कल्याणकारी उपागम का तात्पर्य | कल्याणकारी उपागम का विकास

प्रतिक्रियावादी भूगोल के अंतर्गत कई दृष्टिकोण विकसित हुए और भूगोल के अध्ययन में मानवीय समस्याओं के निदान अर्थात मानवीय कल्याण जैसी अवधारणाएं स्थापित हुई। कल्याणकारी उपागम इसी प्रकार का एक नवीन उपागम है। कल्याणकारी भूगोल की स्थापना स्मिथ महोदय द्वारा की गई थी। उन्होंने 1971 में An Introduction to the Geography of Social Wellbeing नामक पुस्तक लिखी थी जिसमें मानव के कल्याण एवं मानव के जीवन स्तर की स्थिति का आकलन किया गया था। इस पुस्तक में जीवन स्तर की सूचकों को विकसित किया गया जिसमें निम्न तथ्यों पर बल दिया गया।

  1. व्यक्ति का जीवन स्तर किसी क्षेत्र विशेष के वातावरण और आर्थिक राजनीतिक निर्णयों का परिणाम है।
  2. विभिन्न राज्य एवं प्रदेशों में जीवन स्तर के सूचक एक समान नहीं होते।
इस तरह स्मिथ ने जीवन स्तर के कारणों के विश्लेषण पर बल दिया ताकि जीवन स्तर के विषमताओं को समाप्त किया जा सके। हालांकि अर्थशास्त्रियों द्वारा भी इस तरह के अध्ययन किए जाते थे, लेकिन जीवन स्तर की विषमता और प्रादेशिक विषमताओं के कारणों पर विशेष बल नहीं दिया जाता था। लेकिन स्मिथ के कार्यो ने कल्याणकारी भूगोल को नए उपागम के रूप में स्थापित कर दिया।
स्मिथ के कार्यों का स्रोत ब्रेसी महोदय द्वारा किया गया कार्य था। ब्रेसी ने 1952 में ही महत्वपूर्ण विचार दिए थे। उन्होंने एक छोटे प्रदेश को केंद्रित कर एक पुस्तक लिखी थी सोशल प्रोविजन इन रूलर विल्टसीन। इस पुस्तक में इन्होंने भार तकनीक का प्रयोग किया। इन्होंने जीवन स्तर के निर्माण निर्धारण में गुणात्मक चरों को निर्धारित किया। जिसका आधार सामाजिक सुविधाओं में भिन्नता था।
स्मिथ ने सामाजिक सुविधाओं के परिवर्तन के साथ ही जीवन स्तर में परिवर्तन की मौलिक अवधारणा को स्वीकार करते हुए जीवन स्तरों के चरों के निर्धारण पर बल दिया। इस तरह जीवन स्तर प्रदेश के निर्धारण की बात कही और इसकी पहचान की। वर्तमान में विकासशील देश जहां जीवन स्तर संबंधी भी समझाएं अधिक पाई जाती हैं। वहां जीवन स्तर के चरों के निर्धारण के फलस्वरुप जीवन स्तर में सुधार के लिए विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
इस तरह कल्याणकारी उपागम को मानव भूगोल में विशिष्ट भूगोल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
कल्याणकारी भूगोल को परिभाषित रूप से ब्रिटिश भूगोलवेत्ता S.K Nath ने सर्वप्रथम प्रस्तुत किया। इनके अनुसार कल्याणकारी भूगोल, भूगोल का वह अंग है, जो समाज के कल्याण हेतु किए गए कार्यों पर विभिन्न भौगोलिक नीतियों के संभावित प्रभाव का अध्ययन करता है। भौगोलिक नीतियों के अंतर्गत इन्होंने विकास की नीतियों को भौगोलिक तथ्यों के संदर्भ में प्रस्तुत किया। परेटो ने 1973 में ही कल्याणकारी उपागम के विकास के लिए विभिन्न समूहों की आय के मध्य तुलनात्मक और अनुपातिक सह संबंधों पर बल दिया।
पुनः स्मिथ महोदय ने 1977 में ह्यूमन जियोग्राफी वेलफेयर अप्रोच पुस्तक लिखी जिसमें कल्याणकारी भूगोल के अध्ययन के चार मुख्य उद्देश्य बताएं।
    1. कौन अर्थात कल्याण का लाभ किसे प्राप्त हो। यह व्यक्ति, समुदाय या राज्य हो सकता है।
    2. क्या अर्थात पिक विकास किस प्रकार का हो और कल्याण के लिए क्या किया जाना चाहिए।
    3. कहां अर्थात लाभ किस तरह पहुंचाया जाए।
    4. कैसे अर्थात लाभ किस प्रकार पहुंचाया जाए।
उपरोक्त तथ्यों को इन्होंने एक मॉडल के द्वारा भी बताया है।

स्मिथ के कार्यों को भूगोल में पर्याप्त मान्यता प्राप्त हुई है, और कल्याणकारी उपागम भूगोल का प्रमुख उपागम के रूप में स्थापित हो गया है। विकसित एवं विकासशील देशों के नियोजकों ने भी कल्याण योजनाओं के निर्धारण में इसका उपयोग किया है। बेरी और हार्टशान ने भी स्मिथ के कार्यों का समर्थन किया है।