Pacific Ocean Currents in Hindi | प्रशांत महासागर की जलधारायें

प्रशांत महासागर इक्वेडोर से लेकर इंडोनेशिया तक 17000 किमी की लंबाई में है। उत्तर में बेरिंग सागर से दक्षिण में अंटार्कटिका तक इसका विस्तार है। इसमें पृथ्वी के जल का 50% भाग पाया जाता है। यह पृथ्वी के भूपटल का वृहद कमजोर क्षेत्र है, जिसके तटवर्ती भाग में पर्वतीकरण की क्रिया भी सक्रिय है। पूर्वी क्षेत्र अलास्का से चिली तक उबड़-खाबड़ स्थलाकृति का क्षेत्र है। यहां लवणता की मात्रा काफी कम है, तथा 25,000 से अधिक द्वीप, जलमग्न ज्वालामुखी तथा आधारतलीय कटक है। इसके तटवर्ती भाग अत्यधिक संकरे है, क्योंकि इसकु तटवर्ती पहाड़ियां एकाएक उठी हैं। महासागर की तली विस्तृत तथा गहरी (औसत 3940 मीटर) है।

जलधाराओं की उत्पत्ति का कारण :

प्रशांत महासागर में कई परिभाषित गर्म एवं ठंडी जलधाराएं विकसित हुई है। इन जलधाराओं की उत्पत्ति कई भौगोलिक कारकों की अन्तरक्रिया का परिणाम है। इन्हें नीचे की तालिका में देखा जा सकता है।

प्रमुख कारक :

  • खगोलीय कारक :  (I) पृथ्वी की घूर्णन गति (II) गुरुत्वाकर्षण (III) विक्षेप बल
  • वायुमंडलीय कारक :  (I) वायु प्रवाह की दिशा एवं गति (II) वायुदाब (III) वर्षा की मात्रा एवं वाष्पीकरण
  • समुद्री कारक :  (I) जल का तापमान (II) दबाव (III) लवणता (IV) हिमशिला खंडों का पिघलना
  • स्थलाकृतिक कारक :  (I) तट रेखा की आकृति (II) मध्यवर्ती कटक (III) द्वीप

इन कारणों के प्रभाव को विभिन्न जलधाराओं के संबंध में स्पष्ट किया गया है।

जलधाराओं का विवरण :

प्रशांत महासागर की जलधाराओं का अध्ययन उत्तरी प्रशांत एवं दक्षिणी प्रशांत महासागर की जलधाराओं के रूप में किया जाता है। इसके बीच सीमांकन का कार्य प्रतिरोध विषुवतीय जलधारा करती है। इसकी उत्पत्ति का प्रमुख कारण अंतर उष्ण अभिसरण क्रिया है, जिस प्रकार विषुवतीय प्रदेश में दो समान वायु का अभिसरण होता है, उसी प्रकार से दो दिशाओं से आने वाले विषुवतीय गर्म धाराओं का अभिसरण होता है। इसी अभिसरण के पश्चात विषुवतीय पछुआ वायु के समान प्रतिरोधी विषुवतीय गर्म धारा की उत्पत्ति होती है। यह फिलीपींस के दक्षिणी भाग से प्रारंभ होकर पनामा और इक्वाडोर के मध्य के तटवर्ती प्रदेश तक अपवाहित होती है।

उत्तरी प्रशांत महासागर की जलधारा : 
  • उत्तरी प्रशांत महासागर की तीन प्रमुख गर्म तथा दो ठण्डी जल धारा प्रवाहित होती हैं।
गर्म जलधाराओं में :
  1. उत्तरी विषुवतीय गर्म जलधारा,
  2. क्यूरोशिवो गर्म जलधारा,
  3. त्तरी प्रशांत प्रवाह प्रमुख है।
तीनों ही धाराएं एक-दूसरे से जुड़ी हैं। उत्तरी विषुवतीय गर्म जलधारा जब फिलीपींस की ओर जाकर उससे उत्तर की ओर मुड़ जाती है, तब क्यूरोशिवो गर्म जलधारा का निर्माण होता है। यह 45 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक जाती है, लेकिन 35 डिग्री उत्तरी अक्षांश के बाद यह दाहिने ओर मुड़ने लगती है तथा 50 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आते-आते यह पूर्णत: दाहिने की तरफ मुड़ जाती है, तथा उत्तरी प्रशांत प्रवाह का निर्माण करती है। इसी गर्म जलधारा का जल बैंकुंवर (कनाडा) के पास पहुंचने के बाद दो भागों में बढ़ जाता है। इसकी उत्तरी दिशा अलास्का के तट पर प्रवाहित होती है तथा बेरिंग जल संधि में जाकर विलीन हो जाती है। इसका दक्षिणी भाग कैलिफोर्निया ठंडी जलधारा में मिल जाता है और विषुवत रेखा की ओर प्रवाहित होने लगता है।

ठण्डी जलधारा में दो प्रमुख जलधारा है।

  1. ओयाशिवो या क्यूराइल ठंडी जलधारा,
  2. कैलिफोर्निया ठंडी जलधारा

ओयाशिवो जलधारा आर्कटिक सागर से निकलती है। यह साइबेरिया के पूर्वी तट से प्रवाहित होते हुए होकैडो के पास क्यूरोशिवो जल धारा से मिल जाती है, तथा इसके बाद दोनों जलधाराओं का जल पछुआ हवा के मार्ग से चलते हुए उत्तर पूर्व दिशा में अपवाहित होने लगता है। ओयाशिवो की एक जलधारा ऑखोटस्क सागर से गुजरती है, जिसे ऑखोटस्क ठंडी जलधारा कहते हैं। क्यूराइल द्वीप के पास ओखोटस्क जलधारा ओयाशिवो जलधारा में मिल जाती है।

कैलिफोर्निया ठंडी जलधारा का जल तुलनात्मक रूप से ठंडा होता है। क्योंकि यह उच्च अक्षांश से आती है। अतः ठंडी होती है। यह जलधारा जब सन्मार्गी पवन मार्ग से गुजरती है तो इसका तापमान बढ़ चुका होता है। अलास्का की जल धारा तुलनात्मक रूप से गर्म है एवं कैलिफोर्निया की जलधारा तुलनात्मक रूप से ठण्डी है। तथा यह उत्तर पूर्वी विषुवतीय गर्म जलधारा के अंग बन जाते हैं, इस जलधारा की उत्पत्ति का मुख्य कारण सागरीय नितल की ठंडी जल का सतह पर आना है। जलधाराओं के वितरण की प्रवृत्ति को देखने से स्पष्ट है कि वे सभी एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, तथा सागर का मध्यवर्ती जल शांत सागर जैसा प्रतीत होता है, इसे सारगैसो सागर की स्थिति भी कहते हैं।

क्यूरोशिवो का एक भाग जापान सागर में सुसीमा जलधारा के नाम से जाना जाता है। इसे काली जलधारा भी कहते हैं।

दक्षिणी प्रशांत महासागर की जलधारा

दक्षिण प्रशांत महासागर में भी उत्तरी प्रशांत की तरह एक निश्चित प्रारूप में जल धाराओं का विकास हुआ है। यहां दो प्रमुख गर्म एवं दो प्रमुख ठंडी जलधाराएं हैं।

गर्म जलधाराओं में :

  • दक्षिण विषुवतीय गर्म जलधारा,
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई गर्म जलधारा 

ठंडी जलधाराओं में :

  • पेरू या हंबोल्ट की धारा,
  • पश्चिमी वायु प्रवाह

दक्षिण विषुवतीय गर्म जलधारा सन्मार्गी पवन की दिशा के अनुरूप अपवाहित होते हुए न्यूपापुआ गिनी के तट पर पहुंचती है। तटीय अवरोध के कारण वह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है, तथा पूर्वी आस्ट्रेलिया के तटवर्ती प्रदेश तक प्रवाहित होती है। यह अपवाह 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक होती है। क्योंकि इसका अपवाह पूर्वी तटीय ऑस्ट्रेलिया में है, अतः इसे यहां पूर्वी ऑस्ट्रेलिया गर्म जलधारा कहते हैं। 40 डिग्री दक्षिण के बाद पछुआ हवाओं का प्रभाव होता है जिससे यह जलधारा पश्चिमी वायु प्रवाह का अंग बन जाती है। पश्चिमी वायु प्रवाह एक विश्वव्यापी जलधारा है। इसका जल पूर्व की ओर अपवाहित होते हुए अटलांटिक महासागर में चली जाती है।  लेकिन अटलांटिक में जाने के पूर्व इसके उत्तरी भाग का जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता है। इसके दो कारण हैं। 

  1. दक्षिणी चिली द्वारा तटवर्ती अवरोध,
  2. दक्षिणी विषुवतीय गर्म जलधारा के कारण से समुद्री जलस्तर का निम्न होना,

चूंकि प्रतिस्थापन के कारण जलस्तर में कमी हो जाती है। इसी निम्न जलस्तर को भरने के लिए पश्चिमी वायु प्रवाह का जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता है। इसे पेरू ठंडी जलधारा कहते हैं। इस प्रक्रिया से भी स्पष्ट है, कि सभी जलधाराएं एक दूसरे से जुड़ी है, तथा यहां भी बीच का जल शांत होता है एवं सारगैसों जैसी स्थिति पाई जाती है।

एलनिनो : 

उपरोक्त जलधाराओं के अलावा दक्षिणी प्रशांत में एक विशिष्ट जलधारा भी है जो एलनिनो उप सतही गर्म जलधारा के नाम से जानी जाती है। इसका भौगोलिक विस्तार 3 डिग्री दक्षिण से 36 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक है। यह पेरू तथा उत्तरी तटवर्ती क्षेत्र की गर्म जलधारा है। जब यह अधिक गर्म होती है तो यह दक्षिण विषुवतीय गर्म जलधारा का अंग हो जाती है। तथा उसी जलधारा के साथ इसका तापीय प्रभाव प्रशांत महासागर के वृहद क्षेत्रों में होता है। पूर्ण बाधा के अभाव में इस जलधारा का जल कई भागों में विभक्त होते हुए पश्चिम की ओर भी अपवाहित होती है। इसका प्रभाव हिंद महासागर में भी हो जाता है।

यह एक ऐसी जलधारा है, जो प्रशांत महासागर के मध्य एक वृहद निम्न भार का निर्माण करती है और इस निम्न भार का विश्व के मौसम पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। प्रारंभ में इसको मौसमी जलधारा माना गया था, लेकिन 1997 में इसकी गर्म जल वर्ष भर प्रभावित होता रहा, तो 1998 के प्रारंभिक महीने तक गर्म जलधारा ही बना है। जून से ताप में कमी आयी है। कम ताप वाली इस धारा को कहा गया है। अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि विभिन्न कारकों के फलस्वरुप महासागरीय जल में न केवल कई प्रकार की जलधाराएं पाई जाती हैं, बल्कि उनका तटवर्ती प्रभाव भी है। इनमें एलनिनो जलधारा का विश्वव्यापी प्रभाव है। दक्षिण एशिया में बाढ़ और सूखे को एलनिनों से जोड़ा जाता है। भारत में सूखे का एक प्रमुख कारण एलनिनो प्रभाव ही है। यह भारतीय मानसून को प्रभावित करता है।

सामान्यतः ठंडी जलधारा से तटवर्ती प्रदेश में शुष्कता की उत्पत्ति होती है। दक्षिण कैलिफोर्निया और चिली में वर्षा कम होने का कारण ठंडी जलधारा का प्रभाव भी है। अतः विश्व के शीत मरुस्थल ठंडी जलधाराओं की तटवर्ती प्रदेशों में ही पड़ते हैं।

पूर्वी साइबेरिया के तट पर कड़ाके की सर्दी पड़ती है, तथा तटों पर जाने में बर्फ जमा रहता है जबकि अलास्का के तट अलास्का गर्म जलधारा के प्रभाव के कारण वर्ष भर खुला रहता है। यहां सालों भर वर्षा भी होती है। इसी प्रकार होकैडो के पास कुहरे भरे मौसम का कारण ठंडी और गर्म जलधारा का मिलना है।

पुनः पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के तट पर पर्याप्त वर्षा का कारण पूर्वी आस्ट्रेलियाई गर्म जलधारा का प्रभाव है। यह धारा तटवर्ती प्रदेशों में निम्न भार का निर्माण करते हैं, इससे समुद्री समीर आते हैं, तथा उससे वर्षा होती है, जिससे तटवर्ती प्रदेश में सालों भर वर्षा होती है। अतः यह भी स्पष्ट है, कि तटवर्ती प्रदेश पर जलधाराओं का निश्चित प्रभाव पड़ता है।

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