कृषि के प्रकार

मानव ने सबसे पहला व्यवसाय कृषि को ही चुना था। क्योंकि मानव को जीविका चलाने के लिए कृषि पर ही निर्भर रहना पड़ा था। उसके साथ-साथ वह पशुपालन भी करने लगा। सर्वप्रथम मानव ने स्थानांतरण कृषि को महत्व दिया, क्योंकि वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाया करते थे। उनका कोई स्थायी निवास नहीं था। धीरे-धीरे मानव ने एक स्थान पर ठहरना शुरू किया और कृषि से संबंधित यंत्रों का प्रयोग करना प्रारंभ किया।

कृषि का अर्थ फसल उत्पन्न करने की प्रक्रिया से है। कृषि एक तकनीक या कला को कहते है, जिसके द्वारा वह पशुपालन तथा फसल का उत्पादन करता है। वर्तमान समय में कृषि को विभिन्न भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है।

  • स्थानान्तरण कृषि/Shifting Cultivation : स्थानांतरण कृषि एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को कृषि उपकरणों से जुताई करके बीज बो दिए जाते हैं। जब तक मिट्टी में उर्वरता बनी रहती है। तब तक इस भूमि पर खेती की जाती है।

इसे झूम खेती भी कहा जाता है। झूम खेती को स्विडन एग्रीकल्‍चर भी कहा जाता है और यह इस क्षेत्र की प्रमुख कृषि पद्धति है। यह मुख्य तौर पर परती चक्र में कमी के कारण अस्थिर हो गई है जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता में कमी आने के अलावा महत्वपूर्ण मिट्टी का कटाव और कृषि उत्पादकता में कमी जैसी समस्याएं पैदा हुई हैं।

मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर तक फसल काटी जाती है। इन खेतों पर 2-3 वर्षों तक कृषि करने के बाद इन भूखण्डों को 10-12 वर्ष के लिए परती छोड़ दिया जाता है ताकि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति द्वारा से आ जाए।

इस प्रकार की स्थानांतरणशील कृषि को श्री लंका में चेना, हिन्देसिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा कहते हैं। यह खेती मुख्यतः उष्णकटिबंधीय वन प्रदेशों में की जाती है। भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में इस प्रकार की खेती के उदाहरण देखने को मिल जाएंगे।

  1. स्थानांतरित कृषि में किसान एक स्थान पर रेखा खेती नहीं करता बल्कि अपनी जगह बदलता रहता है। जिससे वनस्पतियों का विनाश ज्यादा होता है।
  2. कृषि बड़े पैमाने पर नहीं की जाती, केवल अपने निर्वाह के लिए ही फ़सलें उगाई जाती हैं।
  3. इसमें मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  • जीविका कृषि/Subsistence Agriculture :  कृषि का वह प्रकार है, जिसके अंतर्गत अधिकतर फसलें खाद्यान्न उत्पादन से संबंधित है। क्योंकि किसान अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए इस खेती को करता है। इस कृषि के साथ-साथ वह पशुपालन का कार्य करता है। इस कृषि के अंतर्गत किसान उपभोग करने के बाद इतना भी अनाज नहीं बचा पाते ताकि उसे बेचकर वह अपनी समस्याओं को दूर कर सके इसलिए इस कृषि को जीविका कृषि भी कहा जाता है।
  • व्यापारिक कृषि/Commercial Agriculture : इसे नकदी फसल भी कहते हैं। क्योंकि किसान इसे ज्यादा समय तक अपने पास नहीं रख सकता अर्थात उसे बेचना ही पड़ता है। नकदी अथवा व्यापारिक फसलों के अंतर्गत रबड़, चाय, कॉफी, तंबाकू, कपास, गन्ना तथा जूट आदि फसलों को शामिल किया जाता है। 

इस फसल का उत्पादन भारत में क्षेत्र के अनुसार होता है जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में गन्ने का उत्पादन, असम और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्र में चाय का उत्पादन तथा बिहार एवं पश्चिम बंगाल में जूट का उत्पादन किया जाता है।

  • गहन कृषि/Intensive Farming : गहन या सघन कृषि, कृषि उत्पादन की वह तकनीक है, जिसके अंतर्गत कम जमीन पर अधिक पैदावार की जाती है। इसके लिए किसान कृषि यंत्र, रसायनिक उर्वरक, कीटनाशक तथा उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करता है। भारत में इस प्रकार की खेती लगभग प्रत्येक क्षेत्र में की जाती है। क्योंकि भारत में प्रति व्यक्ति जमीन का औसत कम है। इसलिए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भारतीय किसान सघन या गहन कृषि करते हैं। यह प्रणाली उन देशों में अधिक प्रयोग की जाती है, जहां जनसंख्या अधिक है तथा जमीन का औसत कम है।
  • मिश्रित कृषि/Mixed Farming : जहां फसलों के उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है, उसे मिश्रित खेती कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां पशुपालन एक आम बात है। इस प्रकार भारत का लगभग प्रत्येक किसान मिश्रित खेती करता है। क्योंकि वह खेती के साथ-साथ पशु पालन भी करता है और पशु पालन ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आय का सबसे बड़ा साधन है।
  • विस्तृत कृषि/Extensive Farming : यह सामान्य खेती की तरह होती है। मगर इस फसल के अंतर्गत खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है, जिसके लिए कृषि यंत्रों (ट्रैक्टर, हैरो, रूटरवेटर व मशीन) की आवश्यकता पड़ती है तथा इसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक एवं उन्नत किस्म के बीजों की आवश्यकता होती है। मशीनों का अधिक प्रयोग होने के कारण इस फसल में लेबर यानी मजदूरों की कम आवश्यकता पड़ती है। लेकिन प्रति व्यक्ति उत्पादन की मात्रा बहुत अधिक होती है। इस फसल के अंतर्गत निम्न फसलों को उगाया जाता है। जैसे गेहूं, चावल, सरसो, फूल और फल इत्यादि। अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया में इस प्रकार की खेती की जाती है। भारत में भी पंजाब, तमिलनाडु तथा हरियाणा में इसके उदाहरण देखने को मिल जाते हैं।
  • दुग्ध कृषि/Milk Farming : दुग्ध फसल या डेयरी उद्योग कृषि की श्रेणी में ही आता है। यह उद्योग पशुपालन से संबंधित है। क्योंकि जहां पर दूध का व्यापार किया जाता है या दूध का उत्पादन किया जाता है। वहां पशु पालन एक आम बात है। क्योंकि बिना पशुओं के दूध का उत्पादन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार दुग्ध कृषि को पशु कृषि कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। डेयरी फार्मिंग के अंतर्गत दूध देने वाले मवेशियों का प्रजनन तथा देखभाल, दूध की खरीद और उसकी बिक्री तथा विभिन्न डेयरी उत्पादों के रूप में प्रोसेसिंग आदि कार्य किए जाते हैं। बिना दूध देने वाले पशुओं को मांस उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। श्वेत क्रांति दुग्ध फसल से संबंधित है। और भारत दूध उत्पादन के मामले में विश्व में प्रथम स्थान पर है।
  • ट्रक कृषि/Truck Farming : ट्रक फार्मिंग एक सामान्य खेती है मगर शहर तथा मंडी से दूर होने के कारण परिवहन की समस्या आती है इस समस्या को दूर करने के लिए जो परिवहन (वाहन) का प्रयोग किया जाता है उसे ट्रक फार्मिंग कहते हैं। इस कृषि के अंतर्गत निम्नलिखित प्रश्नों को लिया जाता है जैसे फल, सब्जियां, मसाले आदि। व्यापारिक फसल गन्ने को भी खेत से मिल तक पहुंचाने के लिए परिवहन का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इन सब्जियों के दाम कुछ बढ़ जाते हैं क्योंकि इसमें आया परिवहन का खर्चा भी जोड़ा जाता है। इस फसल का सबसे पहली बार प्रयोग अमेरिका में किया गया। जैसे-जैसे नगरों में सब्जियों एवं फलों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे ही ट्रक फार्मिंग का विकास भी तेजी से हो रहा है।
  • बागवानी कृषि/Horticulture Agriculture : बागानी या बागवानी शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है उद्यान या बाग की खेत। आमतौर पर इसका अर्थ है कि खेत में विभिन्न प्रकार का पौधारोपण करके उनके विकास की देखभाल करना। इस कृषि के अंतर्गत निम्नलिखित फसलों को उगाया जाता है। जैसे फूल, फल, मशरूम, सब्जियां तथा मसालों की फसल आदि।

बागानी कृषि का मुख्य उद्देश्य फलों, सब्जियों व वनस्पतियों की नई तथा उन्नत किस्मों को तैयार करना, विदेशी किस्मों का विकास करना, फसल की पैदावार में सुधार करना, फसलों की गुणवत्ता के साथ-साथ उसके पोषक तत्वों को बढाना तथा ऐसी किस्मों को तैयार करना, जिसकी प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो।

बागवानी या उद्यान प्रकार की कृषि निम्नलिखित प्रकार की होती है।

  1. फल उद्यान तथा परीक्षण
  2. सब्जी उद्यान तथा परीक्षण
  3. पुष्प उद्यान तथा परीक्षण

वर्तमान समय में देश के कई राज्यों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान बागवानी कृषि का है। इस कृषि का जीडीपी में 30.4 प्रतिशत योगदान है। बागबानी संभाग का मुख्यालय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली में स्थित है।

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