Paddy crop in India | धान/चावल की फसल | धान का MSP 2023-24

भारत में चावल की फसल कुल कृषि भूमि के 25 प्रतिशत भाग पर की खेती की जाती है। यह खाद्यान्नों में लगी भूमि के 42 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा उत्पादक देश है। संसार के उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत भाग भारत में उत्पादन होता है तथा विश्व के कुल धान क्षेत्र का 29 प्रतिशत भाग भारत में है।

प्रमुख उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पंजाब राज्य आते हैं तथा प्रति हेक्टर चावल उत्पादन में पंजाब, तमिलनाडु तथा हरियाणा का स्थान आता है।

भौगोलिक दशाएं

यह उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रदेश (Tropical Monsoon) की उपज है। इसको बोते समय 20 डिग्री सेल्सियस, पकते समय 27 डिग्री सेल्सियस तापमान आदर्श है। उष्णकटिबंध (Tropical) में 19 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान में चावल की खेती नहीं होती है। अधिक लंबा मेघाच्छादित मौसम (Long cloudy weather) एवं तेज हवाएं हानिकारक है। धान एक खरीफ की फसल है जिसकी बुवाई दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होती है। चावल के उन्नत बीज की प्रति हेक्टेयर बीजारोपण दर 15-20 किलोग्राम होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  1. कुल कृषित भूमि (Total cultivated land) के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर चावल उत्पादन करने वाला राज्य पश्चिम बंगाल (77 प्रतिशत क्षेत्र पर), असम (75 प्रतिशत क्षेत्र पर), उड़ीसा (67 प्रतिशत क्षेत्र पर) और बिहार (63 प्रतिशत क्षेत्र पर) है।
  2. सरकार ने फसल वर्ष 2023-24 के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP-Minimum Support Price) 143 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 2183 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। 
  3. पश्चिम बंगाल में वर्ष की तीन फसल अमन, औस तथा बोरो की उपज की जाती है।
  4. कटक में चावल अनुसंधान केंद्र (Rice Research Center) स्थित है।
  5. चावल के कुल क्षेत्र का 77 प्रतिशत संकर बीज (Hybrid seed) के अंतर्गत 334 CH क्षेत्र पर HYV का प्रयोग होता है।
  • धान की फसल के लिए दवा
संतुलित मात्रा में नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग होना चाहिए। बीज को थीरम 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें। जुलाई महीने में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैकोजेब (0.24 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए।
  • धान के कल्ले या पौधा के बढ़वार के लिए
रोपाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले निकलते है। समय तथा रेणते या गोभ बनते (बूटिंग) समय आप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये
  • धान की खेती के लिए खाद या उर्वरक का प्रयोग
धान फसल में कन्से निकलने की स्थिति हो तो यूरिया की दूसरी मात्रा डालनी चाहिए। धान फसल में कीट या खरपतवार की स्थिति में दोनों के नियंत्रण के बाद ही 40 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।
  • धान में डीएपी का प्रयोग
कुछ किसान 10 दिन बाद ही DAP डालना शुरू कर देते हैं। मगर ऐसा नहीं करना चाहिए। यदि आवश्यकता है तो 35 दिन के बाद ही DAP का प्रयोग करना चाहिए।
  • किसानो को झुलसा रोग से धान की फसल को बचाने के लिए
खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्राइसायक्लाजोल 75 प्रतिशत, WP 150 ग्राम या आइसोप्रोथोलिन 300 मिली या 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ (लगभग 6 बीघा) की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों के मुताबिक जिंक की कमी के कारण खैरा रोग का प्रकोप होता है।
  • धान की पत्ती पीली होने पर (Paddy leaves turn Yellow)

इसमें लौह तत्व की कमी हो सकती है। पौधों की ऊपरी पत्तियां यदि पीली और नीचे की हरी हों तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाती हैं। इसके लिए पौधशाला या खेत में फेरस सल्फेट व चूने के घोल की उचित मात्रा का छिड़काव का प्रयोग करना चाहिए मगर जब आसमान साफ हो। (सागरिका नामक दवा का प्रयोग लाभकारी होता है।)

  1. जून के प्रारभ में धान के लिए पौध की तैयारी कर देनी चाहिए।
  2. गेहूं और चावल के उत्पादन में चीन का दुनिया में पहला स्थान है।
  3. धान में भूसी का प्रतिशत अनुमानित: 20 प्रतिशत के आस-पास होता है।
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