पंचशील सिद्धांत 1954 में जवाहरलाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमंत्री श्री चाऊ एन लाई (चीन के राष्ट्र प्रमुख) के मध्य तिब्बत के संबंध में भारत-चीन संधि की उद्देशिका में शामिल है। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए आचरण के पाँच सिद्धांतों को लागू करता है। यह पाँच सिद्धांत निम्नलिखित है।
- एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता के लिए परस्पर सम्मान करना
- गैर आक्रमण
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देना
- शांतिपूर्वक सह अस्तित्व और
- समानता तथा परस्पर लाभ।
भारत ने यह अनुभव किया है कि प्रतिस्पर्धी ताकतों की शक्तिशाली संधियों व संबंधों द्वारा शीत युद्ध के तनावों को कम करना और भय संतुलन बनाने के बजाय पंचशील संप्रभुत्व राष्ट्रों में शांतिपूर्ण सहयोग में उपयोगी है। भारत ने इसे सार्वभौमिकता के सिद्धांत पर आधारित बताया। यह शक्ति संतुलन की अवधारणा के विपरीत था।
पंचशील काफी लोकप्रिय हुआ तथा कई राष्ट्रों जैसे म्यांमार, इंडोनेशिया तथा भूतपूर्व युगोस्लाविया ने इसे अपनाया। पंचशील तथा गुटनिरपेक्षता अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कल्पना व प्रयोगों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।
मगर चीन ने 1962 में इस सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया था, जिससे इस संधि की मूल भावना को काफी क्षति पहुंची।
नोट : जनवरी, 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच जो ऐतिहासिक ताशकंद समझौता हुआ था, उसमें मतभेद और विवादों को हल करने के लिए शस्त्र का प्रयोग न करना, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न करना तथा सहयोग, सद्भाव बढ़ाने के प्रयत्न के जो सिद्धांत लागू किए गए, वें पंचशील के ही अंग थे।