वायुराशि का अर्थ | वायुराशि के प्रकार | वायुराशियों का वर्गीकरण | वायुराशि का भौगोलिक प्रभाव

वायुराशि वायु का एक सघन एवं विस्तृत भाग है, जिसके सभी भौतिक लक्षण तापमान (Temperature), आर्द्रता (Humidity) आदि क्षैतिज तल (Horizontal plane) में लगभग एक समान होते हैं। ट्रीवार्था ने वायुराशि को वायु का विस्तृत पुंज (Extensive Portion) माना है। किसी वायुराशि का विस्तार हजारों वर्ग किमी क्षेत्र में होता है। वायुराशि में क्षैतिज गति नहीं होती है तथा ऊपरी वायुमंडल से नीचे बैठने की प्रवृत्ति होती है, वायुराशि के स्रोत क्षेत्र का तापमान एवं वायुदाब एक समान रहता है। यहां समताप (Isotherm) एवं समदाब (Isobar) रेखाएं लगभग समानांतर होती है, जिसे मौसम विज्ञान में Barotropic Air Condition कहा गया है।

सामान्यतः वायुराशि में उच्च दाब, निम्न तापमान, आद्रता की कमी, वायुमंडलीय दृश्यता का अधिक होना जैसे गुण पाए जाते हैं। वायुराशियों के बाहरी क्षेत्र में क्षैतिज गति (Horizontal motion) की प्रवृत्ति होती है, इसका कारण आसपास के क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से कम वायु का पाया जाना है। अतः वायु राशि की वायु प्रतिचक्रवातीय स्थिति बनाते हुए स्रोत क्षेत्र से निकलकर निम्न वायु भार वाले क्षेत्र की और गतिशील हो जाती है। इसे प्रतिचक्रवतीय स्थिति भी कहते हैं।

सामान्यत: वायुमंडल के स्थायी उच्चभार क्षेत्र (Permanent high load area) ही वायुराशि क्षेत्र होते हैं, लेकिन स्थानीय परिस्थितियों के प्रभाव से उसके ताप एवं दाब में परिवर्तन हो जाता है और वे अक्षांशीय वायुराशि में रहकर विखंडित हो जाते हैं। ऐसा उत्तरी गोलार्ध में ही होता है। दक्षिणी गोलार्ध में समुद्री प्रभाव के कारण स्थिति भिन्न होती है एवं यहां वायुराशियों के गुणों में परिवर्तन नहीं के बराबर होता है और वे क्षैतिज अवस्था में पाए जाते हैं। लेकिन उत्तरी गोलार्ध में गतिशीलता प्राप्त करते हुए उसके भौतिक गुणों में परिवर्तन होने लगता है और समताप एवं समदाब रेखाएं एक दूसरे के समानांतर ने चलकर एक दूसरे को काटने लगती हैं और मौसमी अनिश्चितताओ का जन्म होता है। इस स्थिति को Baroclinic Air Condition कहते हैं।

वायुराशियों के गुणों में संशोधन


वायुराशि प्रदेश से जब कोई वायुराशि या वायुस्तंभ किसी दूसरे प्रदेश के लिए गतिशील होते हैं, तब उसमें कई परिवर्तन आ जाते हैं। ये परिवर्तन वायुराशियों के आधारभूत गुणों को बदल देते हैं एवं बदली हुई परिस्थितियों में ये चक्रवात या अन्य प्रकार के मौसमी अनिश्चितताओं को जन्म देती हैं।

गतिशील वायु में सामान्यतः निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं।
  1. तापमान में वृद्धि होती है। अपवाद भी है क्योंकि पछुआ हवा का उपधुर्वीय निम्नभार में जाने से तापमान में गिरावट आती है।
  2. आर्द्रता में वृद्धि
  3. दृश्यता में कमी
  4. वायु की स्थिरता में कमी
  5. वर्षा की मात्रा में वृद्धि
अतः उपरोक्त परिस्थितियों से भी वायुराशि की पहचान की जा सकती है। वायुराशि के गुणों में परिवर्तन आना निम्नलिखित चार कारकों पर निर्भर करता है।
  1. जिस धरातल पर वायुराशि गुजर रही है, वहां की धरातलीय विशेषताएं वायुराशि को प्रभावित करती हैं। विभिन्न उच्चावचों का भिन्न प्रभाव वायुराशि पर पड़ता है।
  2. वायुराशि के सतह का जलीय तथा स्थलीय होना भी वायुराशियों के गुणों को प्रभावित करता है। जब कोई वायुराशि समुद्री सतह के ऊपर से गुजरती हैं, तो वहां आर्द्रता एवं नमी में वृद्धि होती है तथा यह आर्द्र वायुराशि होती है। जब स्थलीय धरातल से गुजरती है तब यह शुष्क वायुराशि होती है तथा यह तूफान आने में सहायक होती है।
  3. वायुराशि का स्रोत क्षेत्र से दूरी भी इसके संशोधन (amendment) पर प्रभाव डालती है। अगर वायुराशि स्रोत क्षेत्र से नजदीक है, तो संशोधन का गुण कम होगा। जब ये स्रोत क्षेत्र से दूर होते हैं अर्थात तट से दूर होते हैं या तटीय प्रदेश से आंतरिक भागों में चले गए हो तब संशोधन अधिक होता है तथा ये शुष्क हो जाते हैं।
  4. वायुराशि की अवधि भी गुणों को प्रभावित करती है। वायुराशि एक चक्रीय किया है और अंतिम परिणाम के रूप में चक्रवात की उत्पत्ति होती है। अतः चक्रवात की उत्पत्ति होने पर वायुराशि के गुणों में भारी परिवर्तन होता है, लेकिन यदि कोई वायुराशि चक्रवातीय क्षेत्र से दूर हो अर्थात प्रारंभिक अवस्था में हो तो गुणों में बहुत ही सीमित परिवर्तन होता है।
अतः वायुराशियों के मौसमी गुणों में परिवर्तन कई कारकों पर निर्भर करता है, तथा ये कई प्रकार से संशोधित होते हैं।

वायुराशियों का वर्गीकरण एवं वितरण क्षेत्र


वायुराशियों का सामान्य गुण है, उच्च दाब की स्थिति होना, लेकिन सभी वायुराशियों के भौतिक गुण एक समान नहीं होते हैं। क्योंकि महाद्वीपों एवं महासागरों की उपस्थिति एवं विभिन्न स्थानों में सूर्यभिताप की मात्रा में असामानता पायी जाती है। अतः विभिन्न प्रकार की वायुराशियां एवं उत्पत्ति क्षेत्र पाए जाते हैं। वायुराशियों का वर्गीकरण चार विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है।

(1) अक्षांशीय आधार पर दो प्रकार की वायुराशि पाए जाते हैं।

  1.  ध्रुवीय
  2.  उष्णकटिबंधीय

(2) तल की प्रकृति के आधार पर वायु राशियां :

  1.  महाद्वीपीय
  2.  महासागरीय हो सकती हैं।
अतः दोनों आधार पर 4 वायु राशियां निम्न है।
  1.  ध्रुवीय महाद्वीप
  2.  ध्रुवीय महासागरीय
  3.  उष्ण महाद्वीपीय
  4.  उष्ण महासागरीय
ह चार वायु राशियां ही मुख्य वायुराशियां है।

(3) तापीय आधार पर वायु राशियां :

  •  गरम
  •  ठंडी, हो सकती है। अतः उपरोक्त चार वायुराशियों को पुनः दो-दो भागों में बांट सकते हैं।

(4) गतिशीलता की संभाविता के आधार पर वायुराशियां

  •  स्थिर
  •  अस्थिर 
लेकिन अधिकतर मौसमी वैज्ञानिकों के अनुसार तापीय प्रभाव एवं संभावित गतिशीलता वायु के गुण हैं, अतः ये वायुराशि वर्गीकरण के आधार पर नहीं हो सकते। अतः अक्षांश एवं वितरण के आधार पर मुख्यत: चार प्रकार की वायु वायुराशियां पायी जाती हैं। और ये ही आधारभूत वायु राशियां हैं।
  1. महाद्वीपीय ध्रुवीय वायुराशि :  ग्रीनलैंड, उत्तरी कनाडा, साइबेरिया, अंटार्कटिका
  2. महासागरीय ध्रुवीय वायुराशि :  आर्कटिक सागर
  3. महाद्वीपीय उष्णकटिबंधीय वायुराशि :  उपोष्ण उच्चभार के महाद्वीपीय क्षेत्र
  4. महासागरीय उष्णकटिबंधीय बायुराशि :  उपोष्ण उच्चभार के महासागरीय क्षेत्र, उत्तरी प्रशांत एवं ग्रीष्म काल में अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी।
यद्यपि वायुराशियां मुख्यत: 4 प्रकार की होती हैं, लेकिन उत्तरी गोलार्ध की वायुराशियां ऋतु विशेष से प्रभावित होती हैं, एवं यहां जाड़े में 7 प्रकार की तथा ग्रीष्म काल में 6 प्रकार की वायुराशियां विकसित होती हैं। जबकि दक्षिणी गोलार्ध में वायु राशियों में यह प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है, बल्कि अक्षांशीय वितरण की प्रवृत्ति रखते हैं। जाड़े की ऋतु में उत्तरी गोलार्ध की 7 प्रकार की वायुराशियां निम्न है।
  1. आर्कटिक महाद्वीपीय वायुराशि :  ग्रीनलैंड, कनाडा के उत्तरी द्वीप से उत्पन्न।
  2. आर्कटिक महासागरीय वायुराशि :  आर्कटिक महासागरीय क्षेत्र से उत्पन्न।
  3. ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि :  उत्तरी कनाडा, संपूर्ण साइबेरिया से उत्पन्न।
  4. ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि :  बेरिंग सागर एवं उत्तरी प्रशांत महासागर से उत्पन्न।
  5. उष्ण महाद्वीपीय वायुराशि :  सहारा मरुस्थल, अरब प्रायद्वीप एवं दक्षिणी चीन से उत्पन्न।
  6. उष्ण महासागरीय वायुराशि :  उत्तरी प्रशांत, उत्तरी अटलांटिक का उपोषण क्षेत्र, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर से उत्पन्न।
  7. भूमध्य सागर वायुराशि :  भूमध्यसागरीय प्रदेश से उत्पन्न।

 ग्रीष्म ऋतु में स्थिति भिन्न होती है। आर्कटिक महाद्वीपीय वायु राशि ध्रुवीय महाद्वीपीय वायु राशि का अंग हो जाती है, अतः 6 प्रकार की वायु राशियों ही पाई जाती है और मुख्यत: ये 4 प्रकार की वायुराशियों के ही अंग है।

वायु राशियों एवं संबंधित मौसम


प्रमुख वायु राशि एवं उनसे संबंधित मौसम की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

(1) महाद्वीपीय ध्रुवीय वायुराशि (Continental polar air) :

ध्रुवीय महाद्वीपीय वायु राशि मुख्यतः कनाडा और साइबेरिया के ऊपर विकसित होती है। कनाडा के ऊपर विकसित वायु राशि 2 दिशाओं के नाम से उत्तर एवं दक्षिण की तरफ विकसित होती है। दक्षिण की तरफ जाड़े की ऋतु में ये वायु राशि पाले को विकसित करती है। तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है। दक्षिण की तरफ विकसित होने के कारण मौसम मेक्सिको की खाड़ी में निम्न भार का होना है। इसकी दूसरी शाखा पछुआ मार्ग का अनुसरण करते हुए उत्तर पूर्व की ओर अग्रसर हो जाती है। यह समुद्र तल से स्थल की ओर चलने वाली वायु है, अतः इसमें ताप और आर्द्रता विकसित होती है। संगठन की क्रिया होती है और न्यूफाउंडलैंड और आइसलैंड जैसे क्षेत्रों में इससे वर्षा होती है। यह वायु निचले वायुमंडल में संघनन (Compaction) क्रिया द्वारा कोहरे भरा वातावरण का भी निर्माण करती है।     
जाड़े की ऋतु में साइबेरिया के ऊपर वृहत् उच्च भार (high load) का निर्माण होता है, जहां से भाइयों वायु मुख्यत: पूर्व, दक्षिण पूर्व तथा उत्तर पूर्व की ओर गतिशील होती है। उत्तर पूर्व की ओर चलने वाली वायु अलास्का और कनाडा के तटवर्ती क्षेत्र में पहुंचकर वर्षा करती हैं। सीधे पूर्व की ओर चलने वाली वायु महासागरीय वातावरण के प्रभाव से गर्म एवं आर्द्र हो जाती है तथा महासागरीय तटवर्ती क्षेत्र में वर्षा करती है। दक्षिण पूर्व की तरह चलने वाली वायु से जापान में वर्षा होती है तथा हिमपात (Snow) एवं कड़ाके की सर्दी होती है। दक्षिण की तरफ चलने वाली वायु मुख्यत: चीन के मैदानी क्षेत्र में चलती है, और यहां शीतलहारी का वातावरण लाती है।

(2) ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (Polar ocean air)

इस वायु राशि का विकास आर्कटिक सागर और उत्तरी अटलांटिक सागर एवं बेरिंग सागर में होता है। यह वायु राशि दक्षिण पश्चिम दिशा में क्रमशः प्रवाहित होती हैं। निम्न अक्षांश की तरफ से चलने वाली यह वायु राशि क्रमशः गर्म होती हैं तथा आर्द्रता को प्राप्त करती हैं। अंततः ये वायु राशि को उपोष्ण प्रदेश से आ रही गर्म वायु राशि के साथ अभिसरण (Convergence) के द्वारा शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति करती हैं। इस वायु राशि से यूरोप के अधिकतर देशों के तापमान में गिरावट आती है, और शीतलहारी (Coolari) का निर्माण होता है। साथ ही हिमपात होता है, जो अत्यंत कष्टकर होता है।

(3) उष्ण महाद्वीपीय वायुराशि (Warm continental air)

यह प्रतिचक्रवातीय वायु (Anticyclonic air) को विकसित करती है, जो उत्तर में पछुआ एवं दक्षिण में सन्मार्गी वायु के नाम से जानी जाती है। लेकिन संपूर्ण अक्षांशीय महाद्वीपीय वायु प्रदेश में ये वायु राशियां सालों भर कार्य नहीं करती है। ग्रीष्म काल में अनेक क्षेत्र गर्म हो जाते हैं और वह उच्च वायुदाब प्रदेश के बदले निम्न वायुदाब वाले प्रदेश में बदल जाता है। भारतीय उपमहाद्वीपीय वायु राशि इसका एक उदाहरण है। भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर 25 से  35 डिग्री अक्षांशो के बीच जाड़े की ऋतु में उच्च भार होता है, लेकिन ग्रीष्म ऋतु में उन्हीं अक्षांशों में निम्न भार का निर्माण होता है। और अंततः उष्णकटिबंधीय चक्रवात का विकास होता है।

(4) उष्णकटिबंधीय महासागरीय वायुराशि (Tropical ocean air)

  • इसके दो महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत क्षेत्र। इन दोनों क्षेत्रों से निकलने वाली वायु राशियां पर्याप्त नमी रखती हैं, और जहां से गुजरती हैं, वहां वर्षा करती हैं।
  • अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मानसून के समय जो उच्च भार विकसित होता है, वह भी उष्ण कटिबंधीय महासागरीय उच्च भार है। ये वायु राशियां उष्ण और उपोषण प्रदेशों में वर्षा का प्रमुख कारण है।
अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि वायु राशि मौसमी परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण आधार है। इसके वितरण और गतिशीलता की दिशा ही वायु राशि की संभावित विशेषता और मुख्य रूप से मौसमी विशेषताओं को बता सकती है।

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