क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना भूगोल की प्रमुख संकल्पना है। इस संकल्पना के अनुसार, भूगोल क्षेत्रीय विभिन्नताओं का विषय है, जिसमें क्षेत्रों की विभिनता के साथ ही उनके अंतर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न प्रदेशों में ये विभिन्नताएं भौतिक (जलवायु, स्थलाकृतिक) एवं मानवीय (मानव स्वरूप) दोनों ही दृष्टिकोण से पायी जाती है।
अतः भूगोल के अध्ययन के लिए इन विभिन्नताओं को समझना आवश्यक है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन अंतर संबंधों के आधार पर किया जा सके। क्षेत्रीय विविधता की संकल्पना का श्रेय हार्टशोन को जाता है। जिन्होंने भूगोल को क्षेत्रीय विभिन्नताओं के अध्ययन का विज्ञान माना। लेकिन क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना का विकास रिचथोपन, रिटर एवं हंबोल्ट, हेटलर, कार्ल सावर तथा ब्लाश आदि भूगोलवेत्ताओं के द्वारा विभिन्न विचारों के साथ क्रमिक रूप से दिया।
पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न क्षेत्र प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के अनुसार, परस्पर भिन्न होते हैं। अतः भूगोलवेत्ताओं का प्रमुख उद्देश्य इन विभिन्नताओं की जानकारी प्राप्त करके उन क्षेत्रों के अंतर संबंधों को पहचानना है।
कार्ल सावर ने भौगोलिक अध्ययन में व्यापक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया तथा भूगोल के क्रमबद्ध विकास एवं नए स्वरूप को समझने में क्षेत्र, क्षेत्रीय दृश्य भूमि, क्षेत्र के सभी लक्षण उसके संबंध, प्रभाव क्षेत्र के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, आर्थिक उपयोग, क्षेत्रीय समस्याएं, समाधान को विशेष बल दिया गया है। हेटनर एवं कार्ल सावर के कार्यों के बाद प्रादेशिक तथा क्षेत्रीय विभिन्नता शब्द का प्रयोग यूरोप, ब्रिटेन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के क्षेत्रों के स्वरूप को स्पष्ट करने में किया गया।
इस तरह क्षेत्रीय विभिनता की संकल्पना क्षेत्रीय विभिनता की संकल्पना नहीं है। बल्कि क्षेत्रीय विविधता एवं विविधताओं के मध्य समानता का अध्ययन है। बाद के वर्षों में क्षेत्रीय विभिनता की संकल्पना किसी प्रदेश के निर्धारण में विविधताओं एवं समानताओं के संदर्भ में प्रस्तुत होती रही।
वर्तमान में क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना का प्रयोग राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों के विकास में किया जा रहा है। जिससे क्षेत्र विशेष का अध्ययन प्राकृतिक एवं मानव के अंतर्संबंध द्वारा क्षेत्र में विकास कार्य को प्रोत्साहन करके क्रियान्वयन किया जा रहा है। (प्रादेशिक संश्लेषण) विश्व की मृदा में भिन्नता का अध्ययन करके उपयुक्त पोषक तत्व, कृषि यंत्र, रसायनिक एवं जैविक उर्वरक इत्यादि का उपयोग किया जा रहा है।
स्पष्टत: क्षेत्रीय विभिन्नता की संकल्पना विभिन्न क्षेत्रों की विविधताओं को बतलाने के साथ ही संबंधित अध्ययन पर भी बल देता है। इससे एक ही प्रदेश के विविध प्राकृतिक तत्वों एवं मानवीय तत्वों के मध्य अंतर संबंधों के आधार पर किसी क्षेत्र या प्रदेश का समग्र अध्ययन किया जा सकता है। क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना प्रदेश की संकल्पना के विकास के लिए महत्वपूर्ण है
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