किसी भी अपरदन चक्र या सक्रिय चक्र में बाधा उत्पन्न होने से स्थलखण्ड पर नए चक्र का प्रारंभ हो जाता है, जिसे नवोन्मेष कहते हैं। नवोन्मेष तल में परिवर्तन के कारण होता है। ऐसे में नवीन अधार तल के संदर्भ में नवीन अपरदन चक्र की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। अतः प्रदेश में नवीन एवं पूर्व दोनों ही अपरदन चक्र के प्रमाण मिलते हैं, जब किसी प्रदेश में एक से अधिक अपरदन चक्र की क्रिया होती है, तो उसे बहु-चक्र कहते हैं। तथा उत्पन्न स्थलाकृतियां बहु-चक्रीय स्थलाकृतियां कहलाती हैं। वस्तुतः एक चक्रीय स्थलाकृतियों के प्रमाण कम मिलते हैं, जबकि बहु-चक्रीय स्थलाकृतियों के अनेक प्रमाण है।
बहु-चक्रीय स्थलाकृतियों के निम्न महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
- छोटानागपुर प्रदेश भारत
- USA का अप्लेशियन प्रदेश
- रूस का वोल्गा प्रदेश
- उत्तर पश्चिम यूरोप का स्कैंडिनेविया एवं स्कॉटलैंड प्रदेश
छोटानागपुर पठार एवं अप्लेशियन क्षेत्र में उत्तरोत्तर 4 अपरदन चक्र के प्रमाण मिलते हैं।
- भू-संचलन या आंतरिक क्रिया
- सुस्थैतिक या बाह्य क्रिया
(1) भू-संचलन क्रिया :
इसे गतिक क्रिया कहते हैं। इसमें उत्थान एवं धंसान की संभावना होती है। भू-संचलन से स्थलखंड में उत्थान या धंसान या झुकाव होता है, जिससे सागर तल में सापेक्षत: परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन नवीन अपरदन चक्र को जन्म देता है।
(2) सु-स्थैतिक क्रिया :
वाह्य कारकों जैसे जलवायु परिवर्तन से भी समुद्र की सतह अर्थात आधार तल में परिवर्तन होता है, जिससे नवोन्मेष उत्पन्न होता है, जैसे तापमान में कमी से हिम का प्रभाव अधिक होता है, जिससे जल हिम के रूप में महाद्वीपीय भागों पर अच्छादित हो जाता है। जिससे समुद्र तल नीचे चला जाता है। परिणामस्वरूप अपरदन क्षमता में वृद्धि हो जाती है एवं नवीन अपरदन चक्र प्रारंभ हो जाता है, लेकिन जैसे ताप में वृद्धि होती है तो हिम पिघलकर समुद्र सतह को ऊपर ले आता है, परिणामस्वरूप सामान्य अपरदन चक्र बाधित हो जाती है। जब ताप में वृद्धि होती है, तब जल बहाव में वृद्धि होती है, जिससे तली अपरदन बढ़ जाता है एवं नए अपरदन चक्र की शुरुआत होती है। पुनः जल की मात्रा में वृद्धि के कारण नदी अपने निम्न क्षेत्र में वृहद बाढ़ के मैदान का निर्माण करती है और ये प्रक्रियाएं एक नवीन अपरदन चक्र को जन्म देती है। उपरोक्त तथ्य से स्पष्ट है कि नवोन्मेष मुख्यतः भू-संचलन और जलवायु परिवर्तन का परिणाम है।
बहु-चक्रीय स्थलाकृतियों का विवरण :
नवोन्मेषकी बहु-चक्रीय अस्थलाकृतियों की पहचान विशिष्ट स्थलाकृतियों से होती है।
बहु-चक्रीय प्रदेश में 5 प्रमुख स्थलाकृतियों का विकास होता है –
- निक प्वाइंट
- नदी सोपान
- अध: कर्तिक विसर्प
- संगत शिखर
- अपरदन सतह
(1) निक प्वाइंट :
यह उत्थान एवं धसांन क्रिया का परिणाम है। स्थलमंडल के ऊपर उठने या सागर तल के नीचे गिरने से नदी के आधार तल में परिवर्तन होता है और नदी नए आधार तल को प्राप्त करने के लिए नए वक्र का निर्माण करती है, जो पुराने वक्त से नीचा होता है। ऐसे में नदी शीर्ष अपरदन करती है तथा जिस स्थान पर दोनों वक्र मिलते हैं, वहां ढाल में अचानक परिवर्तन हो जाता है। इस तीव्र ढाल वाले स्थान को निक प्वाइंट कहते हैं। यह सही अर्थों में भ्रंश कगार है, जहां जलप्रपात या उच्छलिकाएं या रैपिड पाई जाती हैं। छोटा नागपुर में स्वर्ण रेखा नदी द्वारा निर्मित हुंडरू जलप्रपात अनेक पॉइंट पर ही है। निक पॉइंट का विकास धंसान क्रिया द्वारा भी होता है। जब किसी नदी प्रदेश या प्रदेश के अग्रभाग का धंसान हो जाता है तो ऊपर घाटी का किनारा कगार का निर्माण करता है जो निक पॉइंट है। USA का जलप्रपात रेखा इसी प्रकार के निक पॉइंट का परिणाम है।
(2) नदी सोपान :
यह नदी घाटी प्रदेश के नवोन्वेष के परिणामस्वरूप निर्मित स्थलाकृति है। जब नदी की प्रौढ़ावस्था होती है, तब क्षैतिज कटाव के कारण घाटी को चौड़ा करती है। ऐसी स्थिति में उत्थान के कारण या ढाल में वृद्धि के कारण नदी निम्न कटाव के द्वारा अपनी पूर्ववर्ती चौड़ी घाटी में गहरी एवं संकरी घाटी का निर्माण करती है, जिससे घाटी में घाटी का निर्माण होता है। कई बार नवोन्वेष की क्रिया होने से घाटी के अंदर घाटी का क्रमशः विकास हो जाता है, जिसका आकार सोपानाकार हो जाता है इसे सोपानाकार वेदिका कहते हैं।
(3) अध: कर्तिक विसर्प :
वृद्धावस्था में नदी चौड़ी विसर्पों का निर्माण करती है। अगर इस अवस्था में भूखंड का उत्थान हो जाता है तो नदी पुराने चौड़े विसर्प के अंदर निम्न कटाव द्वारा गहरे विसर्प का निर्माण करती है, जिसे अध: कर्तिक विसर्प कहते हैं। इसमें मोड़ लेती नदी का मोड़ लेता हुआ किनारा तीव्र ढाल वाला होता है। वह किनारा अधिक तीव्र ढाल वाला होता है, जहां नदी का जल तली कटान के साथ ही घाटी के दीवारों पर भी तीव्र प्रवाह करता है। दूसरा किनारा तुलनात्मक रूप से मंद ढाल वाला होता है यहां निक्षेप की भी संभावना रहती है। हजारीबाग एवं गिरिडीह जिले में दामोदर नदी अध: कर्तिक विसर्प का निर्माण करती है।
(4) संगत शिखर :
वह स्थलाकृति जहां पाए जाने वाले सभी पर्वत शिखर समान ऊंचाई के होते हैं। जब किसी समप्राय मैदान का उत्थान होता है, तो उसमें अवस्थित मोनेडनाक भी आधुनिक पर्वत के रूप में उत्थित हो जाते हैं। उत्थान के बाद समप्राय मैदान में स्थित पूर्ववर्ती घाटियों में भी अपरदन की क्रिया तीव्र हुई, जिसमें मोनेडनाक जल विभाजक के रूप में शेष रह गए एवं कालांतर में पर्वत शिखर में बदल गए। जैसे स्कैंडिनेवियन पठार, स्कॉटलैंड उच्च भूमि, छोटा नागपुर पठार (नेतरहाट की पहाड़ी) आदि।
(5) अपरदन सतह या उत्थित समप्राय मैदान :
अपरदन सतह कभी समप्राय मैदान था, जो भू-संचलन की क्रिया के कारण या आधारतल में परिवर्तन के कारण उत्थित पठार के रूप में वर्तमान है। अप्लेशियन एवं छोटा नागपुर क्षेत्रों में चार अपरदन सतह के प्रमाण मिलते हैं।
छोटा नागपुर प्रदेश में अपरदन चक्र की क्रियाएं 3 बार बाधित हो चुकी हैं या 3 अपरदन चक्र पूर्ण हो चुके हैं। चौथी अपरदन सतह के निर्माण की प्रक्रिया जारी है।
अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भूदृश्यों का बहु-सक्रिय विकास एक चक्रीय विकास की तुलना में अधिक सामान्य है। वस्तुतः बहु-चक्रीय स्थलाकृतियों के प्रमाण अधिक मिलते हैं एवं एक चक्रीय स्थलाकृतियों की उपस्थिति संदिग्ध है। डेविस एवं पेंक ने भी ऐसी ही संकल्पना व्यक्त की है।