आर्कटिक नीति क्या है एवं भारत की आर्कटिक नीति के उद्देश्य क्या हैं?

भारत की आर्कटिक नीति

हाल ही में, भारत में आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान, सतत पर्यटन, खनिज तेल एवं गैस की खोज को बढ़ावा देने के लिए एक आर्थिक नीति मसौदा तैयार किया गया है। भारत ने आर्कटिक महासागर के लिए अपना प्रथम वैज्ञानिक अभियान वर्ष 2007 में प्रारंभ किया था। उत्तर ध्रुवीय आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव एक सदी पहले से ही रहा है। जब फरवरी 1920 में पेरिस में स्वालबर्ड संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। वर्तमान समय में भारत आर्थिक क्षेत्र में अनेक वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधान कर रहा है तथा इस क्षेत्र के समुद्र विज्ञान वातावरण प्रदूषण और सूक्ष्म जीव विज्ञान से संबंधित अध्ययनों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है।

जुलाई, 2008 में हिमनद विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और जैविक विज्ञान विषयों के अध्ययन कार्य हेतु नार्वे स्थित अंतरराष्ट्रीय आर्कटिक अनुसंधान आधार नी-अलेसुंड स्वालबार्ड में अपना एक अनुसंधान बेस ‘हिमाद्रि’ खोला था। आर्कटिक के संदर्भ में भारत की कोई आधिकारिक नीति नहीं थी तथा भारतीय आर्कटिक अनुसंधान का उद्देश्य, पारिस्थितिकी और पर्यावरण पहलुओं पर केंद्रित था, जिसमें अब तक जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

आर्कटिक महासागर पृथ्वी के उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत आर्कटिक महासागर सहित कनाडा, अमेरिका (अलास्का), डेनमार्क (ग्रीनलैंड), नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, आइसलैंड और रूस जैसे देशों के भाग सम्मिलित हैं। आर्थिक परिषद में 13 सदस्य राष्ट्र पर्यवेक्षक है, जिनमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, चीन पोलैंड, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड व यूनाइटेड किंगडम के अतिरिक्त भारत भी शामिल है। इस प्रकार 2022 तक भारत ने आर्कटिक में 13 अभियानों का सफलतापूर्वक संचालन किया है।

भारत की आर्कटिक नीति के उद्देश्य

  1. ध्रुवीय क्षेत्रों और हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करना,
  2. आर्कटिक में भारत के हितों की खोज में अंतर संबंध स्थापित करना,
  3. आर्कटिक क्षेत्र के संबंध में विज्ञान और अन्वेषण जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, समुद्र और आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमता और दक्षता को मजबूत बनाना,
  4. आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन में भारत की जलवायु आर्थिक और ऊर्जा शिक्षा पर प्रभाव की समझ को बढ़ाना,
  5. आर्कटिक परिषद में भारत की भागीदारी बढ़ाना और आर्कटिक में जटिल शासन संरचनाओं व राजनीति की समझ में सुधार करना।