भारत का एकात्मक समाज

किसी भी समाज का निर्धारण ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के फलस्वरुप होता है और प्रत्येक समाज विभिन्न ऐतिहासिक कारकों जैसे मानव बसाव की प्रक्रियाओं, प्रजातीय विकास एवं मिश्रण, भाषा का विकास, धार्मिक मान्यताएं, परंपराएं एवं वैज्ञानिककरण की प्रक्रिया से निर्धारित होता है। ये सभी तत्व विभिन्न ऐतिहासिक कालों में तत्कालिक समाज की जीवन शैली, मान्यताओं एवं संस्कृति को निर्धारित करते रहे हैं।

ऐतिहासिक संस्कृतियों में गत्यात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया से ही वर्तमान भारतीय समाज के स्वरूप का निर्धारण हुआ है, जिसमें विभिन्न स्तरों पर विविधता के तत्व मौजूद हैं, लेकिन साथ ही सांस्कृतिक एवं भौगोलिक एकता के तत्वों ने भारतीय समाज से संयुक्त बनाए रखा है, जिसके सामाजिक मूल्य सामान्यत: एक हैं। अतः विविधता में एकता के तत्व का पाया जाना ही भारतीय समाज का मुख्य आधार है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत में विश्व की प्राचीनतम सभ्यता हड़प्पा सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ, हालांकि हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन इसके साथ ही हड़प्पाई प्रभाव वाली नवीन सभ्यता भी विकसित होती गई, जो अर्ध-नगरीय सभ्यता के रूप में थी। 

आर्यों के बाद भारत

आर्यों के आगमन के साथ ही वैदिक संस्कृति, वेदिक मान्यताएं और धर्म भाषा के परिभाषित स्वरूप का विकास होने लगा। इसके दूसरे मध्यकाल तक किसी न किसी रूप में वैदिक परंपराएं एवं सामाजिक मूल्य बने रहे, इस बीच बौद्ध एवं जैन धर्मों की उत्पत्ति ने भारतीय समाज को एक नई दिशा प्रदान की और यह देखा गया कि पूर्व मध्यकाल में विकसित हिंदू धर्म पर वैदिक परंपराओं के साथ ही धार्मिक आंदोलन विशेषकर बौद्ध एवं जैन धर्म के मान्यताओं का भी व्यापक प्रभाव था। ऐसे में भारतीय समाज के मूल्यों में बदलाव हुआ, लेकिन वैदिक संस्कृति की जड़े मजबूत बनी रही। 

मध्य काल में भारत

मध्यकाल में अरब, अफगान, मंगोल व तुर्क के भारत में प्रवेश करने से विभिन्न प्रजातियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ, बल्कि भारतीय समाज में विविधता के तत्व विकसित होते चले गए। यह विविधता धार्मिक, भाषाई, प्रजातीय व सांस्कृतिक इत्यादि के आधार पर थी। विविधता के तत्वों ने भारतीय समाज में समन्वय एवं सहिष्णुता की एक नई प्रक्रिया प्रारंभ की। नए संपर्क भाषाओं का विकास जातीय, प्रजातीय मिश्रण, रहन-सहन, खान-पान का परस्पर अपनाया जाना जैसी गतिविधियों ने भारतीय समाज की दिशा निर्धारित की। इस कारण भारत में प्रजातीय, भाषाई, धार्मिक तथा सांस्कृतिक विविधता के तत्वों के बावजूद एकता के तत्व विकसित होते चले गए। 

अंग्रेजो के समय भारत

दक्षिण भारत में बाहरी लोगों के अपेक्षाकृत कम हस्तक्षेप के कारण वहां स्वतंत्र संस्कृति एवं परंपराओं का विकास हुआ, लेकिन उत्तर और दक्षिण भारत में संपर्क सूत्र किसी न किसी रूप में बना रहा।, जिससे उत्तर और दक्षिण भारत के सामाजिक एकीकरण की प्रक्रिया भी प्रारंभ हुई। ब्रिटिश शासन काल में औपनिवेशिक हितों के संदर्भ में ब्रिटिश नीतियों के अंतर्गत सभी प्रदेश शासित होने लगे तथा अंग्रेजों के प्रचार-प्रसार, परिवहन साधनों का विकास, डाक तार व्यवस्था जैसे कारकों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों को एक सूत्र में बांध दिया, जिसका स्पष्ट लाभ स्वतंत्रता के बाद 600 अस्थिर रियासतों के भारत संघ में शामिल होने के रूप में मिला।

इस तरह ऐतिहासिक कारकों द्वारा नवीन तत्व भारतीय समाज में समाविष्ट होते रहे, जिससे भारतीय समाज का स्वरूप अत्यंत व्यापक होता चला गया। जिसका मूल आधार विभिन्न स्तरों पर मिलने वाली विविधता के मध्य एकता के सूत्र हैं। वर्तमान में भारत धार्मिक सहिष्णुता तथा सांस्कृतिक समन्वय के लिए जाना जाता है और धर्मनिरपेक्ष यहां के जीवन मूल्यों में शामिल है। भारत में भाषा की विविधताएं 

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