मानवतावादी भूगोल का क्या अर्थ है?

मानववादी भूगोल की स्थापना का श्रेय तुआन महोदय (1976) को है। इन्होंने ह्यूमेनिस्टिक ज्योग्राफी नामक पुस्तक में मानववादी भूगोल को एक नवीन शाखा के रूप में मान्यता दी। इसके अंतर्गत भूगोल को मानववादी और व्यवहारिक भूगोल के रूप में स्थापित करने का उद्देश्य रखा गया है। व्यवहारिक भूगोल के अंतर्गत ही मानववादी दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया गया था, जिसने मानववादी भूगोल को एक विषय के रूप में स्थापित कर दिया गया।

1978 में डाउन्स एवं मेयर ने व्यवहारिक चिंतन धारा के अंतर्गत भूगोल को दो प्रकार में विभाजित किया।
  1. अनुभव आश्रित व्यावहारवादी अध्ययन
  2. मानववादी व्यापारिक अध्ययन
अनुभविक व्यवहारवादी अध्ययन में सर्वेक्षण एवं प्रमाणों के आधार पर विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है, जबकि मानववादी भूगोल में मानव के निर्णयों के कारण ही जगह वर्तमान चिंतन धारा, सोच एवं रुझान को समझने का प्रयास किया जाता है, ताकि वातावरण के प्रति मानसिक प्रतिबोधन का सही अनुमान लगाया जा सके। स्पष्टत: मानववादी भूगोल, मानव भूगोल के व्यावहारवादी उपागम का ही विशेष अंग है, जिसमें वस्तु स्थिति के बारे में मानव की वर्तमान प्रतिक्रिया, चिंतन, आचार-विचार एवं प्रतिबोधन पर बल दिया गया जाता है। भूगोल में मानववादी भूगोल या मानववादी दृष्टिकोण का विकास फ्रांस में वाइडल डी ला ब्लाश द्वारा मानव केंद्रित अध्ययन के समय से ही प्रारंभ हो चुका था। इन्होंने Geography Human नामक पुस्तक में मानवीय क्रियाकलापों को प्रमुखता दी थी, लेकिन ला ब्लाश के संभववादी विचारधारा को ही प्रमुखता या महत्व प्राप्त हुआ।
तुआन को ही मानववादी भूगोल का संस्थापक कहा जाता है। तुआन ने मानव भूगोल के वर्णात्मक भूगोल के रूप में स्थिति की प्रतिक्रिया स्वरूप मानववादी दृष्टिकोण की स्थापना पर बल दिया। क्योंकि वर्णात्मक मानव भूगोल में मानववादी दृष्टिकोण की स्पष्ट कमी थी जिसमें तथ्यों की व्याख्या मानववादी दृष्टिकोण से नहीं हो पा रही थी।
इसी कारण तुआन मानव भूगोल के अध्ययन के लिए एक नवीन उपागम की आवश्यकता पर बल दिया ताकि मानव जीवन की घटनाओं एवं संबंधित तथ्यों का मानववादी विश्लेषण हो सके। इनके अनुसार मानव का जीवन विभिन्न घटनाओं से भरा होता है जिसे समझने, महत्व को जानने और वास्तविक अर्थ निकालने के लिए मानववादी विश्लेषण आवश्यक है।
इस तरह मानववादी उपागम के अंतर्गत मानव को केंद्र में रखकर जीवन की घटनाओं का विश्लेषण, मानवीय चेतना, जागरूकता, क्षमता एवं रचनात्मक गुणों के आधार पर किया जाता है। इस तरह के विचार व्यवहारात्मक उपागमन के अंतर्गत कर्क, वोल्पर्ट बोल्डिंग जैसे भूगोलवेत्ताओं ने भी दिया था।
गोल्ड एवं ह्ववाइट का मेंटल मैप नामक पुस्तक में भी मानवीय प्रतिबोधन अर्थात मानसिक मानचित्र को महत्व दिया गया था। लेकिन एक नए उपागम के रूप में मानववादी भूगोल की स्थापना तुआन महोदय द्वारा ही हुई।
तुआन ने मानववादी भूगोल के आधारभूत विषय वस्तु का निर्धारण किया जो निम्नलिखित है।
  1. मानव उत्तरजीविता में भौगोलिक ज्ञान का योगदान।
  2. मानव आचरण में राज्य क्षेत्र का योगदान तथा स्थानों की पहचान में मानवीय आचरण का योगदान।
  3. निजी जीवन और भीड़भाड अर्थात सामूहिक जीवन के मध्य अंतर संबंधों का मानवीय विश्लेषण।
  4. जीविका के साधन पर सूचनाओं का प्रभाव।
  5. मानव के कार्य पर धर्म का प्रभाव।
उपरोक्त तत्वों में तुआन ने मानववादी उपागम के विकास में राज्य क्षेत्र और धर्म को भी सम्मिलित किया। क्योंकि वर्तमान में व्यक्ति के जीवन की घटनाओं पर राज्य की नीतियां राज्य के कार्य एवं संबंधित धर्म का प्रभाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। तुआन महोदय ने मानववादी विषय वस्तुओं के विश्लेषण के लिए अप्रत्याशित उपागम को भी विकसित किया। सर्वप्रथम कर्क ने आचारपरक भूगोल के विशेषण के लिए अप्रत्याशित उपागम शब्द का प्रयोग किया था।
लेकिन मानववादी भूगोल में इसका प्रयोग तुआन महोदय ने प्रमुखता से किया। इसके अनुसार किसी व्यक्ति के अध्ययन के क्रम में भी विश्व की घटनाओं के सापेक्ष व्यक्ति का अध्ययन आवश्यक है। क्योंकि मनुष्य का अस्तित्व केवल व्यक्तिगत या एकाकी रूप में नहीं है और विश्व की घटनाएं, विश्व की चिंतन धाराएं व्यक्ति के विचारों और क्रियाकलाप को उत्पन्न करती है। व्यक्ति सूचनाओं एवं अनुभवों का प्रयोग करता है जो व्यक्ति को समाज या विश्व प्राप्त होता है।
स्पष्टत: मनुष्य के जीवन की घटनाएं आस-पास के भौगोलिक तत्वों के साथ ही विश्व के भौगोलिक वातावरण से प्रभावित होती हैं तथा विश्व से प्राप्त सूचनाएं एवं अनुभव मनुष्य के क्रियाकलापों चिंतन एवं जीवन की घटनाओं को भी निर्धारित करता है। तुआन के कार्यों के अतिरिक्त लियोनार्ड गुल्के ने आदर्शवादी उपागम का प्रयोग किया। इनके अनुसार मनुष्य के जीवन की घटनाओं के लिए विश्लेषण के लिए उनका अनुभव आवश्यक है। यह किसी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र पर भी लागू होता है।
लियोनार्ड गुल्के ने अनुभवों के लिए ऐतिहासिक स्रोतों को सर्वप्रमुख माना है। अत: गुल्के का विचार ऐतिहासिक उपागम के रूप में भी जाना जाता है। जर्मनी में हर्में न्यूटिक उपागम उनका विकास मानववादी भूगोल के अंतर्गत हुआ। इस उपागम के अनुसार व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक घटनाओं का कारण होता है, जिसकी व्याख्या और स्पष्टीकरण आवश्यक है। इस तरह कारणों की व्याख्या और स्पष्टीकरण से किसी भी समाज या राज्य के मानववादी दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। स्पष्टत: मानववादी भूगोल का विकास मानव भूगोल के ही अंतर्गत मानवीय घटनाओं के विश्लेषण, मानव के आचरण और अनुभव के आधार पर विकास और कल्याण करना है। इस दृष्टिकोण से मानववादी भूगोल को एक अलग उपागम के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है और व्यवहारवादी उपागम के अंतर्गत ही इसे विशेष बल भी मिला है।