समुद्र तल परिवर्तन की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।

समुद्र तल एक गतिशील अवधारणा है, जिसमें परिवर्तन होता रहता है। समुद्र तल से तात्पर्य महासागरीय सतह की ऊंचाई से है अर्थात सागर के ऊपरी तल को सागर तल कहते हैं, जो नितल के सापेक्षिक लिया जाता है। सागर तल में पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विभिन्न महासागरों के निर्माण के समय से ही परिवर्तन होता रहा है। पुरा जलवायु में परिवर्तन एवं हिमयुगो अर्न्त हिमयुगो के क्रमशः आगमन से समुद्र तल में तीव्र परिवर्तन होता रहा है। वर्तमान समुद्र तल प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के हिलोसीन काल का परिणाम है और इसे स्थिर माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में भी समुद्र तल में परिवर्तन हो रहा है ग्लोबल वार्मिंग का स्पष्ट प्रभाव समुद्र तल परिवर्तन के रूप में पड़ने की संभावना है।

समुद्र तल परिवर्तन के दो प्रकृति हैं।

  1. स्थैतिक परिवर्तन :  इसके अंतर्गत भूमिज निक्षेप, अवसादीकरण जैसे कारक आते हैं।
  2.  सुस्थैतिक परिवर्तन :  इसके अंतर्गत हिमानीकरण, पटल विरूपण घटनाएं, भूस्खलन, सागर नितल परिवर्तन इत्यादि का महत्वपूर्ण कारक है।

सागर नितल परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारक निम्न है।

  • हिमानीकरण या हिमयुगपृथ्वी पर तीन हिमयुग वृहद पैमाने पर आया हैं। प्री क्रैम्ब्रियन काल, कार्बोनिफरस काल तथा प्लीस्टोसीन काल में हिमयुग आया था। उस समय वृहद पैमाने पर समुद्र तल में परिवर्तन हुआ था।प्लीस्टोसीन काल में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया का अधिकांश भाग हिमाच्छादित हो गया था। हिमकाल में सागरीय जल महाद्वीपों पर हिम चादर के रूप में रुका रहता है। इस कारण सागर तल नीचा हो जाता है।

प्लीस्टोसीन काल में सागरतल 100 से 150 मीटर नीचे चला गया था पुनः हिमयुग की समाप्ति पर उष्ण मौसम के आगमन के बाद हिम क्षेत्रों के पिघलने के कारण समुद्र तल 100 से 120 मीटर ऊपर आ गया। वर्तमान समुद्र तल का निर्धारण इसी समय हुआ है। यह लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व निर्धारित हुआ।

  • समुद्र नितल प्रसरण एवं कटक के क्षेत्र में वृद्धि :  सागर नितल प्रसरण से समुद्र नितल का प्रसार होता है, जिससे सागर तल में कमी आती है, लेकिन मध्यवर्ती कटक के विस्तार से जल तल ऊपर आता है।
  • विवर्तनिकी क्रिया :  प्लेटो के विस्थापन, ट्रेंच का निर्माण भ्रंश का निर्माण आदि सागर तल में परिवर्तन लाता है।
  • समस्थिति क्रिया :  समस्थिति समायोजन की प्रक्रिया भी समुद्र तल को प्रभावित करती है।
  • समुद्री तापमान, लवणता में परिवर्तन से सागर तल के आयतन में परिवर्तन होता है।
  • वायुमंडलीय कारक, तूफान, चक्रवात,
  • सुनामी, सागरीय धाराएं
  • निक्षेप, अवसादीकरण की क्रिया :  भूमिज या स्थलीय निक्षेप, जलोढ़, हिमोढ़ निक्षेप के कारण भी सागर तल में परिवर्तन होता है।

वर्तमान में समुद्री जल तल में परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल बार्मिंग या वैश्विक ताप वृद्धि को माना जा रहा है। पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे हम क्षेत्रों के बर्फ पिघल जाएंगे जिससे सागर तल की ऊंचाई में वृद्धि होगी। IPCC के रिपोर्ट में विश्व के तापमान में 2 डिग्री से 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की बात की जा रही है। यदि इसी गति से तापीय वृद्धि होती रही तो 2040 तक समुद्र तल में वृद्धि होने से कई द्वीप, समुद्र तटीय क्षेत्र जल में डूब जाएंगे। यह स्थिति अत्यंत भयावह हो सकती है। अण्टार्कटिक क्षेत्रों में बर्फ में दरारें पड़ने एवं पिघलने की क्रिया समुद्र तल में वृद्धि लाएगा जो विनाशकारी होंगे।

महत्वपूर्ण तथ्य :

  1. समुद्र तल में परिवर्तन का आशय यह है कि हिमखंडों के पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होने लगती है। इस कारण पानी की सतह ऊपर उठने से समुद्र तल से कम ऊंचे तटवर्ती इलाकों के डूबने का खतरा रहता है। समुद्र तल में परिवर्तन हिमखंडों के पिघलने के बाद पानी की मात्रा में बढ़ोतरी होने के कारण होता है। इस परिवर्तन के कारण कई द्वीप जलमग्न हो गए है तथा कुछ जलमग्न होने के कगार पर है
  2. एक सर्वे के अनुसार, 4267 मीटर में समुद्र की औसत गहराई मानी जाती है
  3. समुद्र का निर्माण या समुद्र का जन्म धरती की सतह में स्थित पानी से भरे विशाल गड्ढे से हुआ है। दरअसल, जब पृथ्वी का जन्म हुआ, तो वह आग का एक गोला थी। पृथ्वी जब धीरे-धीरे ठंडी होने लगी, तो उसके चारों तरफ गैस के बादल फैल गए। ठंडे होने पर ये बादल काफी भारी हो गए और उनसे लगातार मूसलाधार वर्षा होने लगी।
  4. मेक्सिको की खाड़ी पश्चिमी अंध महासागर का एक समुद्र है। यह उत्तर अमेरिका और क्यूबा से घिरा हुआ है और कैरिबियाई सागर के पश्चिम में स्थित है। इसका सबसे गहरा स्थान (खाड़ी) सतह से 14383  फ़ुट (4384  मीटर) की गहराई पर स्थित सिग्स्बी खाई है।
  5. भागीरथी, अलकनंदा घाटी भारत की सबसे गहरी नदी घाटी है। यह दोनों ही नदियां गंगा की सहायक नदी है। भागीरथी, भारत की एक हिमालयी नदी है, जो उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले के ‘गोमुख’ नामक स्थान से 25 K.M. दूर स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से प्रकट होती हुई उत्तराखंड में से होकर बहती है।