गुरु रविदास जी किसकी पूजा करते थे?

गुरु रविदास का जीवन परिचय

संत रविदास जी का जन्म 1450 ईसवी में वाराणसी के पास गोवर्धनपुर नामक गांव में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म 1377 इसमें मानते हैं। इनके पिता का नाम संतोखदास एवं माता का नाम कालसा देवी था। रविदास जी को रैदास के नाम से भी जाना जाता है। उनकी जन्मतिथि के संबंध में काफी मतभेद है। मगर माघ महीने की पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर गुरु रविदास के भक्त जुलूस एवं महासभाओं का आयोजन करते हैं।

रविदास का शिक्षात्मक जीवन

रविदास बचपन से ही आध्यात्मिक शिक्षा में विश्वास नही करते थे। जातिवाद और आध्यात्मिकता के खिलाफ काम करने के कारण गुरु रविदास काफी प्रसिद्ध रहे‌। इनके गुरु का नाम पंडित शारदा नन्द था। जाति-भेदभाव के कारण वह स्कूल नहीं जा पाए। मगर पंडित शारदानंद ने रविदास को अपने घर बुलाकर शिक्षा देना प्रारंभ किया। गुरु रविदास ने निम्नलिखित दोहे एवं कविताएं लिखी हैं जैसे –

जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
रैदास मानुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

इस प्रकार बाद में रविदास द्वारा गाए गए पद, दोहे एवं रचनाओं को गुरु ग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया। जिसका श्रेय श्री गुरु अर्जुन देव को जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब सिक्खों का पवित्र ग्रंथ है।

जातिवाद एवं पाखण्डता के विरोधी रैदास

गुरु रविदास जाति, रंगभेद के विरोधी थे। वह प्रत्येक मनुष्य को एक समान मानते थे। उनकी नजर में कोई ऊंचा-नीचा नहीं था। वे लोगों से कहते हैं कि व्यक्ति जाति व धर्म से नहीं पहचाना जाता, बल्कि अपने कर्मों से पहचाना जाता है। रविदास जी ने समाज में फैले छुआछूत एवं जातिवाद को खत्म करने के प्रयास किए। रविदास निम्न जाति में जन्में थे। उच्च वर्गीय समाज ने उन्हें स्कूल में पढ़ना, मंदिर में पूजा करना तथा किसी ब्राह्मण के सामने आने से मना किया था। उस समय समाज में कुप्रथाएं अपनी चरम सीमा पर थी।
गुरु रविदास द्वारा किए गए कार्यों पर उच्च वर्ग एवं निम्न वर्ग दोनों समुदायों को आपत्ति थी। गुरु रविदास जी ने समाज को इस अंधकार से निकालने के लिए बहुत प्रयास किया। वे ब्राह्मणों की तरह धोती पहनते, तिलक लगाते एवं जनेऊ धारण करते थे। उनका मानना था कि ईश्वर ने मनुष्य को बनाया है न कि मनुष्य ने ईश्वर को। इस प्रकार ईश्वर द्वारा बनाए गए सभी मनुष्य एक समान है। जाति, भेदभाव व छुआछूत आदि मानव द्वारा बनाई गई कुप्रथाएं हैं, जिन्हें खत्म किया जाना चाहिए।

श्री रविदास जी मीराबाई के धार्मिक गुरु थे, जो श्री कृष्ण की भक्त एवं चित्तौड़ की महारानी थी।

रविदास मुगल शासक बाबर के समकालीन थे।

गुरु रविदास बाबर के समकालीन थे, कुछ विद्वानों का मानना है कि बाबर ने गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना था।

समाज को सही दिशा में लाने का प्रयास उस समय कबीरदास भी कर रहे थे। कबीरदास निर्गुण भक्ति के कवि थे। उन्होंने समाज में फैली कुप्रथाओं का अंत करने का प्रयास किया। इस प्रकार संत रविदास एवं कबीरदास दोनों बाबर के समकालीन थे।

गुरु रविदास जी का अंत समय

गुरु रविदास जी ने प्रारंभ से ही समाज पर पड़ा अंधविश्वास का पर्दा उठाने का प्रयास किया। यही बात समाज को अच्छी नहीं लग रही थी, जिसके कारण समाज के वर्गों ने गुरु रविदास जयंती को मारने का प्रयास किया। लेकिन असफल रहे। अंत में गुरु रविदास जी ने अपने प्राणों का त्याग करते हुए, अपने जन्म के लगभग 120 वर्ष के बाद 1540 ईस्वी के आसपास वाराणसी में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

रविदास जयंती मनाने का कारण

गुरु रविदास का जन्म माघ महीने की पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए इसी उपलक्ष में माघ महीने की पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों एवं सरकारी दफ्तरों की छुट्टी होती है। 16 फरवरी, 2022 को गुरु रविदास जी का 643 वां जन्म दिवस मनाया जाएगा। इस दिन वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर के श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर पर प्रत्येक वर्ष वाराणसी के लोगों द्वारा इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

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