यहां सब कुछ बिकता है?

यहां सब कुछ बिकता है। यह कहना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। बस खरीदार अच्छा होना चाहिए। वस्तु की कीमत अच्छी रखनी चाहिए। वस्तु की परख होनी चाहिए। समय का इंतजार करना पड़ेगा। धैर्य रखना पड़ेगा तथा इतना मजबूत होना पड़ेगा कि सब चीज खरीदी जा सके, प्यार से, धन से तथा ताकत से।

 प्राचीन काल से ही यह प्रथा चली आ रही है कि जो चीज प्यार से नहीं खरीदी गई, लोगों ने उसे धन से और ताकत से खरीद लिया और यह भी सच है कि कुछ चीजें ऐसी होती है जो धन और ताकत से नहीं खरीदी जा सकती, उसे खरीदने के लिए हमें कोमल ह्रदय से विनती करनी पड़ती है। इस प्रकार विनम्रता, प्यार, एटीट्यूड आदि को खरीदने के लिए धन और ताकत का मूल्य कुछ भी नहीं है। 

अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजों ने अश्वेत लोगों को खरीदा। राजा महाराजाओं के काल में राजाओं ने दासों को खरीदा और आधुनिक काल में तो पता ही नहीं चल रहा है कि छोटे बड़े को खरीद रहा है या बड़ा छोटे को खरीद रहा है। एक मजदूर आदमी एक अधिकारी को खरीद लेता है, वह भी मात्र ₹100 में। ऐसे उदाहरण आपको किसी और देश में नहीं, भारत में ही मिल जाएंगे। जन्म प्रमाण पत्र से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र तक अपने कागज पूरे कराने के लिए हम दफ्तर जाते हैं। मगर बिना पैसे दिए हम अपने ही कागज नहीं प्राप्त कर पाते हैं। बाद में कुछ चंद पैसों की खातिर अधिकारी बिक जाते हैं और उसी काम को बहुत थोड़े समय में पूरा करके दे दिया जाता है।

उदाहरण के लिए आपको लोन (ऋण) की जरूरत है। इसके लिए आप बैंक जाते हो। डाक्यूमेंट्स कम होने के कारण आप लोन के लिए अयोग्य घोषित कर दिए जाते हो, मगर अधिकारियों या उसके समकक्ष किसी व्यक्ति को पैसे का लालच देकर लोन प्राप्त कर लेते हो। मतलब आपने कुछ पैसे से बैंक के कर्मचारियों को खरीद लिया। इसका साफ-साफ अर्थ यही है।

इस तरह के उदाहरण आपको भारत नहीं वरन पूरे विश्व में यहां तक कि प्रत्येक दफ्तर में देखने को मिल जाएंगे। कभी-कभी तो यह समझ नहीं आता कि हमें अपने पैसे लेने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। अपने मृत भाई को दफन करने के लिए भी हमें पैसे देने पड़ते हैं। अपने इलाज को सही कराने के लिए भी हमें पैसे देने पड़ते हैं। मृत्यु प्रमाण पत्र जिसकी उन अधिकारियों को कोई भी आवश्यकता नहीं है, उसके लिए भी हमें पैसे देने पड़ते हैं। जन्म प्रमाण पत्र जो बच्चा ठीक से बोल नहीं सकता, उसके लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। 

इन सब चीजों को देखते हुए मुद्रा को प्रधान माना गया। इंसान के सिद्धांत, उसके रिश्ते, उसकी शिक्षा का वर्तमान समय में कोई भी महत्व नहीं है। कोई मजबूरी के हाथों खरीदा जाता है और किसी किसी को तो बिकने का शौक ही हो गया है। जब तक वह रिश्वत के पैसे नहीं ले लेता तब तक उसे नींद नहीं आती।

हरिवंश राय बच्चन ने अपने शब्दों में कहा था की ‘यहां सब कुछ बिकता है।’ 

जब हम बाजार में सामान खरीदने जाते हैं तो हम विभिन्न प्रकार की चीजें खरीदते हैं। जैसे सब्जी, आटा, दाल, चीनी, दूध एवं अन्य पदार्थ आदि। जब हम किसी बैंक में या किसी विभाग में जाते हैं तो हम वहां से सेवाएं खरीदते हैं, जो हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मगर इस दुनिया में ऐसी कोई भी जगह नहीं है, ना कोई दुकान, ना कोई बाजार जहां पर इंसानों का धर्म-ईमान बिकता है, मगर बिकता सबसे ज्यादा है। इसके खरीदार वह होते हैं जो पैसे तो देते हैं। मगर पैसों के बदले में मिलता कुछ नहीं।

बड़ी अजीबो-गरीब बात है की इस सिस्टम में खरीदार बेचने वाले से निम्न स्तर का होता है, जबकि होना इसका उल्टा चाहिए था।

इस प्रकार इन सब बातों का यही कारण है कि इसमें शिक्षा की कमी नहीं है बल्कि अच्छी शिक्षा की कमी है। जो बेचने वाले होते हैं। चाहे धर्म हो, वस्तु हो या कोई सेवा हो, उसके लिए अच्छी शिक्षा का न होना ही एकमात्र कारण है। अगर हमारी अच्छी शिक्षा होगी तो यह जो शब्द है कि ‘सब कुछ बिकता है’ इसका जन्म ही नहीं हो सकता। क्योंकि आज भी कुछ ऐसे महान व्यक्ति हैं, जो अपनी जगह स्थिर है। उनके लिए यह एक अपवाद है। उनके लिए पैसा, पावर या कोई सेवा मूल्य नहीं रखती। उनके लिए अपना एटीट्यूड, अपना धर्म, अपना ईमान तथा अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट बहुत महत्व रखते हैं और जो व्यक्ति अपने सेल्फ रिस्पेक्ट की कदर करता है। वह कभी भी समझौता नहीं कर सकता। इस प्रकार यह कहना अनुचित है कि इस दुनिया में हर चीज बिकती है।

10 TYPES OF ROSES FOR YOUR LOVELY HOME OR GARDEN Benefits of Gulmohar Tree or Plant Best Stock in Auto Ancillaries in India Some important facts about IRIS plant Which is good stock in EV sector?