Tea Crop in Hindi | चाय की फसल | चाय की फसल के लिए भौगोलिक दशाएँ

चाय एक प्रकार का पेय पदार्थ है, जिसमें कैफीन और टैनिन होते हैं, जो स्टीमुलेटर होते हैं। इनसे शरीर में फुर्ती का अहसास होता है। चाय में मौजूद एल-थियेनाइन नामक अमीनो-एसिड दिमाग को ज्यादा अलर्ट लेकिन शांत रखता है। इसमें एंटीजन होते हैं, जो इसे एंटी-बैक्टीरियल क्षमता प्रदान करते हैं।

विश्व में चाय का उत्पादन

भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसका सबसे ज्यादा निर्यात करने वाला देश श्रीलंका है। भारत में दार्जिलिंग, असम, कोलुक्कुमालै, पालमपुर, मुन्नार, नीलगिरि चाय की खेती के लिए प्रचलित हैं। प्रमुख उत्पादक राज्य है असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन में तमिलनाडु प्रथम स्थान पर है। प्रति व्यक्ति खपत के हिसाब से 750 ग्राम है।

भारत कुल उत्पादन का एक तिहाई निर्यात करता है। भारत का 60 प्रतिशत चाय का निर्यात अकेले ब्रिटेन को जाता है। इस मामले में श्रीलंका से विदेशी बाजार में स्पर्धा है। 

भोगोलिक दशाएं

चाय की खेती के लिए गर्म आर्द्र जलवायु सबसे उत्तम होती है तथा 24 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा एवं 50 से 250 सेंमी वर्षा में इसकी अच्छी पैदावार होती है। चाय के बगानों में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। अक्टूबर-नवंबर में बुवाई तथा अप्रैल-अक्टूबर में पत्तियों की तुड़ाई होती है। इसकी खेती के लिए 4.5 – 5.0  pH वाली हल्की अम्लीय मिट्टी अच्छी मानी जाती है। इसकी सिंचाई बारिश के माध्यम से होती है। यह उष्ण तथा उष्णकटिबंधीय पौधा है। यह ढालदार मैदानों एवं पहाड़ी के निचले ढालों पर उगाई जाती है। बारिश कम या नहीं होने पर हर दिन फव्वारा विधि से सिंचाई करनी चाहिए। [ चाय उद्योग को कौन नियंत्रित करता है? ]

पौधों को लगाने के लगभग एक साल बाद पत्तियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। किसान वर्ष में 3 बार इसकी तुड़ाई करके फसल प्राप्त कर सकते हैं।

इसकी फसल में मुख्य रूप से लाल कीट, शैवाल, अंग मारी, गुलाबी रोग, फफोला, काला विगलन आदि रोग होते हैं। कॉपर सल्फ़ेट का छिड़काव करके हमें इन रोगों से निजात मिल सकता है। प्रति हेक्टेयर बगान से लगभग 1800 से 2500 किग्रा प्रति हेक्टेयर चाय प्राप्त किया जा सकता है। कृषि से प्राप्त उत्पादनों में चाय निर्यात से सर्वाधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

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