ग्रामीण (Rural) न्यायालय क्या होते हैं?

प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में देश में न्यायिक प्रक्रिया को सुलभ और सस्ती बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने ग्रामीण न्यायालय की स्थापना का निर्णय लिया था। इसके लिए ग्राम न्यायालय विधेयक 2007 में लाया गया। ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 जोकि 2 अक्टूबर, 2009 से लागू किया गया। विधि आयोग की 11वीं रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। जिसका उद्देश्य देश के ग्रामीण इलाकों में न्याय प्रणाली तक त्वरित और आसान पहुंच बनाने के उद्देश्य से ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई। यह योजना 13 राज्यों ने 455 ग्राम न्यायालयों को अधिसूचित करके प्रारंभ की थी।

वर्तमान समय में गांव में किए गए अपराधों के लिए गांव में ही सजा का प्रावधान रखा गया है। राज्य सरकार तथा उच्च न्यायालय के आपसी समन्वय के बाद इस व्यवस्था को मूर्त रूप दिया गया, जिसके अंतर्गत जिला न्यायालय ने पंचायती राज विभाग के माध्यम से लंबित गांव के छोटे-मोटे मुकदमों के लिए गांव के प्रधान अर्थात गांव की कचहरी के माध्यम से ही सुनवाई का प्रावधान है। जिसके अंतर्गत निम्नलिखित झगड़ों को शामिल किया जाएगा। जैसे जमीन के झगड़े, मार पिटाई के झगड़े, बंटवारे से संबंधित झगड़े तथा छेड़छाड़ एवं बदतमीजी से संबंधित झगड़ों को गांव के मुखिया द्वारा सुलझा दिया जाएगा।

सूचना एवं प्रसारण के अनुसार, इससे समाज के अंतिम आदमी को कम खर्चीला और व्यक्तिगत झंझट से मुक्त शीघ्र न्याय दिलाना संभव होगा, जिसकी संविधान के संशोधन 38 (1) में व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 38 (1) में उल्लेखित है कि राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करें। भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा।

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