क्यों हिन्दू धर्म की शादियों को एक पर्व के रूप में मनाते है?

भारतीय शादी एक त्यौहार है, जिसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शादी का शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में लड्डू फूटने लगते हैं। शादी के दौरान हमारी संस्कृति देखने को मिलती है। ऐसा लगता है कि आधुनिक काल में भारतीय संस्कृति आज भी जिंदा है। शादी के सभी कार्य पुरानी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार ही पूरे किए जाते हैं। आज भी यह मान्यता है कि अगर शादी के लिए दिन अशुभ है तो इतना बड़ा उत्सव होने के बावजूद भी उसकी तारीख को घटा-बढ़ा दिया जाता है। लड़का या लड़की इनमें से कोई भी मांगलिक है, उस केस में भी पारंपरिक तौर पर पूजा-पाठ किया जाता है। यह ही संस्कृति है। शादी के प्रारंभिक बिंदु से और आखिरी बिंदु तक, जो छोटे-छोटे उत्सव मनाए जाते हैं। उन उत्सवों का हम विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे। तथा भारतीय संस्कृति के बारे में बताएंगे, जो हजारों साल से चली आ रही, परंपरा को जिंदा रखे हैं।

(1) लड़के के लिए लड़की तलाश करना/लड़की के लिए लड़का तलाश करना

यह शादी नामक त्यौहार का पहला बिंदु होता है, यहां मां-बाप को पता चल जाता है कि हमारा बेटा या बेटी शादी योग्य हो चुका/चुकी है। इसलिए मां-बाप अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों तथा दोस्तों से पता करते हैं कि कोई अच्छा रिश्ता बताओ। यह भाग्य के ऊपर निर्भर करता है कि लड़का या लड़की को तलाश करने में कितना समय लगेगा। अंत में पूरी खोजबीन करने के बाद लड़के या लड़की को शादी योग्य चुन लिया जाता है। उसके बाद अगला बिंदु शुरू होता है।

(2) सगाई/रिश्ता तथा गोद भराई

प्राचीन काल में सगाई लड़के या लड़की के माता-पिता द्वारा ही की जाती थी, जिसमें लड़के या लड़की की सलाह नहीं ली जाती थी। जैसा हमारे बड़े-बूढ़ों ने देखा, उसी के साथ शादी कर दी जाती थी। न तो लड़का और न ही लड़की एक दूसरे से मिल पाते थे तथा एक दूसरे को जान पाते थे। मगर समय बदल गया है, अब माता-पिता की सलाह के साथ-साथ शादी करने वाले व्यक्ति एक-दूसरे को जान लेते हैं। उनका मानना है कि जिसके साथ हमें पूरी जिंदगी रहना है, उसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसलिए सगाई को रिश्ता तथा गोद भराई का नाम दे दिया गया। यहां दोनों परिवार मिलकर लड़के और लड़की को एक-दूसरे से परिचित कराते हैं तथा स्वयं भी परिचित होते हैं। इसी बिंदु पर यह निश्चित किया जाता है कि शादी होगी या नहीं। अगर लड़का या लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तो रिश्ता होने के साथ-साथ गोद भराई की भी रस्म को पूरा कर लिया जाता है।

गोद भराई के उत्सव में लड़का एवं लड़की एक दूसरे को अंगूठी बनाते हैं तथा मिठाई खिलाते हैं। यहां दोनों परिवार एक दूसरे को कपड़े तथा मिठाइयां भी देते हैं। कहीं-कहीं दावत का भी कार्यक्रम किया जाता है। यह परिवार की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है।

(3) लगुन/तिलक का कार्यक्रम

अब से कई सालों पहले यह कार्यक्रम शादी से 7 दिन, 9 दिन तथा 11 दिन पहले किया जाता था। यहां लड़की के तरफ से नई तथा लड़की का बहनोई या फूफा मिठाई तथा फलों को लेकर लड़के वाले के घर जाते थे। मगर आज जमाना बदल गया है, अब यह कार्यक्रम शादी से 2 दिन या 1 दिन पहले किया जाता है तथा इसी दिन शादी में मिलने वाला सामान अर्थात दहेज को भी लड़के वाले को दे दिया जाता है। इस दिन लड़की का भाई अपने बहनोई अर्थात जीजा का तिलक करता है तथा उसे मिठाई खिलाता है। लगुन समाप्त होने के बाद बतासे या लड्डू बांटने की रस्म निभाई जाती है तथा मेहमानों को खाना खिलाया जाता है एवं एक-दूसरे से परिचित कराया जाता है। उसके बाद लड़की वाले अपने घर को वापस चले जाते हैं।

(4) घुर-चढ़ाई/घोड़ी पर बैठना

बारात के निकलने से पहले घुर-चढ़ाई का कार्यक्रम होता है, जिसमें दुल्हा अपने परिवार जनों को लेकर मंदिर में जाता है तथा पूजा-पाठ करता है। एवं भगवान का आशीर्वाद लेकर दुल्हन के घर बारात लेकर जाता है। बरातघर में (दुल्हन के घर) बारात पहुंचने पर सभी बारातियों को भोजन कराया जाता है।

(5) चढ़त/बारात चढ़ाई

यहां दूल्हे को घोड़ी पर बैठाकर बारात चढ़ाई जाती है तथा सभी बराती खुश होकर डांस करते हैं। यह कार्यक्रम बैंड बाजे के साथ किया जाता है। बारात चढ़ने के बाद सभी बरातियों का स्वागत किया जाता है एवं दूल्हे के साथ कुछ रस्में निभाई जाती है।

(6) बारद्वारी का कार्यक्रम

यह कार्यक्रम बहुत कम समय के लिए किया जाता है, इसके दौरान दूल्हे को मिठाई खिलाई जाती है तथा उपहार दिए जाते हैं। दुल्हन के परिवार के सभी सदस्य दूल्हे का स्वागत करते हैं।

(7) जयमाला/वरमाला का कार्यक्रम

प्राचीन काल से चला आ रहा जयमाला का कार्यक्रम आज भी उन्हें रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यहां दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं। तथा परिवार के सभी सदस्य दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद के साथ-साथ उपहार एवं पैसे भी देते हैं।

(8) फेरे/कन्यादान

फेरे शादी के कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। यही वह बिंदु है जो हिंदू धर्म की पहचान कराता है। हिंदू धर्म के अनुसार, बिना फेरों के शादी मान्य नहीं है। इस कार्यक्रम के दौरान दूल्हा-दुल्हन अग्नि के चारों तरफ सात फेरे लेते हैं एवं अग्नि को साक्षी मानकर यह शपथ लेते हैं कि वे एक दूसरे का हमेशा साथ देंगे। इसके साथ-साथ बहुत से वचन लिए जाते हैं। पूरी शादी के दौरान फेरे फिरना एकमात्र ऐसी संस्कृति है जिसमें प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसके बिना शादी अधूरी मानी जाती है तथा इसी कार्यक्रम में हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद लिया जाता है एवं उनकी पूजा की जाती है। यही एक ऐसा बिंदु है जो हिंदू धर्म को सभी धर्मों से अलग रखता है।

(9) विदाई

शादी का सबसे आखरी पहलू लड़की का विदाई होना है। यहां सभी की आंखें नम होती है, क्योंकि लड़की अपने घर को छोड़कर ससुराल को जाती है एवं एक नया जीवन शुरु करते हैं। इस दौरान दुल्हन के पिता का दिल सबसे ज्यादा नम होता है। इस दर्द को सिर्फ वही महसूस कर सकता है जिसकी बेटी दुल्हन बन कर गई हो।

दोस्तों शादी वह एहसास है जो खुशियों के साथ शुरू होता है और खुशी-खुशी में आंखों को नम कर देता है।

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