अमेरिका भू-राजनीतिज्ञ स्पाइकमैन ने ‘Geography of Peace’ पुस्तक में 1944 में सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया जो रिमलैण्ड सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। यह पुस्तक मैकिन्डर के हृदय स्थल सिद्धांत की व्याख्या के लिए लिखी गयी थी। जिसमें स्पाइकमैन ने मैकिन्डर के हृदय स्थल सिद्धांत को पूर्णतः नकारते हुए आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र की स्थिति को भूसामरिक दृष्टिकोण से विश्व का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बताया। इस पेटी को स्पाइकमैन ने आंशिक रूप से स्थलीय एवं आंशिक रूप से समुद्री पेटी के रूप में वर्णन करते हुए इसे उपान्त क्षेत्र कहा।
रिमलैण्ड के अंतर्गत बाल्टिक सागर, कैस्पियन सागर, काला सागर, सामुद्रिक यूरोप, पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं चीन को सम्मिलित किया गया। स्पाइकमैन के अनुसार, यह क्षेत्र हृदय स्थल की तुलना में अधिक भूसामरिक महत्व का है। इसका मुख्य कारण स्थलीय शक्ति की तुलना में सामुद्रिक शक्ति का अधिक सामरिक महत्व होना है। पुनः मैकिन्डर का हृदय स्थल प्रतिकूल जलवायु एवं विरल जनसंख्या का क्षेत्र है, जिसकी केंद्रीय स्थिति यूरेशिया में हो सकती है। लेकिन पूरे विश्व के संदर्भ में यह सामरिक स्थल नहीं है।
मैकिन्डर के हृदय स्थल में निम्न समस्याएं है।
- प्रतिकूल जलवायु का क्षेत्र
- क्षेत्र की तुलना में विरल जनसंख्या
- उत्तर में दलदली एवं मरुस्थलीय क्षेत्र
- बंद समुद्री प्रवेश द्वार
- तीन ओर से प्रकृति अवरोधों से घिरा होना
उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त स्पाइकमैन ने हृदय स्थल के संसाधन, सामर्थ्य की स्थिति को भी नकार दिया। मैकिन्डर की मानता थी कि वृहद स्थलीय क्षेत्र होने के कारण रेलवे और सड़क परिवहन में होने वाला तीव्र विकास हृदय स्थल को उन्नत संचार सुविधा प्रदान करेगा। पुनः घास के मैदानों के संसाधनों का उपयोग कर उन्नत अर्थव्यवस्था को विकसित किया जा सकता है। स्पाइकमैन ने इन दोनों अवधारणाओं को नकार दिया और कहा कि स्थलीय संचार की व्यवस्था की तुलना में समुद्र तटीय संचार यातायात अधिक विकसित होगा। क्योंकि मैकिन्डर का हृदय स्थल तीन तरफ यातायात विकास को अवरुद्ध करने वाले अवरोधों से घिरा हुआ है अतः रेलवे और सड़क परिवहन में होने वाले विकास के बावजूद इसकी संचार व्यवस्था समुद्र तटीय देशों की तुलना में कम विकसित होगी साथ ही जलवायविक कठिनाइयों के कारण उन्नत आर्थिक स्थिति को भी इन्होंने नकार दिया।
इस तरह स्पाइकमैन ने हृदय स्थल के सामरिक महत्व को अस्वीकार करते हुए रिमलैण्ड को विश्व का वास्तविक हृदय स्थल कहा।
इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- स्थलीय और समुद्री दोनों सुविधाओं के कारण इसका विशिष्ट भूसामरिक महत्व स्थापित हो जाता है।
- समुद्री मार्ग से यह बाहरी व्यापार को बढ़ा सकता है जबकि स्थलीय भाग में आंतरिक संचार, यातायात का विकास कर आंतरिक प्रशासन चला सकता है।
- यहां विश्व की दो तिहाई जनसंख्या निवास करती है।
- यहां विश्व का सर्वाधिक प्राकृतिक गैस, कोयला, लोहा जैसे प्रमुख धात्विक एवं अधात्विक खनिज पाए जाते हैं।
- इसके पश्चिमी भाग में उन्नत तकनीक विकसित है जिसका उपयोग प्रौद्योगिकी विकास के लिए किया जा सकता है।
- इसे पर्याप्त समुद्री संसाधन का लाभ प्राप्त होगा।
- यहां की जलवायु एवं भौगोलिक स्थितियां मानवीय अधिवास के अनुकूल हैं।
उपरोक्त सुविधाओं के कारण रिमलैण्ड, हृदय स्थल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। साथ ही हृदय स्थल की घेराबंदी इस क्षेत्र के 3 तरफ से कर सकते हैं अर्थात हृदय स्थल पर सामरिक दबाव एवं सैन्य कार्यवाही की जा सकती है।
इन कारणों से स्पाइकमैन ने यह कहा कि रिमलैण्ड के देश अन्य शक्तिशाली देशों को आकर्षित कर सकते हैं क्योंकि विश्व में नियंत्रण स्थापित करने के लिए इस क्षेत्र पर नियंत्रण आवश्यक है। अतः आवश्यकता है कि संपूर्ण उपांत क्षेत्र को सामूहिक शक्तियों के नेतृत्व में हृदय स्थल विरोधी शक्तियों के रूप में एकजुट किया जाए। इस अवस्था में मैकिण्डर के हृदय स्थल को बाह्य विस्तार का अवसर नहीं मिलेगा और इसकी भू सामरिक क्षमता का विकास नहीं हो पाएगा।
इस नए विचार के अंतर्गत रिमलैण्ड को विश्व का वास्तविक हृदय स्थल कहा और मैकिण्डर के हृदय स्थल के भूसामरिक वर्चस्व को पूर्णतः नकारते हुए एक नए भू-सामरिक सूत्र का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार – जो देश उपान्त क्षेत्र या रिमलैण्ड पर नियंत्रण रखता है, वह यूरेशिया पर शासन करता है और जो यूरेशिया पर नियंत्रण रखता है वह विश्व के भाग पर नियंत्रण रखता है।
इस भू-सामरिक विचार का सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका की विदेश नीति पर पड़ा था। अमेरिका ने उपरांत क्षेत्रों में इसके बाद ही कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सामरिक सुरक्षा समझौते किए, जिसके द्वारा रूस विरोधी सशक्त गुट या खेमे का निर्माण किया गया। इसी के तहत नाटो संधि की गई जिसमें रिमलैण्ड के देश ही महत्वपूर्ण थे। शक्तिकाल के समय और वर्तमान समय में भी यूएसए की नीति इस क्षेत्र पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव बनाए रखने की है। विश्व में हुई सामरिक गतिविधियों में यूएसए का स्पष्ट समर्थन किसी एक देश को प्राप्त होता रहा है। जैसे दक्षिण कोरिया, दक्षिण वियतनाम को समर्थन, चीन के खिलाफ ताइवान को समर्थन, भारत के खिलाफ पाकिस्तान को समर्थन, खाड़ी युद्ध के समय इराक के खिलाफ ईरान को समर्थन, इसके उदाहरण हैं। पुनः युगोस्लाविया पर नाटो की प्रत्यक्ष कार्यवाही। 2001 में अफगानिस्तान पर हमला, 2003 में इराक पर सैन्य कार्रवाई और तख्तापलट यूएसए के इस क्षेत्र पर अपना सामरिक दबदबा बनाए रखने की नीति है।
वर्तमान में भारत से परमाणु समझौता एवं ईरान के प्रति कठोर नीति नवीन भू-राजनीति को ही बताते हैं।
हिंद महासागर में डियोगार्सिया द्वीप पर USA का सैन्य अड्डा, दक्षिण एशिया में उसकी सामरिक उपस्थिति को बनाए रखता है। खाड़ी युद्ध में इसका व्यापक प्रयोग हुआ था। बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियों में सोवियत संघ के विघटन के बाद USA एकमात्र विश्व शक्ति के रूप में परिभाषित है। लेकिन रूस ने युगोस्लाविया पर नाटो का आक्रमण का तीव्र विरोध कर तथा भारत व चीन, जैसे उपान्त क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों के साथ आर्थिक सामाजिक संबंधों को बचाए रखने और बढ़ाने की नीति उपांत क्षेत्र में रूस की उपस्थिति बनाए रखने का ही प्रयास है। इस तरह रिमलैण्ड वर्तमान समय में भी विश्व का हृदय स्थल बना हुआ है। हालांकि रिमलैण्ड हृदय स्थल सिद्धांत की तुलना में आर्थिक भू-सामरिक महत्व का है, लेकिन कुछ कारणों से इसकी आलोचना भी की जाती है।
डी.सेवेरस्की ने कहा कि वर्तमान युग में विश्व का प्रत्येक देश व भूसामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि युद्ध तकनीक में तीव्रता से परिवर्तन हुआ है। इस सिद्धांत की भी आलोचना की गई, लेकिन वैश्विक परिस्थितियों में जहां सामरिक गुटों की तुलना में आर्थिक गुटों का महत्व स्थापित हो चुका है। वहां अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तीव्रता से बदलाव आ रहा है। लेकिन वर्तमान में भी उपांत क्षेत्र में प्रतिबंधात्मक राजनीति के अंतर्गत अपना प्रभाव बनाए रखने की नीति तथा बाजार के रूप में उपयोग करने की नीति के द्वारा भी विकसित देश दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया एवं पश्चिम एशिया के संदर्भ में ही अपनी सामरिक और आर्थिक नीतियों का निर्धारण करते हैं। स्पष्ट है कि उपांत क्षेत्र की महत्ता वर्तमान में भी बनी हुई है। वर्तमान में शक्ति संतुलन एवं सामरिक संबंधों में गत्यात्मक परिवर्तन हुआ है जिसमें समुद्री और स्थलीय शक्ति की तुलना में वायुशक्ति अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। अतः केवल स्थलीय एवं सामुद्रिक शक्ति के कारण रिमलैण्ड को सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र कहना उचित नहीं है।
- परमाणु तकनीक पर आधारित युद्ध, रसायनिक युद्ध, स्टारंवार जैसे युद्ध तकनीक स्थल पर किसी भी ह्रदय स्थल की स्थिति को नकारता है।
- रिमलैण्ड में अनेक देश हैं जो राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक दृष्टि से विभेदता वाला है। अतः सभी को एक शक्ति के रूप में संगठित करना संभव नहीं है।
- इस क्षेत्र में दोबारा आक्रमण संभव है एक स्थलीय क्षेत्र से और दूसरा बाह्य शक्तियों द्वारा। अतः रिमलैण्ड को सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र नहीं कहा जा सकता।
मेनिंग ने 1956 में Heart Land and Rimland of Europian History रिमलैण्ड को तीन भागों में बांटा।
- आंतरिक रिमलैण्ड (पूर्वी यूरोप, चीन एवं कोरिया)
- बाह्य रिमलैण्ड (पश्चिमी यूरोप एवं पश्चिमी एशिया)
- तटस्थ राज्य (भारत एवं गुटनिरपेक्ष देश)
मेनिंग के अनुसार, इन तीनों का संबंध परस्पर बदलता रहता है। अतः इन्हें एक शक्ति के अंतर्गत रखा जाना उचित नहीं है।
इस तरह कई कारणों से स्काइमैन के रिमलैण्ड सिद्धांत की आलोचना की गई है, लेकिन इसके बावजूद रिमलैण्ड, अपनी महत्ता वर्तमान में भी बनाए हुए हैं।