प्रादेशिक संश्लेषण को नया स्वरूप देते हुए होमेयर ने पृथ्वी को चार स्तरीय प्राकृतिक खंड स्थान विशेष, प्रदेश, जिलों का समूह तथा स्थल खंड में विभाजित किया। प्रादेशिक संकल्पना के विकास का प्रारंभ वारेनियस द्वारा भूगोल को दो भागों में विभाजित करके प्रारंभ हुआ। जिन्हें क्रमबद्ध भूगोल एवं विशिष्ट भूगोल की संकल्पना दी गई। इसका दूसरा रूप सामान्य भूगोल एवं प्रादेशिक भूगोल के रूप में हम्बोल्ट एवं रिटर द्वारा प्रस्तुत किया गया। जहां सामान्य भूगोल सामान्य नियमों की व्याख्या करता है, वहीं विशिष्ट भूगोल विभिन्न प्रदेशों के विशिष्ट स्वरूप के अध्ययन को बताता है। वैरेनस के कार्यों के बाद फ्रांस, जर्मनी, यूएसए व ब्रिटेन में प्रादेशिक अध्ययन क्रमस: विकसित होता रह।
प्रादेशिक विश्लेषण (Regional Synthesis) क्या है?
प्रदेश की संकल्पना भूगोल की प्रारंभिक संकल्पना रही है। हालांकि प्रदेशों के निर्धारण में नए तथ्य जुड़ते चले गए। प्राचीन काल में स्ट्रेबो ने अनुभव एवं अन्य विद्वानों के कार्यों को आधार बनाकर विश्व का प्रादेशिक भूगोल लिखा था। जिसका आधार राजनीतिक सीमाएं थी जो 18वीं शताब्दी तक बना रहा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद विकसित देशों के औद्योगीकरण का प्रभाव विकासशील देशों पर भी पड़ा। परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रादेशिक संकल्पना के स्वरूप में परिवर्तन हुआ। प्रदेश के इस बदले स्वरूप को ही ब्रायन बेरी द्वारा प्रादेशिक संश्लेषण की संज्ञा दी गई।
हंबोल्ट एवं रिटर के बाद ब्लाश ने बताया कि प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के तथ्य एक दूसरे से अविभाज्य हैं तथा मानव एवं प्रकृति के परस्पर संबंधों द्वारा विशिष्ट भूतलीय स्वरूप का निर्धारण होता है। अतः स्थलीय लक्षणों के अध्ययन में मानवीय क्रियाकलापों को भी महत्व देना आवश्यक है। अंत में भूगोल में प्रदेश की संकल्पना में क्षेत्रीय प्राकृतिक एवं मानवीय लक्षणों का अध्ययन किया जाने लगा तथा इसी संदर्भ में एक विशिष्ट प्रदेश की अन्य प्रदेश से भिन्नता भी स्पष्ट हुई विशिष्टता का सही निर्धारण करने पर ही प्रादेशिक विभाजन की सफलता निर्भर करती है। हालांकि विश्व में प्रादेशिक संकल्पना के विकास के निर्धारण में ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला समाज ही मुख्य आधार था।
ब्लाश के अनुसार एक प्रदेश के ग्रामीण लक्षणों वाले स्थानीय समाज में खाद्यान्न, अधिवास, ऊर्जा, निर्माण, यत्र इत्यादि अधिकांश साधनों की कमी उस प्रदेश को स्वावलंबी बनाती है। लेकिन औद्योगिक क्रांति के करण नवीन समाज में आत्मनिर्भरता के करण अंतर बढ़ता चला गया। अंत में ब्लाश ने स्वीकार किया की वर्तमान स्वरूप में प्रदेशों की अवधारणा का सीधा संबंध उद्योगों एवं औद्योगिक क्रांति से है। सभी विकसित देशों के औद्योगीकरण का प्रभाव अंत विकसित एवं विकासशील देशों पर देखने को मिला। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसमें निरंतर विकास एवं परिवर्तन होते रहे।
इस तरह प्रादेशिक भूगोल में सभी प्रकार के क्षेत्रीय विविधताओं के ज्ञान को संगठित कर उन्हें सामान्य इकाइयों एवं उप इकाइयों में विभाजित किया जाता है। साथ ही इन सभी कारणों का संबंध पृथ्वी से बनाए रखा जाता है। इसमें प्रदेश के इकाई विशेष के अंत: संबंधित तत्वों या लक्षणों की समरूपता का संश्लेषण एवं विश्लेषण होता है।
तृतीय विश्व युद्ध के बाद प्रादेशिक संकल्पना के स्वरूप में परिवर्तन हुआ है। ब्रायन बेरी ने प्रदेश के स्वरूप को प्रादेशिक संश्लेषण की संज्ञा दी है। वर्तमान में प्रदेशों के निर्धारण में विभिन्न आधारों को स्वीकार किया जा चुका है। तथा नए आधार में विकास के रूप में प्रयोग हो रहे हैं। तंत्र विश्लेषण का प्रयोग, गणितीय विधियों का प्रयोग, अनुभाविक विधियों का प्रयोग, प्रदेशों के निर्धारण में हो रहा है। विभिन्न उद्देश्यों के लिए विशिष्ट नियोजन के लिए प्रदेशों का निर्धारण हो रहा है।
अतः: प्रदेश की संकल्पना का व्यापक अर्थ में प्रयोग हो रहा है और प्रदेश कोई स्थान विशेष के रूप में स्थैतिक चर के रूप में नहीं, बल्कि गत्यात्मक चर के रूप में तथा संकल्पना के रूप में स्वीकार किया जा चुका है।
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