लवण बजट का अर्थ :
सागरीय जल में घुले हुए ठोस लवण की मात्रा को सागरीय लवणता कहते हैं। यह सागरीय जल के भार एवं उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को बताता है। क्योंकि सागरीय जल का आयतन एवं उसमें पदार्थों की मात्रा पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही परिवर्तित होती रही है। अतः सागरीय लवणता में भी अंतर पाया जा रहा है अर्थात सागरीय लवणता पूर्णतः स्थिर नहीं है।
लवण बजट की मात्रा :
वर्तमान में सागरीय जल के हजार ग्राम में 35 ग्राम लवण पाया जाता है जो वर्तमान सागरतल एवं भौगोलिक स्थलाकृतिक जलवायविक एवं अन्त: सागरीय कारकों का प्रतिफल है। हालांकि वर्तमान में भी सागरीय लवणता में वृद्धि हो रही है, लेकिन वर्तमान सागर के संदर्भ में लगभग स्थिर माना जा सकता है। सागरीय लवणता के वितरण में विभिन्न क्षेत्रों में क्षेतिज एवं लंबवत रूप से विषमता पाई जाती है लेकिन विभिन्न कारकों के कारण लवणता की औसत मात्रा लगभग समान बना रहता है। लवण बजट के अंतर्गत अंतर्गत सागरीय जल में लवणता के आगमन एवं लवणता के नियंत्रण अर्थात लवणता बढ़ने का कारण तथा कम होने के कारणों का परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार लवणता के आगमन एवं निर्गमन का परीक्षण किया जाता है।
सागरीय जल की लवणता का मुख्य स्त्रोत पृथ्वी है और मुख्यतः स्थलीय भागों से अपरदन के विभिन्न कारकों द्वारा लवण सागर में लाया जाता है। इसमें नदियां सागरों में लवणता लाने वाली प्रमुख कारक हैं। पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद भूतल में लवण की मात्रा अधिक थी, जो नदियों तथा अन्य अपरदन के दूतों के द्वारा सागरों में पहुंचायी गई थी। सागरों में पायी जाने वाले लवण में सोडियम क्लोराइड सर्व प्रमुख है, जो लगभग 77.8 प्रतिशत पायी जाती है। हालांकि नदियों द्वारा लाए गए लवण में सोडियम क्लोराइड की मात्रा मात्र 2% है और कैल्शियम की मात्रा 60% होती है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि सागरों में वर्तमान लवण की मात्रा दीर्घकालिक निक्षेप का परिणाम है। पुनः नदियों द्वारा लाए गए कैल्शियम के अधिकांश भाग का सागरीय जीवों एवं वनस्पति द्वारा उपभोग कर लिया जाता है, साथ ही नदिया द्वारा लाए गए लवण सागर में कुछ परिवर्तित हो जाते हैं। सागरीय लवणता का अन्य स्रोत ज्वालामुखी भी है। अतः सागरीय लवण की मात्रा विविध प्रक्रियाओं का परिणाम है, जिसमें परिवर्तन स्वभाविक है।
सागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक :
सागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं।
- वाष्पीकरण का प्रभाव
- वर्षा
- नदी जल का आगमन
- वायु दाब एवं वायु दिशा
- समुद्री जल धाराएं एवं सागरीय गतियां
- बर्फ का पिघलकर सागर में मिलना
यदि किसी क्षेत्र में वाष्पीकरण अधिक होता है, लवणता की मात्रा बढ़ती है। लेकिन यदि यह क्षेत्र अधिक वर्षा प्राप्त करता है तथा नदियों द्वारा स्वच्छ जल पाया जाता है तो लवणता नियंत्रित हो जाती है। जैसे इसी कारण भूमध्य रेखीय क्षेत्र में अधिक वाष्पीकरण के बावजूद संवहनिक वर्षा एवं बड़ी नदियों के गिरने से लवणता नियंत्रित हो जाती है। गर्म जल धाराएं लवणता बढ़ाती है जैसे महासागरों के पूर्वी भाग में विषुवतीय गर्म जल धाराएं लवणता को पश्चिमी भाग में ले जाने का कार्य करते हैं।
इसी प्रकार व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें भी महासागरों के एक भाग में से लवणता दूसरे भाग में ले जाने का कार्य करती हैं। ध्रुवीय क्षेत्र में हिम के पिघलने के कारण लवणता कम होती है। पुनः सागरीय जल के लंबवत एवं क्षैतिज संचालन के कारण लवणता का मिश्रण होता रहता है।
उपरोक्त कारणों से ही किसी क्षेत्र विशेष की लवणता में एकरूपता पाई जाती है। अर्थात वर्तमान समुद्र तल एवं जलवायु के संदर्भ में लवणता में एक संतुलन बना हुआ है जिसे लवण बजट कहा जाता है। अतः सागरों के विभिन्न भाग में लवणता में अंतर के बावजूद सागर की औसत लवणता तथा किसी क्षेत्र विशेष की औसत लवणता में संतुलन बना रहता है। लवणता के अक्षांशीय वितरण में विषमता को निम्न सारणी में प्रस्तुत किया जा रहा है।
अक्षांश मण्डल लवणता %o (प्रतिशत में)
- 70° – 50° N – 31
- 50° – 40°4 N – 33 – 34
- 40° – 15° N – 35 – 36
- 15° N – 10° S – 34.5 – 35
- 10° – 30° S – 35 – 36
- 30° – 50° S – 34 – 35
- 50° – 70° S – 33 – 34
स्पष्ट है अक्षांशीय वितरण में विषमता है, लेकिन अक्षांश की औसत लवणता सामान बनी रहती है। लवणता में वृद्धि के कारको के साथ ही लवणता को नियंत्रित या कम करने वाले कारक, लवणता को मिश्रित करने वाले कारक भी कार्य करते रहते हैं। यही कारण है कि लवणता की मात्रा में लगभग स्थिरता पायी जाती है। लेकिन यह विदित है कि लवणता की मात्रा परिवर्तनशील होती है। वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से लवणता में वृद्धि हो रही है। लवणता में वृद्धि के कारण सागरीय प्रवाल संरचना का क्षरण हो रहा है। प्रशांत महासागर की प्रवाल संरचना नष्ट होने के प्रमाण मिले हैं।