पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूरज है, और सूरज से लघु तरंग के रूप में सूर्य की किरणें पृथ्वी तल तक लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड की दर से आती है। सौर्यिक विकिरण का वायुमंडल एवं पृथ्वी द्वारा अवशोषण होता है। जिससे पृथ्वी एवं वायु मंडल में ताप संतुलन बना रहता है। पृथ्वी और वायुमंडल सौर्यिक ऊर्जा का जिस मात्रा में अवशोषण करता है, उसके बराबर मात्रा ही अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। इस तरह पृथ्वी और वायुमंडल को प्राप्त सौर्य ऊर्जा की मात्रा एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है। अर्थात प्राप्त सौर्य ऊर्जा और उत्सर्जित ऊर्जा में संतुलन बना रहता है। इसे उसमें बजट कहते हैं।
वायुमंडल एवं पृथ्वी पर तापीय स्थिति, तापीय संतुलन एवं अनुकूल अधिवासीय वातावरण के लिए ऊष्मा का संतुलित रूप से प्राप्त होना आवश्यक है। इसी संदर्भ में विभिन्न जलवायु वेत्ताओं द्वारा ऊष्मा बजट के मध्य अवशोषित एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं से निर्धारित होती है, अतः उष्मा बजट का निर्धारण पूर्णतया अनुमान पर आधारित है। इसी कारण विभिन्न जलवायु वेत्ताओ के ऊष्मा बजट में भिन्नता पाई जाती है।
हालांकि समान रूप से स्वीकार किया गया है कि पृथ्वी पर सूर्य से प्राप्त उर्जा व उत्सर्जित ऊर्जा में पूर्णता संतुलन पाया जाता है। पृथ्वी सूर्य ऊर्जा का 51 प्रतिशत प्राप्त करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 48 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त करता है एवं 48 प्रतिशत ही उत्सर्जित भी करता है। इसी प्रकार पृथ्वी एवं वायुमंडल को ऊष्मा की प्राप्ति होती रहती है और ताप संतुलन बना रहता है।
सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा का 35 प्रतिशत भाग शून्य (वायुमंडल) में वापस लौटा दिया जाता है। शेष 65 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत वायुमंडल का जलवाष्प, बादल, धूलकण तथा कुछ स्थायी गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तरह केवल 51 प्रतिशत ऊर्जा ही पृथ्वी को प्राप्त हो पाती है। इस 51 प्रतिशत ऊर्जा का 34 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है तथा शेष 17 प्रतिशत विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51 प्रतिशत ऊष्मा ही पृथ्वी को सही रूप में प्राप्त होती है। पृथ्वी से ऊष्मा की यही मात्रा उत्सर्जित होना आवश्यक होता है। यदि पृथ्वी को प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा से अधिक उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में कमी आने लगेगी। ठीक इसी तरह यदि प्राप्त ऊर्जा की संतुलन में तुलना में कम उत्सर्जन होता है तो धरातल के तापमान में वृद्धि हो जाएगी। अतः पृथ्वी को प्राप्त एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा बराबर होती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। यह स्थिति ऊष्मा बजट कहलाती है।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट :
प्रवेशी सौर्यिक विकिरण की मात्रा = 100 %
- प्रकीर्णन एवं परावर्तन द्वारा क्षय ऊर्जा = 35 %
- बादलों से परावर्तित – 27 %
- धरातल से परावर्तन – 2 %
- शून्य में वायुमंडल द्वारा प्रकीर्णन – 6 %
- वायुमंडल द्वारा अवशोषण = 14 %
- पृथ्वी को प्राप्त ऊर्जा की मात्रा = 51 %
- सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त – 34 %
- विसरित दिवा प्रकाश से प्राप्त – 17 %
वायुमंडल की ऊष्मा बजट सारणी :
- प्रवेशी सौर्यिक विकिरण का प्रत्यक्ष अवशोषण – 14 प्रतिशत
- बर्हिगामी पार्थिव विकिरण द्वारा प्राप्त – 34 प्रतिशत
कुल प्राप्त ऊर्जा = 48 प्रतिशत