भारत की विदेश नीति में पूर्व की ओर देखो नीति का क्या महत्व है?

भारत की ‘पूरब की ओर देखो नीति’ पहली बार 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने अपनाई थी। तब से यह नीति भारत की विदेश नीति का प्रमुख अंग बन चुकी है।

यह नीति भारत की विश्व दृष्टि तथा उभरती हुई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भारत के स्थान के प्रति उसकी सोच में एक रणनीतिक बदलाव की ओर संकेत करती है। इसका उद्देश्य भारत के पड़ोसी दक्षिण-पूर्वी तथा पूर्वी एशिया के देशों के साथ सहयोग बढ़ाना है। इसके अलावा चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना भी इस नीति का एक उद्देश्य है।

यह नीति विविध क्षेत्रों में बहुमुखी प्रयासों को प्रोत्साहित करती है, जैसे उन्नत संचार, व्यापार एवं निवेश प्रोत्साहन तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान इत्यादि। इस नीति के अंतर्गत जो महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, उसमें चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड तथा अन्य आसियान देशों के साथ संवाद या व्यापार शुरू करना है।

इस नीति को विभिन्न क्षेत्रीय समूहों या संगठनों जैसे आसियान पूर्व एशिया सम्मेलन, बिम्सटेक आदि के साथ रचनात्मक सहयोग को आगे बढ़ाना है।

यह नीति जो कि पहले मात्र एक आर्थिक पहल मानी जाती थी। वर्तमान में उसमें अनेक राजनीतिक तथा क्षेत्रीय आयात सामने आए हैं। इसके चलते भारत के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों के साथ रणनीतिक, सैन्य, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं लोगों के स्तर पर ऐतिहासिक एवं सभ्यता गत संबंध पुनर्जीवित हुए हैं।

इस नीति की शुरुआत शीत युद्ध के अंत तथा उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के उभरते परिपेक्ष्यों में हुई थी। अमेरिका, चीन की बढ़ती शक्ति को हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर के बीच के क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करके संतुलित करना चाहता है।

इस नीति के अच्छे परिणाम के बाबजूद ही थाईलैंड ने ‘पश्चिम की ओर देखो नीति’ को अपनाया है।

Scroll to Top
10 TYPES OF ROSES FOR YOUR LOVELY HOME OR GARDEN Benefits of Gulmohar Tree or Plant Some important facts about IRIS plant