पिपरमेंट की खेती | मैंथा की फसल

यह एक तिलहन की फसल है। मैथा के पौधे से तेल निकाला जाता है, जो विभिन्न प्रकार की औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एक अजीबोगरीब गंध होती है।

भौगोलिक दशाएं

    • तापमान : 20-40°C
    • वर्षा : 95-105 सेमी
    • जलवायु : उष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु
    • बुआई का समय : 15 जनवरी – 15 फरवरी तक

भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में इसकी खेती की जाती है। नकदी फसल में शुमार मेंथा की सबसे ज्यादा खेती यूपी के मुरादाबाद मंडल, मेरठ, गाजियाबाद, बाराबंकी, चंदौली, बनारस, सीतापुर समेत कई जिलों में सबसे ज्यादा होती है। 90 दिनों में यह फसल तैयार हो जाती है।

पिपरमेंट की किस्में/Types

  1. कोसी :  शीघ्र तैयार होने वाली इस किस्म से औसतन 450-500 क्विण्टल/हेक्टेयर हर्ब तथा 260-300 किग्रा. तेल प्राप्त होता है। इसके तेल में 80-85 प्रतिशत मेंथाल होता है।
  2. शिवालिक :  यह चीन का पौधा है। देर से तैयार होने वाली इस किस्म से 300 क्विण्टल/हेक्टेयर शाक उपज और 180 किग्रा. एसेन्सियल आयल प्राप्त होता है। तेल में 75 प्रतिशत मेंथोल पाया जाता है।
  3. गोमती :  यह भी देर से तैयार होने वाली किस्म है।
  4. हिमालय :  यह मेंथोल पोदीने की नवीन किस्म है।
  5. गोमती :  यह भी देर से तैयार होने वाली किस्म है।

मेंथा की बुआई का सर्वोत्तम समय जनवरी-फरवरी का होता है, मगर रबी फसल की कटाई के बाद भी मेंथा का रोपण किया जा सकता है। 90 दिनों में तैयार होने वाली इस फसल में किसान कुछ ही समय में मुनाफा कमा सकते हैं वैसे मेंथा में फसल के दौरान खेतों में हल्की नमी जरूरी रहती है फसल के दौरान इसमें कई बार पानी लगाया जाता है. वहीं कटाई के समय मौसम के साफ रहने का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

मेंथा की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले कृषि उपकरण से कम से कम एक बार गहरी जुताई करें और इसी के साथ 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर या कंपोस्ट की खाद खेत में मिलाएं। इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई करें और हर बार जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लें।

पिपरमेंट की खेती से लाभ

जून तक तैयार होने वाली इस फसल से अमूमन एक बीघा मेंथा में करीब 12-15 किलो तक मेंथा आयल निकल आता है जो अच्छा मुनाफा देता है

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