भारत में नीली क्रांति
मछली और समुद्री उत्पादों में तेज वृद्धि को नीली क्रांति कहा जाता है। नीली क्रांति योजना की शुरुआत सातवीं पंचवर्षीय योजना में जापान के सहयोग से की गई थी। इसका मूल उद्देश्य भारत में जलीय खाद्य उत्पादन में क्रांतिकारी अर्थात गंतव्य परिवर्तन लाना था।
भारत परंपरागत रूप से मछली का एक प्रमुख उत्पादक देश रहा है। भारत का भौगोलिक वातावरण स्वच्छ जल और समुद्री मछली दोनों के लिए अनुकूल है। यहां करीब 2000 नदियां करीब 1 लाख तालाब और वृहद समुद्री क्षेत्र मत्स्य उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण रखते हैं। खासकर बंगाल की खाड़ी जहां का जल अरब सागर की तुलना में कम लवणीय है, अपेक्षाकृत मछलियों के लिए अधिक अनुकूल है।
यही कारण है कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु राज्यों के तटों पर अरब सागर के तटीय राज्यों की अपेक्षा अधिक मछली उत्पादन होता है। ज्ञातव्य है कि पश्चिमी तटीय राज्यों में केरल में सर्वाधिक मछली उत्पादन होता है, जिसका कारण मालाबार अथवा केरल तट पर दक्षिण पश्चिम मानसून के द्वारा अधिक वर्षा से अत्यधिक मीठे जल का अधिक पाया जाना है, जोकि वहां के समुद्री जल की लवणता को घटा देता है। लेकिन समुद्री खाद्य संसाधन के परंपरागत तथा अवैज्ञानिक दोहन होने के कारण यह मात्रा जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था है।
योजना आयोग द्वारा यह अनुभव किया गया कि इसके विकास की असीम सीमा है और इसके विकास से निम्नलिखित फायदे भी हैं।
- भारतीय की प्रोटीन उपलब्धता में वृद्धि
- खाद्य समस्या के समाधान में सहयोग
- रोजगार में वृद्धि
- भारत की विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि
- मछली की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षण देना
- ग्रामीण विकास में महत्व
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति के समान नीली क्रांति का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम को दो भागों में बांटा गया है।
- समुद्री मत्स्यन
- स्वच्छ जल या आन्तरिक मत्स्यन
(1) समुद्री मत्स्यन :
वर्तमान में देश के कुल मछली उत्पादन 69 लाख टन, में 30 लाख टन समुद्री मछली का उत्पादन है। 1999-2000 तक लगभग 50% उत्पादन समुद्री मछली का ही था। 2006-07 में आंतरिक मत्स्यन से 30 लाख टन उत्पादन हुआ।
भारत वर्तमान में मछली का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यह जलीय कृषि उत्पादन के साथ-साथ अंतर्देशीय कैप्चर फिशरीज में भी विश्व में दूसरे नंबर पर है। वर्ष 1950-51 के दौरान कुल मछली उत्पादन में अंतर्देशीय मछली उत्पादन का प्रतिशत योगदान 29 प्रतिशत था, जो 2017-18 में बढ़कर 71 प्रतिशत हो गया है। समुद्री जल से मछली उत्पादन के कार्यक्रम में निम्नलिखित कार्यों को सम्मिलित किया गया है।
- समुद्री कृषि कार्यक्रम : इसके अंतर्गत तटीय क्षेत्र के खारे पानी के विशाल क्षेत्र में कई बड़े मछली फार्म स्थापित किए गए हैं। जैसे आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में एशिया का सबसे बड़ा झींगा फार्म तथा तमिलनाडु के तंजौर जिले में एक वृहद कैटफिश फार्म है। इसी योजना के अंतर्गत 35 बड़े मछली फार्म स्थापित किए गए हैं। देश के तटवर्ती समुद्री इलाकों के खारे पानी वाले क्षेत्रों में स्थापित 39 खारे पानी मत्स्य पालक विकसित एजेंसियां झींगा पालन कार्य में लगी हुई है। देश में किए जाने वाले झींगा पालन निर्यात का 50% हिस्सा इसी क्षेत्र से होता है।
- मशीनीकरण : इसके द्वारा ही गहन सागरीय क्षेत्र में मछली पकड़ना संभव है। सातवीं योजना के अंतर्गत 500 Deep Sea Fishing जहाजों को मछली व्यवसाय में लगाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन वास्तविक उपलब्धि 170 थी। इसी प्रकार सातवीं योजना में 25000 यांत्रिक नावे इस कार्य में लगाई गई। मशीनीकरण कार्यक्रम को आठवीं योजना में भी महत्व दिया गया पुनः भारत में बनने वाले मछली पकड़ने वाले जहाजों को 33% की सब्सिडी दी गई, तथा देसी उपकरणों के तीव्र विकास हेतु मुरारी कमेटी का गठन किया गया।
- परिष्करण केंद्रों की स्थापना।
- मछली उत्पाद के परिवहन हेतु विशेष प्रकार के ट्रक और रेलवे में विशेष प्रकार के डिब्बे लगाए गए।
- संरचनात्मक सुविधाओं में सुधार किया गया। विशेष रूप से लाइट हाउस का निर्माण किया गया।
- मध्यस्थ की भूमिका समाप्त की गई।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि को महत्व दिया गया।
- मत्स्य बंदरगाह का विकास किया गया। उनमें प्रमुख बड़े बंदरगाह – कोच्चि, चेन्नई, विशाखापटनम तथा पारादीप है।
इसके अतिरिक्त 16 छोटे मत्स्य पत्तन तथा 82 मत्स्य केंद्रों का आधुनिकरण नार्वे के सहयोग से किया गया। - समुद्री जल प्रदूषण के नियंत्रण हेतु विभिन्न राष्ट्रीय पार्कों जैसे : गुजरात समुद्री राष्ट्रीय पार्क, मालवन समुद्री राष्ट्रीय पार्क (महाराष्ट्र) तथा वान्दूर समुद्री राष्ट्रीय पार्क (अंडमान) की स्थापना की गई।
- मछुआरों के लिए 3 कल्याणकारी कार्यक्रम भी चलाए गए :
👉 कार्यरत मछुआरों के लिए सामूहिक बीमा योजना Fish Copfed के नाम से चलाई गई है।
👉 मछुआरों के लिए आदर्श ग्राम का विकास।
👉 बचत एवं राहत योजना।
उपरोक्त कार्यक्रमों के अतिरिक्त देश की कुछ महत्वपूर्ण संस्थान भी समुद्री मत्स्य के विकास के लिए प्रतिबद्ध है इनमें 2 सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- केंद्रीय मत्स्य पालन और इंजिनियरिंग प्रशिक्षण संस्थान, कोची
इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य गहरे पानी में मछली पकड़ने वाले जहाजों के लिए परिचालकों एवं तकनीशियनों का प्रशिक्षण देना है। चेन्नई और विशाखापत्तनम में भी इसकी एक-एक इकाई है।
- तटवर्ती इंजीनियरिंग या केंद्रीय संस्थान, बेंगलुरु
यह मछलियों के लिए बंदरगाह स्थल चुनने की तकनीकी व आर्थिक संभावनाओं का अध्ययन करता है।
इसके अलावा ‘भारतीय मछली सर्वेक्षण विभाग‘ भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) में समुद्री संसाधनों के सर्वेक्षण और मूल्यांकन के लिए नोडल एजेंसी की भूमिका निभाता है।
(2) स्वच्छ जल या आंतरिक मत्स्यन :
अंतर्देशीय मछली उत्पादक देश का लगभग 57% है। 2000-01 में स्वच्छ जल में मछली के उत्पादन में, समुद्री जल में मछली के उत्पादन की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है।
स्वच्छ जल आधारित नदी, तालाब, प्राकृतिक तथा कृत्रिम झील में मछली उत्पादन को तीव्र करने के लिए निम्नलिखित को प्राथमिकता दी गई।
- उच्च किस्म के बीजों का विकास
- ग्रामीण विकास योजनाओं के अंतर्गत मछली
- पकड़ने हेतु जहाज अथवा नाव खरीदने के लिए ऋण
- मत्स्य विभाग द्वारा बीज की आपूर्ति
- मध्यस्थ की भूमिका का समापन
- मछुआरों में सहकारिता का विकास
- मछली पकड़ने के अधिकार को कानूनी मान्यता देना
- कृषि विपणन संघ द्वारा उचित मूल्य पर मछलियों के खरीदने तथा शीत भंडार गृह में रखने की व्यवस्था करना
- झीलों, नदियों, जलाशयों के जल को प्रदूषण से सुरक्षित रखना
- छठी योजना में आंतरिक मत्स्यन हेतु मत्स्यन विभाग द्वारा राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया
- सन 1987 में मलिन जल पोषित मत्स्य कृषक विकास योजना शुरू की गई।
ऊपर वर्णित प्रक्रियाओं के द्वारा भारत में मत्स्य व्यवसाय को एक नई दिशा मिली है और भारत का विश्व स्तर पर वृहत्तम निर्यातकों में स्थान हो गया है। नीली क्रांति योजना के कारण भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा स्वच्छ जल मछली उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा समुद्री जल मछली उत्पादक देश बन चुका है। भारत प्रोन और श्रृम्प के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखता है।
यद्यपि नीली क्रांति योजना के तहत भारत के मछली उत्पादन, प्रति व्यक्ति खपत और मछली के निर्यात में भारी वृद्धि हुई है। लेकिन इसके बावजूद भारत में सकल राष्ट्रीय उत्पादन में 2003-04 में इसका योगदान 1.1 प्रतिशत था वर्तमान में भी 1 प्रतिशत है। इससे स्पष्ट है कि नीली क्रांति योजना को और भी गत्यात्मक बनाने की आवश्यकता है। मछली विश्व के मछली उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 2.5 प्रतिशत है।
भारत में मत्स्य उद्योग के अविकसित होने के निम्नलिखित कारण है।
- भारत में करीब 1500 प्रकार की मछलियां पाई जाती है और वाणिज्यिक उत्पादन मुख्य रूप से मात्र 14 प्रकार की मछलियों का होता है।
- अभी भी करीब 80% मछली उत्पादन तट से मात्र 16 किमी की दूरी के बीच होता है। जबकि मछली पकड़ने का अधिकार 320 किमी की दूरी तक है। अतः भारत मछली व्यवसाय के मशीनीकरण का आधुनिकीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहयोग से इसमें अप्रत्याशित वृद्धि ला सकता है।
- यहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है जोकि मत्स्य उत्पादन में बहुत अनुकूल नहीं है।
- मछली पकड़ना भारत में निर्वाह स्तर पर अथवा एक पूरक व्यवसाय के रूप में देखा जाता है।
- मछुआरे निम्न वर्ग के लोग हैं जो निर्धन और अशिक्षित हैं।
नीली क्रांति योजना का सही क्रियान्वयन नहीं होने के होने से तटीय जीव मंडल पर इस व्यवसाय का भारी प्रभाव पड़ा और अनेक लैगून और झील में पारिस्थितिक संतुलन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गई है। अतः नीली क्रांति के अंतर्गत गहन सागरीय क्षेत्र में मछली दोहन को प्राथमिकता देने की जरूरत है। इसी के साथ स्वच्छ जल प्रदेश में गरीबी निवारक, ग्रामीण रोजगार में वृद्धि तथा प्रति व्यक्ति प्रोटीन उपलब्धता में वृद्धि के लिए भी इसे और अधिक त्वरित करने की जरूरत है।
भारत में नीली क्रांति के जनक : हीरालाल चौधरी और अरुण कृष्णन को माना जाता है।
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