Meaning of Hurricane in Hindi | चक्रवात का अर्थ | प्रकार | मौसम पर प्रभाव

पृथ्वी तल पर विभिन्न वायुदाब पेटियों के मध्य स्थायी पवन पेटियां पाई जाती हैं, जिसमें उच्च वायुदाब की पेटी से निम्न वायुदाब पेटी की ओर स्थायी पवने प्रवाहित होती है। स्थायी पवनों को वायुमंडल का प्राथमिक परिसंचरण कहते हैं। स्थायी पवनों की स्थिति उच्च वायुदाब व निम्न वायुदाब पेटियों की स्थिति में परिवर्तन के कारण कई प्रकार के वायुमंडल विक्षोभ की उत्पत्ति होती है। इनमें चक्रवात, प्रतिचक्रवात, तड़ित झंझा प्रमुख हैं। इन्हें वायुमंडल का द्वितीय परिसंचरण कहा जाता है। द्वितीय परिसंचरण में चक्रवात, विश्व के सर्वाधिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाला वायुमंडलीय विक्षोभ है। चक्रवात में हवाएं चक्रीय रूप से केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। केंद्र में निम्न वायुदाब की स्थिति पाई जाती है।

चक्रवात का मतलब :


इस प्रकार चक्रवात वायु का ऐसा प्रवाह है, जिसमें निम्न वायुदाब केंद्र की ओर चारों ओर से हवाएं चक्रीय रूप में प्रवाहित होती हैं। पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्तरी गोलार्ध में हवाओं का प्रवाह घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा में होती है।

चक्रवात के प्रकार :


चक्रवात दो प्रकार के होते हैं।

  1.  शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
  2.  उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

1. शीतोष्ण कटिबंधीय :

शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति 30 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य उपध्रुवीय निम्न वायुदाब के क्षेत्र में ध्रुवीय ठंडी पवनों या वायु राशि एवं उष्ण पछुआ पवनो के अभिसरण से उत्पन्न ध्रुवीय वाताग्र पर होती है। मध्य अक्षांशीय जलवायु को प्रभावित करने वाला यह सर्व प्रमुख कारण है। शीतकाल में शीतोष्ण चक्रवात का विकास व्यापक रूप से होता है, लेकिन दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्मकाल में भी इसकी उत्पत्ति होती है। सामान्यतः इसका विस्तार 160 से 3200 किमी तक होता है, लेकिन अधिकांश चक्रवात का विस्तार 300-1500 किमी के मध्य पाया जाता है। अर्थात शीतोष्ण चक्रवात का क्षेत्रीय विस्तार अधिक होता है एवं हजारों मील से हवाएं केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। निम्न वायुदाब केंद्र का आकार वृत्ताकार एवं कभी-कभी V आकार का भी होता है। निम्न वायुदाब केंद्र को गर्तचक्र, द्रोणिका या निम्न भी कहा जाता है। शीतोष्ण चक्रवात में हवाएं निम्न वायुदाब केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। शीतोष्ण चक्रवात की संरचना की जटिलताओं को ध्रुवीय वाताग्र के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के संदर्भ में समझा जा सकता है।

उत्पत्ति क्षेत्र, मार्ग एवं प्रभावित क्षेत्र :

शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति 30 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य दोनों गोलार्धों में होती है, सामान्यतः उपध्रुवीय निम्न वायुदाब के क्षेत्र ही, शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति के क्षेत्र है। लेकिन सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन की स्थिति में शीतोष्ण चक्रवात की स्थिति भी बदलती है, वह सूर्य के उत्तरायन की अवस्था में यह उत्तर एवं दक्षिणायन की अवस्था में दक्षिण की ओर खिसक जाती है। इसकी उत्पत्ति कर्क और मकर रेखा के बाहर मध्य एवं उच्च अक्षांश में होती है।
शीतोष्ण चक्रवात पछुआ हवाओं का अनुसरण करते हुए तटीय क्षेत्र से होते हुए महाद्वीप के आंतरिक भागों में हजारों किमी तक प्रभाव उत्पन्न करती है‌। इसके प्रमुख उत्पत्ति क्षेत्र निम्नलिखित हैं।

उत्पत्ति क्षेत्र :

  1. उत्तरी अटलांटिक महासागर का पश्चिमी तटीय क्षेत्र से आइसलैंड तक का क्षेत्र।
  2. उत्तरी प्रशांत महासागर का पश्चिमी तटीय क्षेत्र से
  3. अल्यूशियन द्वीप समूह तक का क्षेत्र
  4. भूमध्यसागरीय क्षेत्र एवं कैस्पियन सागर क्षेत्र
  5. दक्षिणी गोलार्ध में 30° से 65° अक्षांश तक का क्षेत्र
  6. उत्तरी अटलांटिक में उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तटीय क्षेत्र से आइसलैंड तक विकसित निम्न वायुदाब क्षेत्र में शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति होती है, जो पछुआ हवाओं का अनुसरण करते हुए पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों में तीव्र वर्षा करती है और यहां तूफानी बर्षा का आगमन होता है। तीव्र गति के कारण यूरोप के आंतरिक भाग व रूस तक यह वर्षा लाती है।
  7. अटलांटिक महासागर में भूमध्य सागरीय क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से भूमध्यसागरीय वाताग्र के सहारे शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति होती है। भूमध्यसागरीय तटीय क्षेत्रों में शीतकाल में पर्याप्त वर्षा होती है। शीतकाल में इसका प्रभाव भारत के उत्तरी मैदानी भाग तक हो जाता है, जहां इसे पछुआ विक्षोभ की वर्षा कहते हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में शीत लहरी एवं हिमवर्षा लाने में भी यह सहायक होती है।
  8. आंतरिक भागों में कैस्पियन सागर के क्षेत्रों में भी शीतोष्ण चक्रवात का विकास होता है।
  9. उत्तरी प्रशांत महासागर में रूस के पूर्वी तटीय क्षेत्रों में अल्यूशियन निम्न वायुदाब के क्षेत्र में उत्पन्न शीतोष्ण चक्रवात पछुआ हवाओं के साथ पूर्व की ओर गतिशील होती है और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों एवं आंतरिक भागों में भी वर्षा करती है।
  10. यूएसए के आंतरिक भाग में स्थित वृहद झील प्रदेश कई चक्रवातों का मिलन स्थल है, जहां शीतकाल में तूफानी मौसम का आगमन होता है
  11. दक्षिणी गोलार्ध में 30° से 65° अक्षांश के मध्य लगभग संपूर्ण महासागरीय क्षेत्र में शीतोष्ण चक्रवात का विकास होता है। यहां मध्य चिली, कैपटाउन क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया का विक्टोरिया क्षेत्र मुख्यतः शीतोष्ण चक्रवात से प्रभावित होते हैं। हालांकि दक्षिण गोलार्ध में 60° अक्षांश में सर्वाधिक चक्रवात की उत्पत्ति होती है।

शीतोष्ण चक्रवात का मौसमी प्रभाव :

शीतोष्ण चक्रवात में प्रभावित क्षेत्रों में वर्षा एवं तूफानी मौसम का आगमन होता है। शीतोष्ण चक्रवात की समाप्ति पर ठंडी ध्रुवीय हवाओं के प्रभाव से भी कभी-कभी वर्षा होती है। वह सीतल हवाओं का आगमन होता है। इसका प्रभाव हजारों किमी तक होता है। अतः मध्य अक्षांशो के वृहद क्षेत्र को यह प्रभावित करती है।
शीतोष्ण चक्रवात में मौसम विशेषताओं को शीत वाताग्र व उष्ण वाताग्र के संदर्भ में समझा जा सकता है।

शीत वाताग्र में मौसम :

शीत वाताग्र में ठंडी हवा के आक्रमक होने के कारण ठंडी वायु गर्म वायु को तीव्रता से ऊपर उठा देती है, जिससे तीव्र ढाल वाले वाताग्र का विकास होता है। इसके सहारे गरम वायु ऊपर उठती है, और संघनन की क्रिया के फलस्वरुप बादल का निर्माण होता है, जिससे पर्याप्त वर्षा होती है। शीत वाताग्र में वर्षा मुख्यत: कपासी बादलों से होती है। वर्षा तीव्र एवं मूसलाधार लेकिन तीक्ष्ण ढाल के कारण सीमित एवं छोटे क्षेत्र में होती है।

शीत वाताग्र की गति तीव्र होने के कारण महाद्वीपों के आंतरिक भागों में भी इससे वर्षा प्राप्त होती है। तीव्र गति के कारण ही भूमध्यसागरीय चक्रवातों का प्रभाव शीतकाल में भारत के उत्तरी-मैदानी भाग तक हो जाता है। उत्तरी पश्चिमी प्रशांत महासागर से उत्पन्न चक्रवात उत्तरी अमेरिका के तटीय एवं आंतरिक क्षेत्रों में वर्षा करती है। तीव्र गति के कारण कभी-कभी ये तेजी से आगे निकल जाते हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों में वर्षा नहीं हो पाती। शीत वाताग्र की समाप्ति के बाद सतह पर ठंडी ध्रुवीय हवाएं प्रभावित होने लगती हैं, जिससे भी वर्षा की संभावना होती है और ये ठंड बढ़ाने में सहायक है।

उष्ण वाताग्र में मौसम :

उष्ण वाताग्र में उष्ण वायु आक्रमक होती है, जो ठंडी हवा के ऊपर धीरे-धीरे चढ़ती है, फलस्वरुप मंद ढाल वाले वाताग्र का विकास होता है। गरम वायु के संपर्क से तल की ठंडी हवा भी क्रमशः गर्म होकर ऊपर उठती है, जिससे बहुस्तरी बादलों का विकास होता है। यहां वर्षा मुख्यत: स्तरी बादलों से होती है। वर्षा मंद ढाल के सहारे बड़े क्षेत्र में लेकिन धीमी होती है। उष्ण वाताग्र का अधिक क्षेत्रीय विस्तार होने के कारण सामान्यतः  इसके प्रभावित क्षेत्रों में वर्षा हो जाती है।
उपरोक्त दोनों ही परिस्थितियों में संरोध की अवस्था में सतह की गर्म वायु के ऊपर उठ जाने से अंतिम रूप से वर्षा होती है और अंततः चक्रवात की समाप्ति हो जाती है।


2. उष्ण चक्रवात :

उष्ण चक्रवात, उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला तीव्र चक्रवाती तूफान है, जिसमें निम्न वायुदाब केंद्र के चारों ओर से हवाएं प्रवाहित होती हैं। इनमें निम्न वायुदाब केंद्र गहरे भ्रमिल की तरह होते हैं। इसका विकास उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के अभिसरण के क्षेत्र में विकसित अंतरा उष्ण कटिबंध अभिसरण क्षेत्र में होता है।
ITCZ में व्यापारिक हवाओं के मिलने से निम्न वायुदाब केंद्र का विकास हो जाता है, इसके चारों ओर से हवाएं केंद्र की ओर चक्रीय रूप से प्रवाहित होने लगती हैं, जिससे उष्ण चक्रवात का विकास होता है।

स्थिति : 

उष्ण चक्रवात का विकास सामान्य से 8° – 15° अक्षांश के मध्य दोनों गोलार्ध में ITC क्षेत्र में होता है। क्योंकि सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिण की स्थिति में ITCZ क्रमशः विषुवत रेखा के उत्तर एवं दक्षिण स्थानांतरित होता है। इसी अनुरूप उष्ण चक्रवात के क्षेत्र में भी स्थानांतरण होता है। सामान्यतः ITCZ वर्ष के अधिकांश समय तक विषुवत रेखा के उत्तर में बना रहता है। इसी कारण उष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति मुख्यतः उत्तरी गोलार्ध में अधिक संख्या में होती है। ITCZ दक्षिणी गोलार्ध में कम विस्तार के कारण ही दक्षिण महासागरों पर अपेक्षाकृत कम संख्या में उष्ण चक्रवात विकसित होते हैं। उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म काल में तापीय विश्वत रेखा का विस्तार 20° तक हो जाता है। अतः उष्ण चक्रवातों का प्रभाव कर्क रेखा तक हो जाता है। अतः  चक्रवात की स्थिति कर्क और मकर रेखा के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में हो सकती है।

आकार : 

उष्ण चक्रवात में निम्न वायुदाब केंद्र में वायुदाब 920-950mb होता है, जिसके चारों ओर से हवाएं प्रवाहित होती है। सामान्यतः निम्न वायुदाब केंद्र का व्यास 50 किमी होता है। जिसके चारों ओर लगभग 500-800 किमी की दूरी से हवाएं प्रवाहित होती हैं। अतः उष्ण चक्रवात का व्यास लगभग 500 से 800 किमी तक होता है।

संरचना : उष्ण चक्रवात में हवाएं क्षैतिज तल पर केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। लेकिन उष्ण चक्रवात में वायु प्रवाह अत्यंत जटिल प्रक्रिया से होता है, जिसमें निम्न वायुदाब के चारों ओर से वायु का केंद्रोंमुखी प्रवाह या अंत: प्रवाह पुनः चक्रवात के मध्यवर्ती भाग में वायु का ऊपरमुखी प्रभाव एवं ऊपरी भाग में वायु का तीव्र नि:स्राव होता है। ऊपरी भाग में वायु के तीव्र गति से बाहर की ओर प्रवाहित होने के कारण ही तल का निम्न वायुदाब केंद्र बना रहता है।      

चक्रवात में 1000-2000 मीटर की ऊंचाई तक हवाएं निम्न वायुदाब केंद्र की ओर प्रवाहित होती है। पुनः 10000 से 15000 मीटर की ऊंचाई तक ऊर्ध्वाधर हवाएं पाई जाती हैं। इसके ऊपर हवाएं बाहर की ओर से तीव्र गति से निकलती है। वायु का यह प्रवाह उष्ण चक्रवात में जटिलताएं उत्पन्न कर देता है, और उष्ण चक्रवात की जटिल संरचना का विकास होता है।

उत्पत्ति : 

उष्ण चक्रवात की उत्पत्ति, उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के अभिसरण से उत्पन्न ITCZ में होती है, यहां व्यापारिक पवनों के अभिसरण से अंतराउष्ण कटिबंधीय वाताग्र के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। लेकिन यहां वाताग्र का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है और इसकी जगह निम्न वायुदाब केंद्र का विकास हो जाता है, जिसे चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख के चारों ओर से हवाएं प्रवाहित होने लगती है, जिससे  तीव्र वेग वाले उष्ण चक्रवाती तूफान का आगमन होता है।

चक्रवात की आंख के विकास का मुख्य कारण इस क्षेत्र में दो गर्म हवाओं का मिलना है। क्योंकि व्यापारिक हवाएं प्रकृति से गर्म होती हैं, अतः वाताग्र के विकास की स्थितियां तो उत्पन्न होती हैं, लेकिन व्यापारिक पवनों की समान प्रकृति के कारण वाताग्र का विकास होते ही वाताग्र समाप्त हो जाता है एवं उसकी जगह निम्न वायुदाब केंद्र का विकास हो जाता है। निम्न वायुदाब केंद्र को चक्रवात की आंख कहते हैं।

सामान्यतः उष्ण चक्रवात की उत्पत्ति महासागरीय क्षेत्र में होती है, जिसका कारण, गर्म स्थलीय एवं गर्म समुद्री व्यापारिक पवनों का मिलना है। समुद्री क्षेत्र से उत्पन्न चक्रवात, व्यापारिक पवनों का अनुसरण करता हुआ, महाद्वीपों के तटीय क्षेत्र में प्रवेश करता है, जहां चक्रवात की आंख की संरचना एवं स्थिति में तीव्र परिवर्तन होता है, जिसका कारण तटवर्ती क्षेत्र में स्थल एवं समुद्र के तापमान में अंतर का होना है। तटीय क्षेत्र में चक्रवात की आंख की उत्पत्ति सर्वाधिक संख्या में होती है। इसी कारण तटवर्ती प्रदेशों में चक्रवातीय तूफान के सर्वाधिक विनाशकारी प्रभाव होते हैं।

उष्ण चक्रवात के प्रकार :

तीव्रता के आधार पर उष्ण चक्रवात 3 प्रकार के होते हैं।

(हरिकेन, टायफून, टॉरनेडो, तूफान, नॉर्वेस्टर, वाटर स्पाउट)

  1. उष्ण कटिबंधीय विक्षोभ : इसमें एक या दो समदाब रेखाओं से चक्रवात का विकास विकास होता है। इसकी गति अत्यंत मंद होती है। इसका प्रभाव व्यापक क्षेत्र में होता है। किसी क्षेत्र में यह लंबे समय तक वर्षा करती है। अटलांटिक एवं प्रशांत महासागर के क्षेत्रों में से इसकी उत्पत्ति होती है। इसे पूर्वी तरंग भी कहते हैं। यह उष्ण एवं उपोषण दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
  2. उष्ण कटिबंधीय अवदाब : यह उष्णकटिबंधीय चक्रवात, उष्णकटिबंधीय विक्षोभ की तुलना में अधिक सक्रिय व तीव्र वेग वाला होती है। जिससे दो से अधिक समदाब रेखाएं विकसित होती हैं, इसकी गति सामान्यतः 40-50 किमी प्रति घंटा होती है। यह समान्यत भारत व ऑस्ट्रेलिया में उत्पन्न होते हैं।
  3. उष्ण कटिबंधीय तूफान : यह अत्यंत तीव्र वेग वाला एवं कई समदाब रेखाओं से घिरा हुआ है, जिसकी सामान्य गति 100 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है। टॉरनेडो जैसे चक्रवात में 800 किमी प्रति घंटे तक की गति पाई जाती है। यह सर्वाधिक तूफानी होता है।

वितरण या प्रभावित क्षेत्र :

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति निम्न वायुदाब केंद्र की स्थिति पर निर्भर करती है। निम्नदाब केंद्र की उत्पत्ति ITC की स्थिति एवं क्षेत्र की स्थलाकृतिक विशेषता पर निर्भर करती है। इसी कारण ITC के संपूर्ण क्षेत्र में उष्ण चक्रवात की उत्पत्ति नहीं हो पाती और यह बिखरे हुए रूप में उत्पन्न होते हैं। इसके उत्पत्ति क्षेत्र निम्नलिखित निम्नलिखित है।

  1. कैस्पियन सागर, मेक्सिको की खाड़ी एवं दक्षिण पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्र यहां उत्पन्न चक्रवात को हरिकेन कहते हैं।
  2. फिलीपाइन्स सागर, चीन सागर, जापान तटीय क्षेत्र – यहां उत्पन्न चक्रवात को टायफून कहते हैं।
  3. बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर का क्षेत्र – यहां उत्पन्न चक्रवात को तूफान कहते हैं।
  4. मध्य अमेरिका का पश्चिमी तटवर्ती प्रशांत महासागरीय क्षेत्र – यहां उत्पन्न चक्रवात को हरिकेन कहते हैं।
  5. मेडागास्कर से 90 डिग्री पूर्वी देशांतर का हिंद महासागर का क्षेत्र।
  6. दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर का क्षेत्र – जहां कई क्षेत्र स्वतंत्र रूप से चक्रवात के क्षेत्र हैं।
  • तिमोर सागर का क्षेत्र
  • ऑस्ट्रेलिया का उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र (विली-विली)
  • न्यूजीलैंड का तटीय क्षेत्र (नॉर्वेस्टर)
  • फिजी द्वीप का तटीय क्षेत्र आदि चक्रवात कहलाते हैं।
  1. संयुक्त राज्य अमेरिका का मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र – यहां इसे टारनेडो कहते हैं।
  2. पश्चिमी प्रशांत महासागर एवं जापान के दक्षिण तटीय क्षेत्र, यहां समुद्र पर उत्पन्न चक्रवात को वाटरस्पाउट कहते हैं।

चक्रवातों की विशेषताएं :


  1. हरिकेन चक्रवात :  इसकी उत्पत्ति कैरेबियन सागर एवं मेक्सिको की खाड़ी के क्षेत्र में होती है। इसकी गति सामान्यतः 100 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है। यह कैरेबियन देशों एवं दक्षिण पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका को सर्वाधिक प्रभावित करता है।
  2. टायफून चक्रवात :  यह हरिकेन की तरह ही तीव्र वेग वाला चक्रवाती तूफान है जिसकी उत्पत्ति फिलीपींस सागर जापान एवं चीन सागर में होती है। ये सामान्यतः जुलाई और अक्टूबर के महीने में आते हैं।
  3. तूफान :  बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में उत्पन्न होने वाला चक्रवात, जिसका भारत के तटवर्ती क्षेत्र पर कभी-कभी विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। भारत में इसकी उत्पत्ति मार्च से मई तक ग्रीष्म काल से पूर्व होती है। भारत में मानसून पूर्व की वर्षा चक्रवातीय प्रकार की ही होती है। पश्चिम बंगाल में इसे काल बैसाखी भी कहते हैं।
  4. विली-विली तूफान :  ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण प्रशांत महासागर में होती है। यह तूफान, टायफून एवं हरिकेन की तुलना में कमजोर है।
  5. नॉर्वेस्टर चक्रवात :  दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर में उत्पन्न होने वाले चक्रवात को न्यूजीलैंड में नॉर्वेस्टर कहते हैं।
  6. टॉरनेडो चक्रवात :  इसकी उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती मैदानी भाग में गर्म स्थलीय पवनों के अभिसरण से होती है। यहां निम्न वायुदाब केंद्र का तीव्र विकास होने के कारण हवाएं अत्यंत तीव्रता से ऊपर उठती हैं, जिससे बेलनाकार चक्रवात का विकास होता है।
  7. वाटर स्पाउट चक्रवात :  टॉरनेडो की तरह ही कीपाकार एवं तीव्र चक्रवात की उत्पत्ति समुद्र सतह पर ही होती है। सामान्यतः समुद्री जल का तापमान 28 डिग्री से 29 डिग्री सेल्सियस होने पर निम्न वायुदाब केंद्र का विकास हो जाता है और गर्म समुद्री हवाएं तीव्रता से ऊपर उठने लगती है। ऊपर उठती हवाओं के साथ समुद्र के जल में भी ऊपर की ओर उछाल उत्पन्न होता है, जो वाष्पीकृत होकर बादलों का निर्माण होता है। ऊपर उठती हुई जल के साथ छोटे-छोटे जीव-जंतु एवं मछलियां भी ऊपर उछल जाती है।

प्रतिचक्रवात :


प्रतिचक्रवात वायुमंडल की तृतीय परिसंचरण का रूप है। यह वायु के उत्पत्ति, चक्रवात की उत्पत्ति का भी निर्धारक कारक है। प्रतिचक्रवात वृत्ताकार समदाब रेखाओं द्वारा घिरा हुआ वायु का एक ऐसा क्रम होता है, जिसके केंद्र में वायुदाब उच्चतम होता है तथा बाहर की ओर घटता जाता है, जिस कारण हवाएं केंद्र से परिधि की ओर चलती है। प्रतिचक्रवात उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब क्षेत्रों में अधिक उत्पन्न होते हैं, परंतु भूमध्यरेखीय भागों में इनका सर्वदा अभाव होता है। प्रतिचक्रवातों में हवाएं सतह पर बैठने की प्रवृत्ति रखती है। अतः चक्रवातों के विपरीत प्रतिचक्रवातों में मौसम साफ होता है।

  1. आकार में प्रतिचक्रवात चक्रवातों की अपेक्षा अधिक विस्तृत होते हैं। प्रतिचक्रवात यद्यपि चक्रवातों के पीछे ही चलते हैं, परंतु इनके मार्ग एवं दिशा में निश्चिता नहीं होती। प्रतिचक्रवात प्रति घंटे 30 से 50 किमी की चाल से आगे बढ़ते हैं, परंतु कभी-कभी कई दिन तक एक ही स्थान पर स्थिर हो जाते हैं।
  2. केंद्र में उच्च दाब के कारण हवाएं केंद्र से बाहर की ओर उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्ध में प्रतिकूल दिशा में चलती है।
  3. प्रतिचक्रवात में वाताग्र नहीं बनते हैं।
  4. सामान्य रूप से प्रतिचक्रवात वर्षा रहित होते हैं तथा आकाश मेघ रहित होता है।

प्रतिचक्रवात के प्रकार


सामान्य रूप से प्रतिचक्रवात को 3 वर्गों में बांटा जाता है। 

  1. शीतल प्रतिचक्रवात : आर्कटिक क्षेत्रों में उत्पन्न होकर शीतल प्रतिचक्रवात पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व दिशा में आगे बढ़ते हैं। आकार में ये गर्म प्रतिचक्रवातों से छोटे होते हैं, परंतु अपेक्षाकृत तेजी से आगे बढ़ते हैं। इनकी गहराई भी कम होती है। बहुत कम शीतल च प्रतिचक्रवात 3000 मीटर से अधिक ऊंचे होते हैं, क्योंकि अधिक ऊंचाई पर कम दाब विकसित होने लगता है।
  2. गर्म प्रतिचक्रवात : इन चक्रवातों की उत्पत्ति उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटी में होती है। यहां पर हवाओं का अपसरण होता है। इस तरह गर्म प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति गतिक या यांत्रिक होती है। आकार में ये विशाल होते हैं और कम सक्रिय होते हैं तथा अपने उत्पत्ति स्थान से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं। ये प्रतिचक्रवात दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप को अधिक प्रभावित करते हैं।
  3. अवरोधी प्रतिचक्रवात : जलवायुवेताओं ने नवीन प्रकार के प्रतिचक्रवातों को खोजा, जिनका आविर्भाव परिवर्तन मंडल के ऊपरी भाग में वायु संचार में रुकावट या अवरोध के कारण होता है। इसी कारण से इन्हें अवरोधी प्रतिचक्रवात कहते हैं। वायु प्रणाली, वायुदाब तथा मौसम संबंधी विशेषताओं में ये गर्म प्रतिचक्रवातों से मिलते जुलते हैं, परंतु आकार में छोटे होते हैं तथा मंद गति से चलते हैं। इनकी उत्पत्ति क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी यूरोप तथा समीपी अटलांटिक महासागर का भाग तथा 140 डिग्री से 170 डिग्री के मध्य उत्तरी प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग है। अभी तक इनके विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी। स्पष्टत: प्रतिचक्रवात भी विशिष्ट वायुमंडलीय एवं मौसमी विशेषता के लिए उत्तरदायी होते हैं।

Posted in Uncategorized