भारत के वृहद आकार, उत्तर में हिमालय की स्थिति, दक्षिण प्रायद्वीपीय (Peninsular) पठारी अवस्थित तथा दक्षिण में स्थित हिंद महासागर एवं कुछ स्थानों का हिंद महासागर अर्थात समुद्र से अधिक दूरी भारत को उष्णकटिबंधीय (Tropical) मानसूनी जलवायु प्रदान करती है। लेकिन भारत की जलवायु में स्थानीय एवं प्रादेशिक (Local and Regional) विविधता पाई जाती है, जो अनेक जलवायविक कारकों के कारण उत्पन्न होती है। इस विविधता के बावजूद मानसूनी जलवायु ही संपूर्ण भारत में पाई जाती है एवं वर्षा का भी प्रमुख स्रोत है। लेकिन मानसूनी प्रक्रिया के बावजूद वर्षा, तापमान एवं वायुदाब परिस्थितियों में भिन्नता के कारण अनेक भूगोलवेताओं एवं जलवायु वैज्ञानिकों ने भारत को जलवायु प्रदेशों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। इस दिशा में कोपेन, थार्नवेट और ट्रीवार्था के कार्यों को व्यापक मान्यता प्राप्त है।
ट्रिवार्था के कार्य को भारतीय उपमहाद्वीप के लिए सामान्य जलवायु वर्गीकरण योजना मानी जाती है। वस्तुतः ट्रिवार्था का कार्य कोपेन का ही संशोधित रूप है। कोपेन की योजना की आलोचना को ध्यान में रखकर ट्रिवार्था ने यह योजना प्रस्तुत की है। ट्रिवार्था की योजना के अधिक उपयोगी होने का एक प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने भारतीय प्रदेश के अंतर्गत अधिक से अधिक जगहों से मौसमी सूचनाएं एकत्रित कर उसका उपयोग किया है एवं इसी आधार पर वर्गीकरण की योजना प्रस्तुत की थी।
ट्रिवार्था ने कोपेन के समान ही जलवायु वर्गीकरण हेतु वनस्पति, तापमान, वर्षा एवं उच्चावच को आधार माना है। कोपेन ने तापमान एवं वर्षा पर अधिक महत्व दिया है। ट्रिवार्था ने भारतीय प्रदेश को 7 प्रमुख जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया है एवं इसका नामकरण मुख्यत: वनस्पति आधारित है। इससे स्पष्ट होता है कि इनकी योजना में वनस्पति को व्यापक महत्व दिया गया है। कोपेन के समान सभी जलवायु प्रदेशों के लिए संकेतिक शब्दावाली का भी प्रयोग किया गया है।
संकेतिक शब्दावली के माध्यम से जलवायु विशेषताओं का सहजता से विश्लेषण हो पाता है।
ट्रिवार्था महोदय ने निम्नलिखित 7 जलवायु प्रदेश बताए हैं।
- उष्णकटिबंधीय वर्षा वन प्रदेश (Am) Tropical Rain forest
- उष्ण सवाना प्रदेश (Aw) Tropical Savanna
- उष्ण अर्द्धशुष्क स्टेपी प्रदेश (Bs) Tropical semi arid Steppe Climate
- उष्ण एवं उपोषण स्टेपी (Bsh) Tropical and Subtropical Steppe
- उष्ण मरुस्थल प्रदेश (Bwh) Tropical Desert
- उपोष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश (Cwa) Humid Subtropical with dry Winter
- पर्वतीय जलवायु प्रदेश (H) Mountain Climate
उष्णकटिबंधीय वर्षा वन प्रदेश
इस जलवायु की विशेषताएं विषुवतीय जलवायु से मिलती है। अधिक ताप, अधिक वर्षा, अधिक सापेक्षिक आर्द्रता और चौड़ी पत्ती के सघन वनों का पाया जाना, इस जलवायु की विशेषता है। इस जलवायु में मौसम का प्राय: अभाव होता है। सालों भर लगभग एक ही प्रकार की जलवायु विशेषताएं पाई जाती है। वार्षिक वर्षा 250 सेंमी है जो दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है। सर्वाधिक तापमान अप्रैल-मई में औसतन 29°C होता है। सर्वाधिक ठंड दिसंबर एवं जनवरी में होती है, जब औसतन तापमान 18°C होता है। वार्षिक तापांतर 10.8°C होता है। जबकि विषुवतीय प्रदेश में वार्षिक तापांतर 5°C होता है। यही कारण है कि यह पूर्णत: विषुवतीय प्रदेश तो नहीं है, लेकिन उसी प्रकार की विशेषताएं रखती है।
वितरण
यह जलवायु भारत के 3 प्रदेशों में पाई जाती है।
- मालाबार तट एवं पश्चिमी घाट पर्वतीय प्रदेश
- अंडमान निकोबार दीप समूह
- उत्तरी पूर्वी भारत
मालावार तटीय प्रदेश एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में तुलनात्मक दृष्टि से वार्षिक तापांतर कम होता है। (7-8°C)। इसका प्रमुख कारण इसका विषुवत रेखा के नजदीक होना एवं समुद्र से इस क्षेत्र की नजदीकता है। लेकिन उत्तर पूर्व भारत में स्थिति भिन्न है। यहां वार्षिक तापांतर 13°C पाया जाता है, जो मौसम में परिवर्तन का द्योतक है। इसका प्रमुख कारण है।
- यह महासागरीय प्रभाव से दूर है।
- तुलनात्मक दृष्टि से अधिक अक्षांश पर हैं।
- हिमालय जैसी हिमाच्छादित पर्वतों से उतरने वाली ठंडी हवा और मेघालय जैसे उच्च स्थल का तापमान पर प्रभाव
इन परिस्थितियों का परिणाम होता है कि ग्रीष्म ऋतु का तापमान उच्च होता है, लेकिन जाड़े की ऋतु का तापमान 14-15°C होता है। कभी-कभी शीत लहरी के कारण तापमान 10°C से भी कम हो जाता है, लेकिन यें परिस्थितियां कुछ ही दिन कार्य करती हैं। अतः औसत विशेषताओं पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
वर्षा : 80 प्रतिशत से अधिक वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है। जून के मध्य में वर्षा प्रारंभ हो जाती है, इसका प्रभाव अक्टूबर के मध्य तक होता है। सामान्यतः जाड़े की ऋतु में वर्षा नहीं होती है। लेकिन कभी-कभी भूमध्यसागरीय प्रदेश से चलने वाली पछुआ हवा के प्रभाव से इस प्रदेश में भी वर्षा होती है। इस प्रदेश में मानसून के आगमन से पूर्व चक्रवातीय वायु के प्रभाव से वर्षा होती है। यह वर्षा मानसून पूर्व की होती है, जो काल बैसाखी या अम्र वर्षा के नाम से जानी जाती है।
उष्ण सवाना प्रदेश (Aw)
इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः प्रायद्वीपीय भारत की विशेषता है। प्रायद्वीपीय भारत के दो प्रदेशों को छोड़कर यह जलवायु पाई जाती है।
- मालवार तटीय प्रदेश
- पश्चिमी घाट पर्वत के वृष्टि छाया प्रदेश
Aw प्रदेश के अंतर्गत मुख्यतः वे क्षेत्र आते हैं। जहां वार्षिक वर्षा 75-150 सेंमी के मध्य होती है। यह प्रदेश मौसमी विशेषताओं के लिए प्रमुख है अर्थात यह वह प्रदेश है, जहां ऋतु परिवर्तन होता है। इस प्रदेश को हम सामान्यतः तीन ऋतुओं में विभाजित करते हैं।
(1) जाड़ा (2) गर्मी (3) बरसात
- जाड़े की ऋतु का औसत तापमान 18°C से अधिक होता है। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से 15 नवंबर से 15 फरवरी का समय है। यह सामान्यतः शुष्क मौसम होता है। यहां से स्थलीय हवाएं चलती है, लेकिन तमिलनाडु तटीय प्रदेश अपवाद है, यहां जाड़े की ऋतु में उत्तरी पूर्वी मानसून से वर्षा होती है। यहां यह वर्षा ग्रीष्म ऋतु की वर्षा से अधिक होती है।
- ग्रीष्म ऋतु का तात्पर्य शुष्क ग्रीष्म से है, अर्थात वह मौसम जब तापमान उच्च होता है, एवं वायुमंडलीय आर्द्रता कम होती है। इसके अंतर्गत मुख्ययत: अप्रैल एवं मई के महीने आते हैं। इन 2 महीने में औसत तापमान 32°C होता है। परिणामत: वार्षिक तापांतर 13.8°C हो जाता है। फरवरी से मार्च तक बसंतकालीन मौसम होता है, जब तापमान में लगातार वृद्धि होती रहती है। तापमान की इसी वृद्धि के कारण अप्रैल एवं मई में चक्रवात भी आते रहते हैं। चक्रवात का प्रभाव मुख्यत: उड़ीसा एवं उत्तरी आंध्र प्रदेश के तटवर्ती क्षेत्र में पड़ता है। इस चक्रवात का प्रभाव मैदानी भारत पर भी पड़ता है।
- जून से 15 नवंबर तक का काल वर्षा ऋतु का है। जिसमें जून से सितंबर तक दक्षिण पश्चिम मानसून का काल है, और इसी से वर्षा होती है। अधिकतर वर्षा इसी मौसम में होती है। अक्टूबर से नवंबर तक उत्तर-पूर्वी मानसून या लौटती मानसून का समय है। यह शरद कालीन वर्षा चक्रवातीय होती है। इसका प्रभाव मुख्यत: आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तटवर्ती प्रदेश पर पड़ता है।
ऊष्ण अर्द्धशुष्क स्टेपी (Bs)
पश्चिमी घाट पर्वत का वृष्टि छाया प्रदेश इस जलवायु का क्षेत्र है। औसत वार्षिक वर्षा 35-75 सेंमी के बीच होती है। यह क्षेत्र मुख्यत: तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में फैला है। मई महीने में सर्वाधिक गर्मी होती है, जब औसत तापमान 33°C होता है। दिसंबर में सबसे कम तापमान 20-24°C होता है। वार्षिक तापांतर 13°C होता है। यह भारत का सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यहां मानसूनी अनिश्चितताएं होती हैं।
वृष्टि छाया प्रदेश में 35-75 सेंमी तक वर्षा होने का मुख्य कारण यह है कि पश्चिमी घाट पर्वत बहुत ऊंचे नीचे होते हैं, इसलिए वृष्टि छाया प्रदेश में नीचे उतरती वायु में शुष्कता के बावजूद आर्द्रता के गुण होते हैं। पर्वतीय ढाल पर नीचे उतरने के क्रम में दबाव से वे गर्म हो जाते हैं, और पुनः वे ऊपर की ओर उठते हैं तो संघनन प्रक्रिया से गुजरकर इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। इस प्रदेश में दिसंबर जाड़े की ऋतु होती है, लेकिन यहां दिसंबर का तापमान उष्ण वर्षा वन प्रदेश से भी अधिक है। इसके दो कारण हैं।
- यह उत्तरी-पूर्वी भारत की तुलना में निम्न अक्षांश पर अवस्थित है।
- यह प्रायद्वीप स्थलीय भाग के मध्य स्थित है।
यहां समुद्री प्रभाव भी पड़ता है और दिसंबर महीने में भी तुलनात्मक दृष्टि से अधिक तापमान होता है। यहां कभी कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ती लेकिन ग्रीष्म ऋतु में तापमान 40°C से अधिक हो जाता है।
उष्ण एवं उपोष्ण स्टेपी प्रदेश (Bsh)
यह एक अर्धचंद्राकार जलवायु प्रदेश है, जो कच्छ के रन से लेकर पंजाब राज्य तक फैला हुआ है। इसकी पूर्वी सीमा का निर्धारण 65 सेंमी की वर्षा रेखा द्वारा होता है, जबकि पश्चिमी सीमा का निर्धारण 30 सेंमी वर्षा रेखा द्वारा होता है। पश्चिमी सीमा पर अरावली पर्वत भी स्थित है। इसके अंतर्गत गुजरात के कच्छ के रन क्षेत्र, पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के कुछ पश्चिमी भाग तथा दक्षिण हरियाणा एवं दक्षिण पंजाब आते हैं। इसे संक्रमण जलवायु प्रदेश कहा जाता है।
भौगोलिक अवस्थिति के दृष्टि से यह आर्द्र एवं शुष्क प्रदेश के मध्य स्थित है। वार्षिक वर्षा 30 से 65 सेंमी के मध्य होती है। यहां वर्षा बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर दोनों ही मानसून से होती है। लेकिन दोनों ही मानसून की वायु की आर्द्रता में कमी आ जाने के कारण वर्षा की मात्रा में भी कमी हो जाती है। द. पंजाब, द. हरियाणा में जाड़े की ऋतु में पछुवा वायु से भी वर्षा होती है। जाड़े की ऋतु में यह क्षेत्र उच्च भार का क्षेत्र होता है। इस प्रदेश में उत्तरी भाग में जाड़े की ऋतु की वायु दक्षिण-पूर्व की तरफ अर्थात बंगाल की खाड़ी की तरफ अपवाहित होती है, लेकिन कच्छ के रन की वायु दक्षिण पश्चिम अर्थात अरब सागर की तरफ अपवाहित होती है। इसकी तुलना सन्मार्गी वायु से भी की जा सकती है। जून में सर्वाधिक तापमान औसतन 35°C होता है। जनवरी सबसे ठंडी होती है, इसका औसत तापमान 12°C होता है। वार्षिक तापांतर 23°C होता है।
गर्मी ऋतु में इस प्रदेश में लू हवाएं चलती हैं, जो मध्यवर्ती मैदानी भारत के लिए कष्टकर होती हैं। इसके विपरीत जाड़े की ऋतु में यहां उतरी वायु का प्रभाव होता है। यह वायु हिमालय प्रदेश से चलती हैं और हिम प्रभाव के कारण कड़ाके की ठंड लाती है। कभी-कभी कई दिनों तक शीतलहारी चलती है। तापमान हिमांक के नजदीक पहुंच जाता है।
उष्ण मरूस्थलीय प्रदेश
इसके अंतर्गत राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र आता है। यहां औसत वर्षा 30 सेंमी से कम होती है। ज्यों-ज्यों हम पश्चिम की तरफ जाते हैं तो वर्षा की मात्रा में कमी होती जाती है और सबसे कम वर्षा भारत-पाकिस्तान सीमा पर अवस्थित रामगढ़ नामक जगह पर होती है, जहां की वार्षिक वर्षा औसतन 12 सेंमी होती है। जून के महीने में सर्वाधिक तापमान 35°C होता है जनवरी में न्यूनतम तापमान 11°C होता है। वार्षिक तापांतर 24°C होता है। गर्मी ऋतु में अवधि लंबी होती है और वर्ष के करीब 6 महीने तक औसतन तापमान 30°C से अधिक होता है।
यहां यांत्रिक या भौतिक क्षरण की क्रिया अधिक होती है, एवं बालु निर्मित मरुस्थलीय वातावरण देखने को मिलता है। जाड़े की ऋतु में यह क्षेत्र वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है और यहां से सन्मार्गी वायु दक्षिण पश्चिम दिशा में अपवाहित होती है। ग्रीष्म ऋतु में इसी प्रदेश से लू हवाएं चलती है, जो कभी-कभी जानलेवा हो जाती हैं। यदि वर्षा की मात्रा कम है, लेकिन लगभग संपूर्ण वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के द्वारा होती है।
आर्द्र उपोष्ण जलवायु प्रदेश (Cwa)
इस जलवायविक प्रदेश का भौगोलिक विस्तार असम में ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर पंजाब के भारत-पाकिस्तान सीमा तक है। पश्चिमी सीमा सवाना प्रदेश की प्रकार की जलवायु द्वारा प्रथक होती है। उत्तरी सीमांकन 1000 से 1370 मीटर की प्रगति ऊंचाई के क्षेत्रों से होता है। जबकि इससे अधिक ऊंचाई के क्षेत्र में उच्चावच के प्रभाव से विशिष्ट प्रकार की जलवायु का विकास हुआ है।
इस प्रदेश की जलवायु को उपोष्ण आर्द्र जलवायु दो कारणों से कहा जाता है।
- अक्षांशीय स्थिति के कारण उपोषण हैं।
- मानसूनी वायु द्वारा पर्याप्त आर्द्रता के कारण यह आर्द्र जलवायु का भी क्षेत्र है।
यह प्रदेश मौसमी विशेषताओं का भी क्षेत्र है। प्रदेश की अधिकतर वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा होती है। प्रदेश के अंतर्गत तापमान एवं वर्षा के वितरण में भारी विषमता पाई जाती है। पूर्वी सीमा पर 250 सेंमी तक वर्षा होती है। ज्यों-ज्यों हम पश्चिम की तरफ जाते हैं, वर्षा की मात्रा में कमी होती जाती है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर औसतन वर्षा मात्र 65 सेंमी होती है। तापमान के वितरण से भी भारी विषमता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, दक्षिण बिहार के मैदान और पठार के सीमांत क्षेत्र में तापमान 40° से 45° तक पहुंच जाता है। जबकि जाड़े की ऋतु में पंजाब और हरियाणा का तापमान 10°C से कम होता है। इन विषमताओं के बावजूद ट्रिवार्था ने इसे एक जलवायु प्रदेश माना है। इसके निम्न कारण है।
- उपोष्ण अक्षांशीय स्थिति
- एक ही मौसम में एक वायु से वर्षा
- संपूर्ण प्रदेश में पतझड़ ऋतु का आगमन, जो शुष्क गर्मी ऋतु की विशेषता है।
यद्यपि अधिकतर वर्षा दक्षिणी पश्चिमी मानसून वायु से ही होती है, लेकिन मानसूनी वायु के आगमन के पूर्व चक्रवातीय वर्षा का प्रभाव बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, पूर्व उत्तर प्रदेश तथा पूर्वी मध्य प्रदेश में देखने को मिलता है। इस मानसून से पूर्व वर्षा की मात्रा तो कम होती है, लेकिन यह आम और लीची जैसी फसलों के लिए लाभदायक है।
इसी प्रकार जाड़े में भूमध्यसागरीय पछुआ वायु के प्रभाव से पश्चिम हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्षा होती है। यह वर्षा रबी फसलों के लिए बहुत ही लाभदायक है। जाड़े की ऋतु में संपूर्ण प्रदेश का वायुदाब होता है, अतः बंगाल की खाड़ी की हवा इस प्रदेश में नहीं आती बल्कि इस प्रदेश की वायु बंगाल की खाड़ी की तरफ अपवाहित होती है।
पर्वतीय जलवायु (H) प्रदेश
यह जलवायु उत्तरी पर्वतीय प्रकार की जलवायु का द्योतक है। यह वह क्षेत्र है, जहां सामान्यतः 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई है। यहां ऊंचाई के प्रभाव से जलवायु विशेषताएं संशोधित हुई है। इसे हिमालय प्रदेश की जलवायु भी कहा जाता है। जलवायविक विशेषताओं की दृष्टि से इसे दो भागों में विभाजित करते हैं।
- पूर्वी हिमालय की जलवायु
- पश्चिमी हिमालय की जलवायु
पूर्वी हिमालय की जलवायु उष्ण आर्द्र जलवायु है, जबकि पश्चिम हिमालय की जलवायु शीतोष्ण आर्द्र जलवायु है। पूर्वी हिमालय प्रदेश में तुलनात्मक दृष्टि से अधिक तापमान एवं अधिक वर्षा पाई जाती है।
इसका मुख्य कारण पश्चिमी हिमालय की तुलना में अक्षांशीय दूरी कम होना और दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रभावित प्रारंभिक प्रभाव पड़ना है। दक्षिण पश्चिम मानसून के प्रारंभिक प्रभाव के कारण इस प्रदेश की वार्षिक वर्षा 300 से 500 सेंमी तक होती है। यह भारी वर्षा का प्रदेश है। इसके विपरीत पश्चिम हिमालय की वार्षिक वर्षा 100 सेंमी से कम है। सिर्फ उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र में 100 सेंमी या उससे अधिक वर्षा होती है।
जम्मू कश्मीर के लद्दाख पठारी प्रदेश में तो वार्षिक वर्षा 50 सेंमी से भी कम होती है। यद्यपि पश्चिमी प्रदेश में वर्षा कम होती ही है, लेकिन पूर्वी प्रदेश की तुलना में यहां हिमपात अधिक होता है। यह हिमपात 15 जनवरी से 15 मार्च के बीच होता है। इसका मुख्य कारण भूमध्यसागरीय पछुवा वायु का जाड़े की ऋतु में पर्वतीय ऊंचाई पर चढ़ना, इससे संघनन की क्रिया ही हिमांक के नीचे होती है, जिससे पश्चिमी हिमालय प्रदेश में कई दिनों तक हिमपात होता है।
हिमालय प्रदेश में ऊंचाई के कारण तापीय परिवर्तन होता है और इसी के परिणामस्वरुप जलवायु प्रदेश का विस्थापन होता है, जैसे हिमालय के पर्वत पाद क्षेत्र में उष्ण आर्द्र या वर्षा वन की विशेषताएं पाई जाती है। लेकिन 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई के बाद जलवायु में परिवर्तन दृष्टिगत होने लगता है और शीतोष्ण जलवायु की विशेषताएं देखने को मिलती है। 3000 से 3500 की ऊंचाई के ऊपर शीत शीतोष्ण प्रकार की जलवायु अर्थात टैगा देखने को मिलती है।
4500 मीटर की ऊंचाई के ऊपर का भाग जाड़े की ऋतु में हिमाच्छादित हो जाता है, किंतु गर्मी की ऋतु में यहां विविध प्रकार के फल, फूल और अन्य पौधे विकसित हो जाते हैं। 6000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर सालोंभर हिमाच्छादित होता है। हिमाच्छादन का एक मात्र कारण ऊंचाई का प्रभाव है। इस प्रकार इस पर्वतीय प्रदेश में अधिकतम तापमान 15 से 17 डिग्री सेल्सियस तथा 0° सेल्सियस से भी कम जाड़े में रहता है।
अतः विभिन्न जलवायु प्रदेशों की अलग-अलग विशेषताएं होती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- कोपेन के वर्गीकरण का अनुसरण करने पर भारत में छ: जलवायु प्रदेश परिलक्षित होते हैं।
- भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है। मानसून पश्च ऋतु (अक्तूबर-दिसम्बर), जिसे दक्षिणी प्रायद्वीप में पूर्वोत्तर मानसून भी कहा जाता है।
- तापमान के आधार पर पृथ्वी की जलवायु को तीन मुख्य वर्गों में रखा जा सकता है, उष्णकटिबंधीय, शीतोष्ण कटिबंधीय तथा ध्रुवीय। वर्षा के आधार पर शुष्क, आर्द्र, ऋतुवत् शुष्क तथा ऋतुवत् आर्द्र जलवायुविक प्रकारों की पहचान की जा सकती है.
- उत्तर प्रदेश को वर्षा एवं मृदा के आधार पर 9 कृषि जलवायु क्षेत्रों में बांटा गया है, जिनमे केंद्रीय मैदानी, दक्षिण पश्चिमी अर्ध शुष्क, बुंदेलखंड, पूर्वी मैदान, उत्तर पूर्वी मैदान, विंध्य, भाभर और तराई, पश्चिमी मैदान और मध्य पश्चिमी मैदानी क्षेत्र हैं।
- सामान्यतः विषुवत रेखा से 30° अक्षांश के मध्य या कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य उष्ण कटिबंध और 30°-45° अक्षांश के मध्य उपोष्ण कटिबंध पाया जाता है। भारत का अक्षांशीय विस्तार 6°4′ से 37°6′ उत्तरी अक्षांश है। इस प्रकार देखे तो भारत का अधिकांशतः भाग उष्ण कटिबंध के अन्तर्गत आती है। परन्तु भारत की जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय है।
- सम्पूर्ण भारत को जलवायु की दृष्टि से उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश माना जाता है। भारत में उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु पायी जाती है। भारत में अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाओं की दिशा में ऋतुवत् परिवर्तन हो जाता है, इसी संदर्भ में भारतीय जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है
- विश्व के जिन क्षेत्रों में सम जलवायु है, वहाँ विषम जलवायु की अपेक्षा अधिक लोग निवास करते हैं। अधिक तापमान तथा अधिक शीतल प्रदेश जैसे मरुस्थल व ध्रुवीय प्रदेश लगभग मानव विहीन हैं। जिन क्षेत्रों में वर्षा व तापमान सामान्य है तथा अनुकूल जलवायु है वहाँ जनसंख्या का अधिक घनत्व है। < Read More >
- किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊंचाई पर निर्भर करती है। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है। तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं।