतांत्रिक कांगो गणराज्य, युगांडा, केन्या, सोमालिया, मालदीव, इंडोनेशिया और किरिबाती आदि।

अक्षांश एवं अक्षांश रेखाएं (Latitude and Parallels of Latitudes)


अक्षांश/Latitude

भूमध्य रेखा या विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण पृथ्वी के किसी भी स्थान को कोणात्मक दूरी (Negative distance) को अक्षांश कहते हैं। इसे कोण (Angle) में मापा जाता है।

  • अक्षांश किसी भी स्थान की विषुवत रेखा से कोणीय दूरी है।

अक्षांश रेखा/Latitude line

विषुवत रेखा के उत्तर या दक्षिण प्रत्येक अक्षांश पर विषुवत रेखा के समांतर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखाएं अक्षांश रेखाएं कहलाती हैं।

  • अक्षांश रेखाओं की संख्या विषुवत रेखा से उत्तर की ओर 90 तथा दक्षिण की ओर 90 है। अर्थात कुल 180 अक्षांश रेखाएं हैं। दो अक्षांश रेखा के मध्य के क्षेत्र को कटिबंध कहते हैं।
  • दो अक्षांश रेखा के बीच की दूरी सदैव स्थिर रहती है। यह दूरी 111.16 किमी है। अक्षांश रेखाओं की लंबाई ध्रुवों पर बिंदु मात्र रह जाती है। केवल विषुवत रेखा ही पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभाजित करती है।

देशांतर एवं देशांतर रेखाएं


प्रधान देशांतर/Prime Meridian

लंदन के ग्रीनविच से गुजरने वाली रेखा को प्रधान देशांतरीय मध्यान्ह रेखा कहते हैं। इसे 0 डिग्री देशांतर रेखा भी कहते हैं। यह उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती है। पूर्व एवं पश्चिम देशांतर की गणना यहीं से की जाती है।

  • देशांतर (Longitude) :  देशांतर किसी स्थान की वह कोणात्मक दूरी है, जिसे विषुवत रेखा पर प्रधान देशान्तर से पूर्व या पश्चिम अंशों में मापा जाता है।
  • देशांतर रेखा :  प्रधान देशांतर के पूर्व और पश्चिम प्रत्येक देशांतर पर प्रधान देशांतर के समानान्तर खींची गई रेखाओं को देशांतर रेखा कहा जाता है। उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव को जोड़ने वाली सभी रेखाएं देशांतर रेखाएं हैं। देशांतर रेखाओं की संख्या 360 है। 180 प्रधान देशांतर के पूर्व एवं 180 पश्चिम स्थित है। दो देशांतर रेखाओं के बीच दूरी विषुवत रेखा पर सर्वाधिक 111.16 किमी होती है। जबकि ध्रुवों की ओर घटती जाती है, ध्रुवों पर शुन्य हो जाती है। दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी विषुवत रेखा पर 111.16 किमी, 66.5 डिग्री अक्षांश पर आधा किमी और ध्रुवों पर शून्य हो जाती है। प्रत्येक देशांतर रेखा पूर्ण वृत है, और पृथ्वी को दो समान भागों में विभाजित करती है।

कर्क रेखा/Tropic of Cancer

23.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश रेखा को कर्क रेखा कहते हैं। सूर्य उत्तरायण की स्थिति में कर्क रेखा पर ही अंतिम दूरी तक लम्बवत होता है। उत्तरी अयन वृतों का निर्धारण कर्क रेखा अर्थात 23.5 डिग्री की उत्तरी अक्षांश रेखा द्वारा होता है। सूर्य वर्ष में एक बार कर्क रेखा पर लंबवत होता हैं।

  1. कर्क रेखा इन देशों से गुजरती है :  कर्क रेखा विश्व के 18 देशों से होकर गुजरती है, जैसे  ताइवान, चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भारत, ओमान, UAE, सऊदी अरब, मिस्र, लीबिया, नाइजर, अल्जीरिया, माली, मारीतानिया, चाड, पश्चिमी सहारा, बहामास और मैक्सिको।
  2. भारत में कर्क रेखा 8 राज्यों गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम से होकर गुज़रती है।

मकर रेखा/Tropic of Capricorn

23.5 डिग्री का दक्षिणी अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते हैं। सूर्य दक्षिणायन की स्थिति में मकर रेखा पर अंतिम दूरी तक लम्बवत होता है। दक्षिणी अयन वृत का निर्धारण मकर रेखा अर्थात 23.5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश रेखा से होता है। सूर्य मकर रेखा पर वर्ष में एक बार लम्बवत रहता है। सूर्य की स्थिति एवं मकर रेखा के मध्य परिवर्तित होती रहती है, अर्थात सूर्य कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य ही लम्बवत होता है।

विषुव/Equinox

पृथ्वी अपने कक्ष में वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति में आ जाती है, जब सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लंबवत पड़ती हैं। इस स्थिति को विषुव कहते हैं। इस समय सभी अक्षांशों पर दिन-रात बराबर होते हैं। अर्थात पृथ्वी के सभी भागों में दिन एवं रात की अवधि बराबर होती है।

  • यह स्थिति 21 मार्च एवं 23 सितंबर को होती है। 21 मार्च की स्थिति को बसंत विषुव (Spring Equinox) कहते हैं। 23 सितंबर की स्थिति को शरद विषुव (Autumn Equinox) कहते हैं।
  • कर्क संक्रांति (Summer Solstice) :  सूर्य उत्तरायण की स्थिति में 21 जून को कर्क रेखा पर लंबवत होता है। इस स्थिति को कर्क संक्रांति कहते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़ा रातें छोटी होती है, अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है।  उत्तरी ध्रुव के पास 24 घंटे का दिन होता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटा होता है, तथा शीत ऋतु रहती हैं। दक्षिणी ध्रुव के पास 24 घंटे की रात होती है।
  • मकर सक्रांति (Winter Solstice) :  सूर्य दक्षिणायन की स्थिति में 22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंबवत होता है, इस स्थिति को मकर संक्रांति कहते हैं। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़े एवं रातें छोटी होती है अतः दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु रहती है। दक्षिणी ध्रुव के पास 24 घंटे का दिन होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटा होता है, और शीत ऋतु होती है। उत्तरी ध्रुव के पास 24 घंटे की रात होती है।

Note – नार्वे में कर्क संक्रांति की स्थिति में अर्द्ध रात्रि के समय भी सूर्य का प्रकाश रहने के कारण उसे ‘अर्द्ध रात्रि के सूर्य का देश’ (Land of mid-night Sun) कहा जाता है।

चंद्रमा की गतियां (Motion of Moon) :  ब्रह्मांड के अन्य पिण्डों की तरह चंद्रमा भी एक ब्राह्मण्डीय पिण्ड है। चंद्रमा में तीन प्रकार की गतियां पायी जाती है –

  1. घूर्णन (Rotation)
  2. परिक्रमण
  3. सूर्य संबंधित गति (Sun speed)
  • चंद्रमा की घूर्णन गति : चंद्रमा अपने अक्ष पर 27 दिन 7 घंटे में एक चक्कर लगाता है।
  • चंद्रमा की परिक्रमण गति : चंद्रमा अपने अक्ष पर घूर्णन करते हुए पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन, 7 घंटे में करता है। अर्थात चंद्रमा की घूर्णन एवं परिक्रमण गतियों की अवधि समान है।
  • चंद्रमा का केवल आधा भाग ही सदैव पृथ्वी के सामने रहता है, दूसरा भाग कभी भी पृथ्वी के सामने नहीं आता।

सूर्य से संबंधित गतियां एवं तथ्य

पृथ्वी की परिक्रमा के साथ-साथ चंद्रमा की सूर्य-सापेक्ष गति भी है। इस गति के कारण चंद्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा में ढाई दिन पीछे रह जाता है, इस समय तक पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करते हुए कुछ आगे बढ़ जाती है। इस दूरी को तय करने में चंद्रमा को ढाई दिन का अतिरिक्त समय लग जाता है। इसलिए चंद्रमास (Lunar month) 30 दिन का होता है।

  1. चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है।
  2. सूर्य के प्रकाश द्वारा प्रकाशित चंद्रमा का आधा भाग ही पृथ्वी पर दिखाई देता है, शेष आधा भाग अंधकार में रहता है।
  3. सूर्य द्वारा प्रकाशित आधा भाग ही हमें घटता-बढ़ता दिखाई देता है।
  4. चंद्रमा के प्रकाशित भाग या दिखाई देने वाली सतह का रूप प्रतिदिन बदलता रहता है, इसे चंद्रकलाएं (Phases of Moon) कहते हैं।
  5. जब सूर्य द्वारा प्रकाशित चंद्रमा का भार पृथ्वी के विपरीत भाग में होता है, तो चंद्रमा हमें दिखाई नहीं देता, यह स्थिति अमावस्या (New Moon) की होती है।
  6. एक सप्ताह के बाद चंद्रमा का आधा भाग प्रकाशित हो जाता है, तो इसे अष्टमी का चंद्रमा कहते हैं।
  7. अष्टमी के चंद्रमा के बाद क्रमशः चंद्रमा का पूरा भाग प्रकाशित हो जाता है और प्रकाशित भाग हमें दिखाई देता है, यह स्थिति पूर्णिमा (Full Moon) कहलाती है।
  8. चंद्रमा के क्रमशः प्रकाशित भाग के बढ़ने पर शुक्ल पक्ष होता है, शुक्ल पक्ष (Darker fortnight) के बाद पूर्णिमा आती है।
  9. पूर्णिमा के बाद प्रकाशित भाग क्रमशः क्षीण होता जाता है, तो कृष्ण पक्ष कहलाता है, कृष्ण पक्ष के अंत में अमावस्या होती है।
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