क्रायोजेनिक इंजन वह इंजन होता है, जो अति निम्न ताप पर चलता है। यह इंजन सामान्य इंजन की तरह ही होता है अंतर सिर्फ इतना है कि इसमें ईंधन के रूप में द्रव हाइड्रोजन तथा द्रव्य ऑक्सीजन प्रयोग किया जाता है। अर्थात भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाला द्रव ईंधन चलित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन कहलाते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह ईंधन कई गुना अधिक शक्तिशाली होता है और रॉकेट को अतिरिक्त उर्जा भी देता है। विशेष रूप से लंबी दूरी तय करने तथा भारी रॉकेटों के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस इंजन का उपयोग भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के लिए किया जाता है।
इसरो का क्रायोजेनिक ऊपरी चरण परियोजना रूस (CUSP) से खरीदे चरण को बदलने और GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) उड़ानों में इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन और स्वदेशी क्रायोजेनिक ऊपरी चरण के विकास की परिकल्पना की गई। मुख्य इंजन और CUS के दो छोटे स्टेरिंग इंजन के साथ 0 में 73.55 KN मामूली प्रणोद प्रदान करते हैं तथा उड़ान के दौरान CUS-720 सेकंड की नाममात्र अवधि के लिए प्रज्वलित होता है।
क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान लगभग 2000 डिग्री से अधिक होता है। इस इंजन में -243 डिग्री सेल्सियस से लेकर 2000 डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है।
द्रव ऑक्सीजन -183 डिग्री सेल्सियस और हाइड्रोजन -253 डिग्री सेल्सियस पर द्रव रूप धारण करता है। प्रणोदक इस कम तापमान पर करीब 40000 RPM पर पंपों टर्बो का उपयोग कर पंप किया जा सकता है।
इस इंजन में एक विशेष प्रकार की धातु का प्रयोग किया जाता है जो इस तापमान को बनाए रखती है। भारतीय अनुसंधान संस्थान इसरो ने इस मिश्र धातु को विकसित कर दिया है।
क्रायोजेनिक तापमान
-238 डिग्री फारेनहाइट को क्रायोजेनिक तापमान क हैं, जिसके अंतर्गत क्रायोजेनिक इंजन ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन गैस को लिक्विड अवस्था में बनाए रखता है।