गुप्त राजवंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। मौर्य पतन के बाद दीर्घकाल में वर्धन वंश (हर्ष) तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं हो सकी। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। मौर्य वंश के बाद तीसरी शताब्दी ईस्वी में तीन राजवंशों का उदय हुआ। जिसमें नागवंश मध्य भारत में, वाकाटक वंश दक्षिण में तथा पूर्व में गुप्त वंश था। इस बिखरी राजनीति को पुनः स्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को जाता है।
गुप्त वंश का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ था। जिसकी स्थापना श्रीगुप्त राजा ने की थी। श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच गद्दी पर बैठा। सन् 320 ईसवी में चंद्रगुप्त प्रथम अपने पिता घटोत्कच के बाद राजा बना। यह पहला स्वतंत्र शासक था, जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। इसके बाद इसका पुत्र समुद्रगुप्त 335 ईसवी में गद्दी पर बैठा। इनकी माता का नाम कुमार देवी था। अशोक के बाद संपूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास में इन्हें महानतम शासकों में गिना जाता है। इसे परक्रमांक कहा गया है। राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समुद्रगुप्त का शासन काल गुप्त वंश का सबसे अच्छा शासन काल था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। समुद्रगुप्त ने भी महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। विंसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा।
समुद्रगुप्त एक कवि एवं संगीतज्ञ भी था। उसे कला मर्मज्ञ भी माना जाता है। समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय गद्दी पर बैठा। समुद्रगुप्त उच्च कोटि का विद्वान तथा विद्या का संरक्षक करने वाला था। इसलिए उसे कविराज कहां गया। वह वीणा वादन में निपुण था। हरिषेण समुद्रगुप्त का मंत्री होने के साथ-साथ दरबारी कवि भी था, जिसके द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के जीवन के बारे में वर्णन किया गया है।
काव्य अलंकार सूत्र में समुद्रगुप्त का नाम चंद्रप्रकाश मिलता है। समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त राजा बना, मगर वह एक अयोग्य राजा होने के कारण चंद्रगुप्त द्वितीय को सम्राट नियुक्त किया गया। चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकराज से युद्ध करके अपने भाई रामगुप्त की पत्नी ध्रुवस्वामिनी को छुड़वाया और उससे शादी कर ली। वह 375 ईसवी में सिंहासन पर आसीन हुआ।
- पूरा नाम – चंद्रगुप्त द्वितीय
- उपनाम – देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री
- माता – दत्त देवी
- पिता – समुद्रगुप्त
- शासन काल – 375-415 ईस्वी तक (40 वर्ष तक)
- उपलब्धियां – विक्रमादित्य, परम भागवत, विक्रमांक
- पत्नी – कुबेर नागा, ध्रुव देवी
- पुत्री – प्रभावती गुप्त
चंद्रगुप्त ने शकों को पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। शको पर विजय पाने के बाद उसका पश्चिमी समुद्री पत्तनों पर अधिकार हो गया और उज्जैन गुप्त साम्राज्य की राजधानी बन गया। उसके शासनकाल में चीनी यात्री फाहियान ने 399-414 ईसवी तक भारत की यात्रा की। चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल को स्वर्ण युग भी कहा जाता है।
विजय अभियान :
- शक विजय – गुजरात
- वाहिक विजय – पंजाब
- बंगाल विजय – बंगाल
- गणराज्यों पर विजय – उत्तर पश्चिम भारत
- इस युग को कला साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। उसके दरबार में नवरत्न थे – कालिदास, धनवंतरी, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पर, वराहमिहिर, वरुचि, आर्यभट्ट, विशाखदत्त, शुद्रक, ब्रह्मगुप्त, विष्णु शर्मा तथा भास्कराचार्य।
- ब्रह्मा गुप्त ने ब्रह्मा सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसे बाद में न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के नाम से प्रतिपादित किया।
- नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त राजा कुमारगुप्त द्वारा किया गया।
- ईद तथा पत्थर जैसी स्थायी सामग्रियों पर मंदिरों का निर्माण इसी काल की घटना है।
प्रमुख मंदिर :
- तिगवा का विष्णु मंदिर – जबलपुर, मध्य प्रदेश
- भूमरा का शिव मंदिर – नागोद, मध्य प्रदेश
- नचना कुठार का पार्वती मंदिर – मध्य प्रदेश
- देवगढ़ का दशावतार मंदिर – झांसी
- ईंटो से निर्मित भीतरगांव का मंदिर – कानपुर
- पहला अश्वमेध यज्ञ समुद्रगुप्त द्वारा कराया गया था।
- चंद्रगुप्त द्वितीय शैव मत को मानने वाले था।
- स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील का दोबारा निर्माण कराया।
- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।
- गुप्ता राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्रा जारी की, जिन्हें दीनार कहा जाता था।
- गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, जिसे उन्होंने राजधर्म बनाया।
- गुप्तों का राजचिन्ह विष्णु का गरुण वाहन था।
- अजंता की 29 गुफाओं में, गुफा संख्या 16 एवं 17 गुप्तकालीन है। जो बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित है।
- गुप्त काल में निर्मित बाघ की गुफा, मध्य प्रदेश में विंध्या पर्वत को काटकर बनाई गई।
- विष्णु शर्मा द्वारा लिखित ग्रंथ पंचतंत्र, जो संस्कृत में है।
- मंदिर बनवाने की कला का जन्म इसी काल में हुआ।
- नगरों का क्रमिक पतन गुप्तकाल की महत्वपूर्ण विशेषता थी।