वैदिक सभ्यता | आर्य सभ्यता | वैदिक सभयता की शुरुआत कब हुई थी?

सिंधु घाटी सभ्यता के बाद भारत में जिस सभ्यता का विकास हुआ, उसे आर्य सभ्यता या वैदिक सभ्यता कहा जाता है। इस सभ्यता की जानकारी हमें ऋग्वेद से प्राप्त होती है। इस सभ्यता का नाम वैदिक इसलिए पड़ा क्योंकि वेदों में ही इस सभ्यता की जानकारी मिलती है।



वेद चार प्रकार के होते हैं – ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इन्हें अपौरुषेय भी कहा जाता है। इनमें ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी, जिसका संबंध गायत्री मंत्र से है

वैदिक सभ्यता को दो भागों में बांटा गया है। 

  • ऋग्वैदिक काल (1500 -1000 BC)
  • उत्तर वैदिक काल (1000-600 BC)



ऋग्वैदिक काल :

इस काल की तिथि निर्धारण काफी विवाद पूर्ण रही है। मैक्समूलर के अनुसार, आर्यों का मूल निवास मध्य एशिया था। आर्य द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहलाई। यह सभ्यता ग्रामीण तथा भाषा संस्कृत थी। बाल गंगाधर तिलक ने इसका काल 6000 BC माना है।



यहां प्रशासन की छोटी इकाई कुल थी। परिवार के मुखिया को कुलिप कहा जाता था।

  • कई कुल मिलकर एक ग्राम होता था,
  • कई ग्राम मिलकर एक विश होता था,
  • कई विश मिलकर एक जन होता था,
  • कई जन मिलकर एक राष्ट्र होता था।

जन के शासक को राजा कहते थे। प्रारंभ में राजा का चुनाव जनता द्वारा मगर बाद में पैतृक हो गया। लोग राजा को बलि नामक कर देते थे, ताकि उनकी रक्षा हो सके। यहां सभा और समिति दो संस्थाएं थी। 

  • सभा = उच्च सदन (यह बुद्धिमान व अनुभवी व्यक्तियों की संस्था थी)
  • समिति = यह आम जनमानस की संस्था थी।

धर्म की मान्यता के अनुसार ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की पूजा होती थी। मूर्ति पूजन नहीं थी। प्रारंभ में इस काल में आर्यों का निवास स्थान सिंधु और सरस्वती नदी था। बाद में उनका मुख्य क्षेत्र गंगा तथा उसकी सहायक नदियां हो गया था। यहां सरस्वती नदी सबसे महत्वपूर्ण नदी बन गई। इस संदर्भ में गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेख मिलता है।



इस काल में कौशांबी नगर में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया। वेदों को श्रुति की संज्ञा दी गई।

ऋग्वेद :

  1. देवताओं की स्तुति से संबंधित रचनाओं का संग्रह
  2. 10 मंडल तथा 1028 सूक्त
  3. 33 प्रकार के देवताओं का उल्लेख
  4. गायत्री मंत्र,
  5. असतो मा सद्गमय वाक्य,
  6. इनके पुत्त पुरोहित होत्री कहलाए।



यजुर्वेद :

  1. इसका अर्थ यज्ञ से होता है।
  2. इसमें धनुर्विद्या का उल्लेख है।
  3. इसके पाठ कर्ता को अध्वर्यु कहते थे
  4. इसकी दो शाखाएं हैं – कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद
  5. इसमें 40 अध्याय हैं।



सामवेद :

  1. ऋग्वेद के मंत्रों को गाने हेतु इसकी रचना की गई थी।
  2. इसमें 1810 छंद है, इसमें 75 को छोड़कर बाकी ऋग्वेद से लिए गए हैं।
  3. इसमें संगीत के विषय में वर्णन किया गया है।
  4. आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था।
  5. महर्षि कणाद को भारतीय परमाणुवाद का जनक कहा जाता है। आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। गाय को अघन्य कहा गया तथा इसे मारने वाले को दंड की प्रथा थी। इनका प्रिय पशु घोड़ा एवं प्रिय देवता इंद्र था, बाद में इंद्र के स्थान पर पशुपति प्रसिद्ध हुए।
  6. लोहा को आर्यों ने खोजा था जिसे श्याम अयस कहा जाता था। जो व्यक्ति व्यापार के लिए बाहर जाते थे, उन्हें पणि के नाम से संबोधित किया जाता था।
  7. उत्तर वैदिक काल में निष्क एवं शतमान मौद्रिक इकाइयां थी, मगर इस काल में किसी प्रकार की मुद्रा का साक्ष्य नहीं मिलता।
  8. सत्यमेव जयते मुंडक उपनिषद से लिया गया है।
  9. महाभारत का नाम जयसंहिता जो विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है।



यहां की प्रमुख नदियां :

  • क्रुभ – कुर्रम,
  • कुभा – काबुल,
  • वितस्ता – झेलम,
  • अस्किनी – चिनाव,
  • परुषणी – रावी,
  • शतुद्धि – सतलज,
  • सदानीरा – गंडक



प्रमुख दर्शन : 

  1. चार्वाक – चार्वाक,
  2. योग – पतंजलि
  3. सांख्य – कपिल
  4. न्याय – गौतम
  5. पूर्व मीमांसा – जैमिनी
  6. उत्तर मीमांसा – बादरायण
  7. वैशेषिक – कणाद या उलूक
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