कहवा भारत की एक महत्वपूर्ण बागानी फसल है। इस फसल की उत्पत्ति अबीसीनिया से मानी जाती है। भारत में इसका उत्पादन चिकमंगलूर (कर्नाटक) से शुरू हुआ। सर्वप्रथम बाबा बुदन पहाड़ी पर 17वीं शताब्दी में बाबा बुदन साहिब द्वारा लगाया गया था। 1830 से इसकी कृषि व्यापारिक रूप से होने लगी थी।
- विश्व में ब्राजील, कोलंबिया, आइवरी कोस्ट तथा मेक्सिको के बाद भारत का 5वां स्थान है।
- भारत विश्व के कुल उत्पादन का 3.5 प्रतिशत पैदा करता है। तथा भारत में सर्वाधिक बागान क्रमशः कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्य में है। क्षेत्रफल के हिसाब से उत्पादन –
- कर्नाटक में 55 प्रतिशत बागान
- केरल में 27 प्रतिशत बागान
- तमिलनाडु में 11 प्रतिशत बागान
भोगोलिक दशाएं
कहवे के वृक्ष के आसपास छायादार वृक्ष लगाए गए हैं तथा इसके लिए पाला हानिकारक है।
- तापमान 15-18 डिग्री सेल्सियस
- वर्षा 150 से 280 सेंमी [India24]
- भूमि ढालदार होनी चाहिए तथा 600 से 1600 मीटर की ऊंचाई तक इसे उगाया जा सकता है।
कहवा के प्रकार
- अरेबिका : कुल क्षेत्र के 48 प्रतिशत भाग पर यह उगाया जाता है। यह उच्च कोटि का कहवा होता है।
- रोबेस्टा : कुल क्षेत्र के 52 प्रतिशत भाग पर इसकी खेती की जाती है। आजकल यह अधिक लोकप्रिय हो रहा है
- लाइबेरिका : इसे दोनों किस्मों के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है।
- कावेरी – यह कहवा की एक नई किस्म हैं
- भारतीय कहवे को मधुर कहवा कहा जाता है।
- भारतीय कहवा चेरी या देसी प्रकार का है।
प्रमुख उत्पादक राज्य में कर्नाटक 68 प्रतिशत, केरल 20 प्रतिशत तथा तमिलनाडु राज्य में इसकी खेती की जाती है।